डीप ओशन मिशन | Deep Ocean Mission | DOM, भारत की एक महत्वाकांक्षी पहल है| इसका मकसद समुद्र की गहराई का पता लगाना और उसका दोहन करना है| यह पहल, भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्रों और महाद्वीपीय शेल्फ़ (continental shelf) पर केंद्रित है| इसे अनौपचारिक रूप से समुद्रयान कार्यक्रम के नाम से भी जाना जाता है| डीप ओशन मिशन के तहत, भारत पहली बार तीन सदस्यीय दल के साथ स्वदेशी रूप से विकसित पनडुब्बी का इस्तेमाल करके समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक यात्रा करेगा| इस मिशन के तहत, “मत्स्य 6000” नामक पनडुब्बी को 2024 की शुरुआत में चेन्नई के तट पर बंगाल की खाड़ी में परीक्षण के लिए भेजा जाएगा|
डीप ओशन मिशन | Deep Ocean Mission | DOM
नियंत्रण मंत्रालय | पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय |
मॉडल | 2018 |
पहला अनुसंधान पोत | गावेशानी |
प्रमुख परियोजनाएं | एक अलवणीकरण संयंत्र
सबमर्सिबल व्हीकल, जो 6000 मीटर की गहराई तक खोज कर सकता है |
योजना का प्रकार | केंद्रीय क्षेत्र योजना |
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डीप ओशन मिशन के कुछ प्रमुख उद्देश्य | Some major objectives of Deep Ocean Mission
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र में दीर्घकालिक बदलाव से पैदा होने वाली समस्याओं का समाधान करना|
- सजीव (जैव विविधता) और निर्जीव (खनिज) संसाधनों के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना|
- पानी के नीचे के वाहनों और पानी के नीचे रोबोटिक्स का विकास करना|
- गहरे समुद्र में खनन, पानी के नीचे की पनडुब्बियों और पानी के नीचे के ‘रोबोटिक्स’ के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना|
- महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास करना|
- गहन समुद्री जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी विकास|
- गहरे समुद्र का सर्वेक्षण और अन्वेषण|
डीप ओशन मिशन का महत्व | Importance of Deep Ocean Mission
- यह मिशन भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (Central Indian Ocean Basin) (CIOB) में संसाधनों का दोहन करने की क्षमता विकसित करने में सक्षम बनायेगा।
- यह गहरे समुद्र की जैव विविधता में आगे के अध्ययन और अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- इसके अंतर्गत महासागर की लगातार निगरानी की जाएगी, जलवायु में होने वाले बदलाव पर ध्यान दिया जाएगा, जिससे बेहतर डेटा संग्रह होगा और बेहतर प्रबंधन संभव हो सकेगा।
- खनिजों के अन्वेषण का अध्ययन निकट भविष्य में व्यावसायिक दोहन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- यह अनुमान लगाया गया है कि मध्य हिंद महासागर में समुद्र के तल पर 380 मिलियन मीट्रिक टन Polymetallic nodules उपलब्ध है।
- इस भंडार का 10 प्रतिशत खनन अगले 100 वर्षों के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा कर सकता है।
- पॉली-मेटैलिक नोड्यूल्स की खोज के लिए भारत को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय समुद्री तल प्राधिकरण द्वारा मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में 75,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आवंटित किया गया है।
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डीप ओशन मिशन अन्वेषण में प्रमुख चुनौतियाँ | Major Challenges in Deep Ocean Mission Exploration
- समुद्री दबाव की चुनौतियाँ: डीप ओशन में उच्च दबाव की स्थितियाँ एक विकट चुनौती पेश करती है, जो लगभग 10,000 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर वज़न उठाने के बराबर वस्तुओं पर अत्यधिक दबाव डालती हैं।
- उपकरण डिज़ाइन एवं कार्यक्षमता: कठोर परिस्थितियों के लिये मज़बूत सामग्रियों से निर्मित सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किये गए उपकरणों की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉनिक्स तथा उपकरण अंतरिक्ष अथवा निर्वात स्थितियों में अधिक कुशलता से कार्य करते हैं, जबकि खराब डिज़ाइन वाली वस्तुएँ जल के भीतर ढह जाती हैं अथवा नष्ट हो जाती हैं।
- लैंडिंग संबंधी चुनौतियाँ: समुद्र तल की नरम एवं दलदलीय सतह के परिणामस्वरूप भारी वाहनों के लिये लैंडिंग अथवा युद्धाभ्यास करना असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- सामग्री निष्कर्षण एवं बिजली की मांग: समुद्र तल से सामग्री निकालने के लिये उन्हें सतह पर पंप करने के लिये भारी मात्रा में शक्ति एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- विद्युत चुंबकीय तरंग प्रसार के अभाव के कारण दूर से संचालित किये जाने वाले वाहन गहरे महासागरों में अप्रभावी होते हैं।
- दूरबीनों द्वारा अंतरिक्ष अवलोकनों की सुविधा के विपरीत गहरे समुद्र के अन्वेषण में दृश्यता सीमित होती है, क्योंकि प्राकृतिक प्रकाश समुद्र जल के भीतर केवल कुछ मीटर तक ही प्रवेश कर पाता है।
- अन्य जटिल चुनौतियाँ: तापमान भिन्नता, संक्षारण, लवणता आदि विभिन्न कारक गहरे समुद्र में अन्वेषण को और जटिल बनाते हैं, जिसके लिये व्यापक स्तर पर समाधान की आवश्यकता होती है।
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2026 तक पूरा होने की तैयारी
केंद्र ने पांच वर्षों के लिए 4,077 करोड़ रुपये के कुल बजट पर गहरे महासागर मिशन को मंजूरी दी थी। तीन वर्षों (2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2,823.4 करोड़ रुपये है।
भारत की एक अद्वितीय समुद्री स्थिति है। यह 7,517 किमी लंबी तटरेखा, जो नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों का घर है। मिशन का उद्देश्य केंद्र सरकार के ‘न्यू इंडिया’ के दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है जो नीली अर्थव्यवस्था को विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में उजागर करता है।
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विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के बारे में | About Special Economic Zone (EEZ)
- समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को आम तौर पर तट से 200 समुद्री मील की दूरी पर परिभाषित करता जिसके भीतर तटीय राज्य को तलाशने और दोहन करने का अधिकार है, और जीवित और निर्जीव दोनों संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन की जिम्मेदारी है।कुछ प्रस्ताव कुछ विषयों को कैलिब्रेट करेंगे जो इस बात पर निर्भर करता है कि सब्सिडी वाली मछली पकड़ने की गतिविधि सदस्य Exclusive Economic Zone के भीतर या बाहर होती है या नहीं।
- जिसके भीतर तटीय राज्य को अन्वेषण और दोहन का अधिकार है, और जीवित और निर्जीव दोनों संसाधनों की रक्षा और प्रबंधन की जिम्मेदारी है।
- भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) का लगभग 2.37 मिलियन वर्ग किलोमीटर अज्ञात और अनछुआ है।
FAQs
प्रश्न: डीप ओशन मिशन क्या है?
उत्तर: यह भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य गहरे समुद्र (500 मीटर से अधिक गहराई) का पता लगाना, उसके संसाधनों का पता लगाना और उनका इस्तेमाल करना है।
प्रश्न: डीप ओशन मिशन के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
- गहरे समुद्र में खनिज, ऊर्जा और जैव विविधता का पता लगाना और आकलन करना।
- गहरे समुद्र की पारिस्थितिकी तंत्र को समझना और संरक्षित करना।
- जलवायु परिवर्तन पर गहरे समुद्र के प्रभाव का अध्ययन करना।
- गहरे समुद्र तकनीक विकसित करना और भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बनाना।
प्रश्न: इस मिशन का भारत के लिए क्या महत्व है?
उत्तर: डीप ओशन मिशन भारत की वैज्ञानिक और technological क्षमताओं को बढ़ाएगा। इससे नए संसाधनों तक पहुंच बढ़ेगी, जिससे आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो सकती है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की बेहतर समझ बनाने में भी मदद मिलेगी।
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प्रश्न: मिशन में किन तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है?
उत्तर: मिशन में मानव रहित पानी के नीचे वाहन (UUVs), रोबोट, सेंसर, अत्याधुनिक डेटा विश्लेषण तकनीक आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रश्न: क्या आम जनता इस मिशन में भाग ले सकती है?
उत्तर: हां, आप वैज्ञानिक अनुसंधान पर नजर रखकर, सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेकर और जागरूकता फैलाकर मिशन का समर्थन कर सकते हैं।
प्रश्न: क्या इस मिशन से पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर: पर्यावरणीय प्रभाव को कम से कम करने के लिए मिशन में सतर्कता बरती जा रही है, जैसे कि सख्त नियमों का पालन करना और समुद्री जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता देना।
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