भारत की नीली अर्थव्यवस्था | Blue Economy of India

हाल ही में संसद में पेश किये गए बजट में कई अन्य विषयों के अतिरिक्त भारत की नीली अर्थव्यवस्था | Blue Economy of India, को भी स्थान दिया गया। हालाँकि इस ओर विशेषज्ञों ने अधिक ध्यान नहीं दिया। भारत की तटीय सीमा काफी लंबी है, साथ ही भारत, हिंद महासागर में स्थित प्रमुख देश है जिसमें पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर  स्थित है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बजट में महासागरों के धारणीय उपयोग पर ध्यान दिया गया है। मौजूदा समय में महासागरों के आर्थिक उपयोग के लिये ब्लू इकॉनमी अथवा नीली अर्थव्यवस्था शब्द का उपयोग किया जाता है। नीली अर्थव्यवस्था का विकास न केवल जल निमग्न संसाधनों का दोहन करते हुए बल्कि विशेषकर स्थल पर अवसरों की सीमितता के बीच महासागरों में अवसंरचना विस्तार के लिये एक आधार के रूप में इसे विकसित किया जा सकता है इससे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होगी। साथ ही यह राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन भी कर सकता है।

महासागर विश्व के सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र हैं, साथ ही ये पृथ्वी के तीन-चौथाई हिस्से में फैले हुए हैं। महासागर वैश्विक GDP में 5 प्रतिशत का योगदान देते हैं तथा 350 मिलियन लोगों को महासागरों से जीविका प्राप्त होती है। इस संदर्भ में ये क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, आजीविका, वाणिज्य तथा सुरक्षा से संबंधित विभिन्न संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।

विश्व बैंक के अनुसार, महासागरों के संसाधनों का उपयोग जब आर्थिक विकास, आजीविका तथा रोज़गार एवं महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है तो वह नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के अंतर्गत आता है। नीली अर्थव्यवस्था को प्रायः मरीन अर्थव्यवस्था, तटीय अर्थव्यवस्था एवं महासागरीय अर्थव्यवस्था (Marine Economy, Coastal Economy and Ocean Economy) के नाम से भी पुकारा जाता है।

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भारत की नीली अर्थव्यवस्था | Blue Economy of India

भारत की नीली अर्थव्यवस्था | Blue Economy of India, समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग से संबंधित शब्द है। यह सामान्य परिभाषा बहुत व्यापक है| विशिष्ट परिभाषा उस विशेष संगठन पर निर्भर करती है जो संसाधन शोषण से जुड़ा है। विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, नीली अर्थव्यवस्था का अर्थ बेहतर आजीविका और नौकरी के अवसरों और उच्च आर्थिक विकास के लिए समुद्री संसाधनों का स्थायी तरीके से उपयोग करना है। साथ ही अपने पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संरक्षण भी करता है।

नीली अर्थव्यवस्था में कई आर्थिक गतिविधियों को शामिल किया जा सकता है। इनमें से कुछ हैं:

  • जलकृषि और मछली पकड़ना (समुद्री भोजन संचयन)।
  • समुद्री प्राकृतिक संसाधनों (तेल और गैस) की खोज और निष्कर्षण।
  • नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (अपतटीय पवन चक्कियाँ)।
  • व्यापार और वाणिज्य से संबंधित अनुप्रयोग (समुद्री परिवहन, पर्यटन)।
  • पर्यावरण संरक्षण (अपशिष्ट प्रबंधन, कार्बन सिंक के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करना)।

संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 2012 के सम्मेलन में ब्लू इकोनॉमी की अवधारणा पेश की। इसमें तर्क दिया गया कि जब पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ होता है तो समुद्री संसाधनों की उत्पादकता बेहतर होती है। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अस्थिर आर्थिक गतिविधियां, प्रदूषण, आवास विनाश आदि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Co-operation and Development) (OECD) महासागरों को आर्थिक गतिविधियों की नई सीमाओं के रूप में वर्णित करता है। उनमें आर्थिक विकास, विकास, धन सृजन, नवाचार और रोजगार वृद्धि की काफी संभावनाएं हैं।

भारत की नीली अर्थव्यवस्था | Blue Economy of India

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कैसे काम करती है ब्लू इकोनॉमी?

इसमें सबसे पहले समुद्र आधारित बिजनेस मॉडल तैयार किया जाता है, साथ ही संसाधनों को ठीक से इस्तेमाल करने और समुद्री कचरे से निपटने के डायनामिक मॉडल पर कम किया जाता है| पर्यावरण फिलहाल दुनिया में एक बड़ा मुद्दा है ऐसे में ब्लू इकोनॉमी को अपनाना इस नज़रिये से भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है| ब्लू इकोनॉमी के तहत फोकस खनिज पदार्थों समेत समुद्री उत्पादों पर होता है| समुद्र के जरिये व्यापार का सामान भेजना ट्रकों, ट्रेन या अन्य साधनों के मुकाबले पर्यावरण की दृष्टि से बेहद साफ़-सुथरा साबित होता है|

भारत की नीली अर्थव्यवस्था में क्या-क्या शामिल है?

  • नीली अर्थव्यवस्था को भारतकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उपसमूह के रूप में देखा जाता है।
  • इसमें देश के कानूनी अधिकार क्षेत्र के भीतर की सम्पूर्ण महासागरीय संसाधन प्रणाली और तटवर्ती समुद्री क्षेत्रों में स्थित सभी मानव-निर्मित आर्थिक बुनियादी ढाँचे शामिल हैं।
  • यह नीति उन सभी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को प्रभावित करेगी,जो आर्थिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।
  • नीली अर्थव्यवस्था भारत जैसे तटीय देशों के लियेअपने विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु महासागरीय संसाधनों के संधारणीय उपयोग सुनिश्चित करने का एकबड़ा अवसर है।

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भारत में इस नीति की आवश्यकता क्यों पड़ी ?

  • भारतीय समुद्र तट की कुल लम्बाई 7516.6 किलोमीटर है, जिसमें भारतीय मुख्य भूमि का तटीय विस्तार 6300 किलोमीटर है,इसके अलावा द्वीपीय क्षेत्र अंडमान निकोबार एवं लक्षद्वीप का संयुक्त तटीय विस्तार 1,216.6 किलोमीटर है।
  • भारत के कुल 28 राज्यों में से 9 राज्य ऐसे है जिनकी सीमा समुद्र से लगती है इसके अलावा लगभग 1,382 द्वीप भी भारत की सीमा में अवस्थित हैं।
  • भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह और लगभग 200 से अधिक छोटे बंदरगाह अधिसूचित हैं, जहाँ हर वर्ष लगभग 1,400 मिलियन टन का व्यापार जहाज़ों द्वारा होता है।
  • इसके अलावा, लगभग 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थित हैं, जहाँ से कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन प्राप्त होते हैं।
  • भारत की तटीय अर्थव्यवस्था लगभग 4 मिलियन से अधिक मछुआरों के लिये रोज़गार का साधन है।

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नीली अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक | Factors affecting blue economy

क्रम संख्या  नीली अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक विवरण
1 समुद्र आधारित आतंकवादी गतिविधियाँ
  • इनमें आतंकवाद, डकैती, समुद्री डकैती, नशीली दवाओं और मनुष्यों की तस्करी, अवैध हथियारों का व्यापार, कच्चे तेल का अवैध व्यापार, नशीली दवाओं की तस्करी आदि शामिल हैं।
2 आपदाएं
  • प्राकृतिक आपदाओं से नीली अर्थव्यवस्था पर हर साल नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इनमें चक्रवात , तूफान, सुनामी और टाइफून शामिल हैं।
  • ये आपदाएँ संपत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं और हजारों लोगों की जान ले लेती हैं।
3 मानव निर्मित मुद्दे
  • इनमें तेल रिसाव, युद्ध और आक्रामकता आदि जैसी समस्याएं शामिल हैं।
4 जलवायु परिवर्तन
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत अधिक है।
  • महासागरों में अम्लता का बढ़ना, समुद्र के तापमान में अप्राकृतिक परिवर्तन आदि।
  • ये समुद्री आवास, समुद्री संसाधनों और उन पर निर्भर लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
5 समुद्री प्रदूषण
  • इसमें अनुपचारित सीवेज का डंपिंग, कृषि से अपवाह, माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट का डंपिंग आदि शामिल है।
  • अपशिष्ट से अतिरिक्त पोषक तत्व पानी में कम घुलनशील ऑक्सीजन स्तर जैसी समस्याओं को जन्म देते हैं।
  • कमजोर संसाधन, जैसे मूंगा, मछली प्रजातियाँ, आदि खतरे में हैं।
6 समुद्री संसाधनों का सतत दोहन
  • समुद्री संसाधनों का अनियमित, अवैध और अस्थिर तरीके से उपयोग।

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ब्लू इकोनॉमी के संदर्भ में भारत द्वारा उठाए गए कदम | Steps taken by India in the context of Blue Economy

  • डीप ओशन मिशन (Deep Ocean Mission): इसे भारत के समुद्री बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने और गहरे महासागरों से जीवित और गैर-जीवित संसाधनों का दोहन करने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था।
  • ब्लू इकोनॉमी विजन 2025 (Blue Economy Vision 2025): यह ‘इंडिया इंक’ और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के लिए व्यावसायिक संभावनाओं, समुद्री संसाधनों के दोहन की स्थिरता पर बढ़ते वैश्विक और क्षेत्रीय कार्यों के बारे में जागरूक करने के लिए फिक्की का एक अग्रणी प्रयास है।
  • भारत की राष्ट्रीय मत्स्यपालन नीति: यह समुद्री और अन्य जलीय संसाधनों से मत्स्य संपदा के सतत् उपयोग पर केंद्रित है।
  • सागरमाला परियोजना: यह बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए IT सक्षम सेवाओं के व्यापक उपयोग के माध्यम से बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास के लिए रणनीतिक पहल है।
  • O-स्मार्ट (O-SMART): इसका उद्देश्य सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्री संसाधनों का विनियमित उपयोग करना है।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन: यह तटीय और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और तटीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसरों में सुधार आदि पर केंद्रित है।
  • सतत् विकास के लिए ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था) पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स: वर्ष 2020 में दोनों देशों ने संयुक्त पहल को विकसित करने और उसका पालन करने के लिए प्रारंभ किया।

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नीली अर्थव्यवस्था का महत्व | Importance of blue Economy

  • अत्यधिक लाभदायक: एक स्थायी समुद्री अर्थव्यवस्था के लिए उच्च-स्तरीय पैनल द्वारा किए गए शोध के अनुसार, प्रमुख समुद्री गतिविधियों में निवेश पर प्रायः पाँच गुना अधिक रिटर्न मिलता है, ।
  • भारत की ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था) परिवहन के माध्यम से देश के 95% व्यापार का समर्थन करती है और इसके सकल घरेलू उत्पाद में अनुमानित 4% का योगदान देती है।
  • SDG की उपलब्धि: यह संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs)  विशेष रूप से SDG14 ‘जल के नीचे जीवन’ का समर्थन करता है।
  • सतत् ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती माँग का समर्थन करते हुए, अपतटीय क्षेत्रों में अपतटीय हवा, लहरों और समुद्री धाराओं के रूप में जबरदस्त क्षमता है।

FAQs

1. नीली अर्थव्यवस्था क्या है?

यह समुद्री संसाधनों का टिकाऊ इस्तेमाल करते हुए आर्थिक विकास और आजीविका को बढ़ावा देने का एक तरीका है। इसमें समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को भी प्राथमिकता दी जाती है।

2. भारत में नीली अर्थव्यवस्था कितनी महत्वपूर्ण है?

भारत की लंबी तटरेखा और विशाल आर्थिक क्षेत्र के चलते नीली अर्थव्यवस्था काफी महत्वपूर्ण है। यह नौवहन, मछली पालन, पर्यटन और कई अन्य क्षेत्रों में विकास का अवसर देती है।

3. क्या नीली अर्थव्यवस्था जलवायु परिवर्तन से लड़ सकती है?

हां, कुछ हद तक। स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन को सोखने में मदद करते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हैं। साथ ही, नवीकरणीय समुद्री ऊर्जा स्रोतों का विकास जलवायु के अनुकूल विकास को बढ़ावा दे सकता है।

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4. नीली अर्थव्यवस्था में निवेश के क्या अवसर हैं?

कई क्षेत्रों में निवेश के अवसर हैं, जैसे- अपतटीय पवन ऊर्जा, सस्टेनेबल मछली पालन, समुद्री पर्यटन का इको-विकास, और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी

5. आम आदमी नीली अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान दे सकता है?

समुद्री प्रदूषण को कम करने के लिए जिम्मेदार उपभोग से, सतत समुद्री खाद्य पदार्थ चुनकर और तटीय इलाकों में साफ-सफाई का ध्यान रखकर हर कोई योगदान दे सकता है।

6. नीली अर्थव्यवस्था के रास्ते में क्या चुनौतियाँ हैं?

समुद्री प्रदूषण, अवैध मछली पकड़, जलवायु परिवर्तन और समुद्री संसाधनों के अत्यधिक दोहन जैसी कई चुनौतियाँ हैं। इन्हें दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सतत विकास नीतियों को अपनाना जरूरी है।

7. क्या समुद्री खनन नीली अर्थव्यवस्था का हिस्सा हो सकता है?

यह जटिल है। कुछ का मानना है कि समुद्री खनन से महत्वपूर्ण खनिज मिल सकते हैं, जबकि अन्य चिंतित हैं कि इससे समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है। इसपर वैज्ञानिक अध्ययन और सख्त नियमों की जरूरत है।

8. नीली अर्थव्यवस्था के भविष्य के बारे में आपका क्या ख्याल है?

अगर चुनौतियों से सही तरीके से निपटा जाए तो नीली अर्थवव्यवस्था आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है। उम्मीद है कि भविष्य में इसका और तेजी से विकास होगा।

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