भगवान राम के अयोध्या मंदिर के विषय में और भी जानकारी प्राप्त करें! यहां आपको facts of Ram Mandir और अनसुने रहस्यों से भरपूर जानकारी मिलेगी, जो इस महत्वपूर्ण स्थल को और भी अद्वितीय बनाती हैं। अयोध्या स्थित नव निर्मित राम मंदिर, देश भर करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है। राम जन्मभूमि पर राम लला के मंदिर का निर्माण अपने आप में एक अप्रतिम अवसर है। कई सौ वर्षों के इंतज़ार के बाद, अब सही अर्थों में राम राज्य की स्थापना होने जा रही है। इस लेख में हम आपको राम मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगें। ये तथ्य मुख्यतः राम मंदिर से जुड़े वास्तु पर आधारित है, इन्हें जानकार आपको ज्ञात होगा, कि हमारे देश के वास्तुकारों की सोच कितनी उन्नत, आधुनिक और विकासशील है।
राम मंदिर अयोध्या से जुड़े कुछ अद्भुद तथ्य | Some amazing facts related to Ram Mandir Ayodhya
बरसों का इतंजार हुआ खत्म अब बस हर जगह होगी राम नाम की गूंज क्योंकि 22 जनवरी 2024 को होने जा रहा राम मंदिर का उद्घाटन जिसके लिए ना जानें कितने सालों तक राम भक्तों ने लड़ाई लड़ी तब जाकर प्रभु श्रीराम की स्थली अयोध्या वापस मिली। भगवान राम के महान अयोध्या मंदिर के प्रति हर भक्त की आत्मा में अद्भुत रास्ता होता है। इस पवित्र स्थल के चारों ओर छिपे हुए रहस्यों और रोचक तथ्यों की खोज में, हम आपको प्रस्तुत करते हैं “राम मंदिर अयोध्या के अद्भुद तथ्य”। इस अद्वितीय स्थल के पीछे छिपे महत्वपूर्ण और आश्चर्यजनक विवरणों के माध्यम से हम साझा करेंगे, जो इस मंदिर को एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक गहराई में स्थापित करते हैं।
सोमपुरा परिवार ने बनाया राम मंदिर का डिज़ाइन
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में हर छोटी से छोटी बात पर ध्यान दिया गया है। अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार ने रामलला मंदिर का मूल डिजाइन 1988 में बनाया था। मंदिरों का निर्माण पिछली 15 पीढ़ियों से सोमपुरा परिवार का व्यवसाय है। देश भर में फैले हुए बिलड़ा मंदिरों को भी सोमपुरा परिवार ने ही बनाया है। इन्होनें विश्व भर में 100 से अधिक मंदिर बनाए हैं। यह भी विश्व प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर है। 2020 में, उन्होंने कुछ बदलावों के साथ राम मंदिर का अंतिम चित्र बनाया। मंदिर के प्रमुख वास्तुकारों में चंद्रकांत सोमपुरा और उनके बेटे आशीष और निखिल सोमपुरा हैं। इस परिवार ने राम मंदिर को ‘नागर’ वास्तुशैली प्रदान की है।
2587 स्थानों से लई गई पवित्र मिट्टी का राम मंदिर में इस्तेमाल
राम मन्दिर की तीन ऐसी बातें जो आपको हैरान कर देंगी सबसे पहला कि राम मंदिर की नींव रखने के लिए देशभर से करीब 2587 पवित्र स्थानों से मिट्टी इकट्ठा की गई है, जिसमें यमुनोत्री, हल्दीघाटी, केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगा जैसे पवित्र स्थान मौजूद है। मेघालय में सिंटू केसर-जोवाई और नर्तियांग, कामाख्या मंदिर, रामेश्वरम में अग्नि सिद्धांत और साथ ही आगरा में बटेश्वर गांव में पुर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई के पैतृक घर की मिट्टी भी लायी गई हैं |
सदी का सबसे मजबूत, अखंड वास्तुशिल्प
सबसे अद्भुत तथ्य,अयोध्या राम मंदिर, जिसकी लम्बाई 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है, उसके निर्माण में लोहे का कतई प्रयोग नहीं हुआ है। है न अद्भुत ! मंदिर तीन मंजिला होगा और इसकी हर मंजिल की ऊंचाई लगभग 20 फीट होगी। मंदिर परिसर में कुल 44 द्वार और 392 खंभे होंगे। इतने भव्य वास्तुकला में लोहे का प्रयोग निषिद्ध किया गया।
राम मंदिर में लोहे का इस्तेमाल न करने का वैज्ञानिक कारण
अगर हम विज्ञान की मानें तो लोहा एक ऐसी धातु है जो 100 वर्षों में खराब हो जाती है और इसमें जंग लगने लगता है। जबकि राम मंदिर हजारों सालों के लिए बनाया जा रहा है और सदियों से चला आ रहा है।
इसी वजह से अगर इस मंदिर में लोहे का इस्तेमाल किया जाता तो इसके जल्द ही खराब होने का डर बढ़ जाता। इसी वजह से आपको राम मंदिर में कहीं पर भी लोहा धातु नहीं मिलती है और न ही इसका कहीं भी उपयोग किया गया है। इसके स्थान पर पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए तांबा धातु का इस्तेमाल किया गया है।
महाराष्ट्र से लाई गई दरवाजों की लकड़ी
रामलला अपने मंदिर में जल्दी से जल्दी विराजमान हों इसी वजह से दिन-रात मजदूर निर्माण कार्य कर रहे हैं | राम मंदिर में लगने वाले दरवाजे की लकड़ी महाराष्ट्र से लाई गई है | इस लकड़ी की खास बात यह है कि वर्षों तक इसमें किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आ सकती है | प्रकाश गुप्ता ने कहा कि राम मंदिर में जो प्रमुख दरवाजे होंगे वह स्वर्ण जड़ित रहेंगे | इन दरवाजों पर परत चढ़ाने के लिए दिल्ली के कारीगर कार्य कर रहे हैं |
श्री राम नाम अंकित ईंटों का रहस्य
राम मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त ईंटों पर पवित्र नाम ‘श्री राम’ अंकित है। यह हमें राम सेतु के निर्माण की कथा का स्मरण करवाता है, जब ‘श्री राम’ नाम वाले पत्थर पानी में अनायास ही ऊपर आ जाते थे और जिसके फलस्वरूप राम-सेतु का निर्माण हुआ था। आधुनिक तकनीक से निर्मित इन ईंटों का उपयोग मंदिर को बेहतर मजबूती और स्थायित्व प्रदान करेगा।
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मंदिर परिसर में बनाया जा रहा स्थाई हेलीपैड
मंदिर निर्माण कार्य के साथ-साथ मंदिर परिसर में स्थाई हेलीपैड बनाया जा रहा है | हेलीपैड बनाने का सबसे बड़ा जो कारण है वह है VVIP मूवमेंट के दौरान राम भक्तों को आने वाली परेशानी | जिस प्रकार से रोजाना राम भक्तों की संख्या बढ़ रही है उसको देखते हुए अयोध्या में रोजाना मूवमेंट मोमेंट होते हैं | ऐसे में राम जन्मभूमि परिसर में ही स्थाई हेलीपैड बनाया जा रहा है |
अभी हेलीपैड राम कथा पार्क के पास बनाया गया है | वहां से आने पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है | पूरी सड़क बंद करनी पड़ती है और सुरक्षा को भी बढ़ाना पड़ता है | जिसको देखते हुए ट्रस्ट और प्रशासन ने ये फैसला लिया है कि राम मंदिर परिसर में ही स्थाई हेलीपैड बनाया जाए |
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट कार्यालय के प्रभारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि हमारा परिसर बहुत ही बड़ा है | लगभग 100 एकड़ का है | उसी में हेलीपैड का निर्माण हो रहा है | प्रशासन चाहता था कि यहां पर एक हेलीपैड बनाया जाए और ये सुविधाजनक रहेगा | जब भी दीपोत्सव होता है तो साकेत महाविद्यालय में भी एक हेलीपैड बना दिया गया है | वहां पर भी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं | अयोध्या में राम कथा पार्क में भी एक हेलीपैड बनाया गया है | मुख्यमंत्री आते हैं तो वहीं पर उतरते हैं |
वास्तु शास्त्र और चौलुक्य शैली का समागम
राम मंदिर का मूलभूत प्रारूप वास्तु शास्त्र और शिल्प शास्त्र के सिद्धांतों का अद्भुत समागम है। यह इमारत हमारे प्राचीन ज्ञान, वास्तुकला, आधुनिक तकनीक व सौंदर्य का उत्तम मिश्रण है। इसे नागर शैली के अंतर्गत गुर्जर चालुक्य शैली में बनाया जा रहा है। इस मंदिर का मूल डिज़ाइन उसी परिवार ने बनाया है जिस परिवार ने सोमनाथ मंदिर का डिज़ाइन बनाया था। यह मंदिर वास्तू शास्त्र और शिल्प शास्त्र का अनूठा संगम होने वाला है।
थाईलैंड की मिट्टी
अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में, आगामी 22 जनवरी 2024 को होने वाले रामलला के भव्य अभिषेक समारोह के लिए हमारे पड़ोसी देश थाईलैंड से मिट्टी भिजवाई गयी है। यह पहली बार नहीं है जब थाईलैंड से राम मंदिर के लिए कुछ आया हो। मिट्टी से पहले थाईलैंड की दो नदियों से राम मंदिर के लिए पानी भी आ चुका है। असल में थाईलैंड में बौद्ध धर्म का निर्वाहन किया जाता है जो भी भारत की धार्मिक संस्कृति का अहम हिस्सा है। ऐसे में धार्मिक रूप से थाईलैंड का भारत से बहुत ही गहरा नाता है।
इसके अलावा, ऐसा भी माना जाता है कि श्री राम के वंशज थाईलैंड में शासन कर चुके हैं और अपने राज्यकाल का एक लंबा अरसा उन्होंने थाईलैंड में व्यतीत किया है। यहां तक कि थाईलैंड में भी रामायण न सिर्फ पढ़ी जाती है बल्कि रामायण को राम लीला के समान ही दर्शाया भी जाता है जिसे वहां की भाषा में ‘रामकियेन’ कहते हैं। इसके अलावा, हिन्दू धर्म के कई प्रतीक चिन्ह थाईलैंड के मंत्रायलों के प्रतीक चिन्हों से हुबहू मेल खाते हैं। जैसे कि श्री गणेश, गरुड़ जी और ब्रह्मा जी की मूर्ति वहां के मुख्य चिन्ह हैं।
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भगवान राम का दरबार
राम मंदिर में कुल तीन मंज़िलें होंगी, और मंदिर परिसर विशाल 2 | 7 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। भूतल पर भगवान राम के जन्म और बाल्य लीलाओं को दर्शाया गया है। पहली मंजिल पर चढ़ते हुए, भगवान राम के मंदिर की भव्यता देखते ही बनेगी, पूरी नक्काशी भरतपुर, राजस्थान से मंगवाए गए गुलाबी बलुआ पत्थर से की गयी है।
पवित्र नदियों के जल से अभिषेक
अगस्त 5, 2020 को संपन्न रामलला अभिषेक समारोह में भारत भर की लगभग 150 नदियों के पवित्र जल का उपयोग किया गया। ऐसे ही 2 भाई हैं जो जिन्होंने 150 से अधिक नदियों का पानी एकत्र किया है। दोनों भाई 5 अगस्त को होने वाले राम मंदिर के शिलान्यास समारोह के लिए अयोध्या पहुंचे हैं। राधे श्याम पांडे का कहना है, ‘1968 से हमने श्रीलंका के 16 स्थानों से 151 नदियों, 8 बड़ी नदियों, 3 समुद्रों और मिट्टी से पानी एकत्र किया है।’ विभिन्न नदियों से प्राप्त जल, आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक है।
भावी पीढ़ी के लिए एक टाइम कैप्सूल
मंदिर के निर्माण में एक अन्य बेजोड़ व असाधारण तथ्य एक टाइम कैप्सूल की स्थापना है। यह टाइम कैप्सूल भावी पीढ़ी को मंदिर की स्थापना व इतिहास की जानकारी के लिए बनाया गया। इस टाइम कैप्सूल को मंदिर में जमीन से 2000 फीट नीचे दफनाया गया है। तांबे की प्लेट पर बने इस टाइम कैप्सूल पर मंदिर, भगवान राम और अयोध्या के बारे में प्रासंगिक जानकारी अंकित है जो भावी पीढ़ियों के लिए मंदिर की पहचान को संरक्षित रखने का एक दूरदर्शी प्रयास है।
उत्कृष्ट स्तम्भ
मंदिर के डिज़ाइन में नागर शैली में तैयार किए गए 360 स्तंभ शामिल हैं, जो इसके सौंदर्य को अत्यधिक रूप से बढ़ाते हैं। राजस्थान के बंसी पहाड़पुर पत्थर व नागर शैली का प्रयोग, मंदिर में अनुपम छटा बिखेरता है। इस उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के कारण यह न केवल पूजा स्थल बनता है, बल्कि वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति भी बन जाता है।
पर्यावरण अनुकूल निर्माण
मंदिर का निर्माण पर्यावरण के नियमों को ध्यान में रख कर किया गया है। इसमें मुख्यतः स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्रियों और ऊर्जा-बचत के साधनों का प्रयोग शामिल है। राम मंदिर में पर्यावरण संरक्षण का कार्य शुरू हो गया है। पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का प्रयोग करने पर बल है। परिसर पॉलीथिन मुक्त है। प्रसाद का वितरण भी मोटे कागज के पैकेट में किया जाता है, जो भी भक्त रामलला का दर्शन कर बाहर निकलता है, उसे इसी पैकेट में प्रसाद दिया जाता है।
भव्य नक्काशी
मंदिर में, रामायण के प्रसंगों का वर्णन करती, भव्य व सूक्ष्म नक्काशी की गयी है। मंदिर में भगवान राम के जीवन का सुन्दर चित्रण भी किया गया है। राम कथा का सजीव चित्रण करती वास्तुकला का यह एक बेजोड़ नमूना है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में नगर शैली की नक्काशी की जा रही है | मंदिर में लगने वाले दरवाज़ों पर भी अद्भुत नक्काशी की गई है | मंदिर की दीवारों और गुंबद पर भी खूबसूरत नक्काशी की गई है | मंदिर के फ़र्श पर भी मकराना मार्बल पर नक्काशी की गई है | राम मंदिर के निर्माण में तमिलनाडु का भी योगदान है | तूतीकोरिन ज़िले के एराल के कारीगरों ने 650 किलोग्राम की ‘वेंगलम’ घंटी तैयार की है | इसके अलावा, मंदिर के लिए देशभर की 16 नदियों का पवित्र जल भी जुटाया गया है |
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