Mystery of Kohinoor Diamond: एक अभिशप्त धरोहर की कहानी!

शापित हीरा या शाही ताज का गौरव? क्या सच में इस हीरे के मालिकों का अंत बुरा होता है! भारत का खोया हुआ खजाना या ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का अनमोल रत्न?

Mystery of Kohinoor Diamond: कोहिनूर, दुनिया का सबसे प्रसिद्ध और विवादित हीरा, एक ऐसी धरोहर है जिसने समय के साथ अनगिनत राजाओं, सम्राटों और शासकों को अपनी चकाचौंध में बांध रखा है। लेकिन इस चमचमाते हीरे की कहानी सिर्फ इसकी खूबसूरती तक सीमित नहीं है। इसके पीछे छिपा है एक काला इतिहास, संघर्षों और धोखे की एक लंबी दास्तान, और एक अभिशाप, जिसने इसके मालिकों की ज़िंदगी को तबाह कर दिया।

showing the iamge of Mystery of Kohinoor Diamond

1854 में प्रिंस दुलीप सिंह का इंग्लैंड जाना

1854 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब से एक 15 वर्षीय लड़के को इंग्लैंड भेजा था। लॉर्ड डलहौजी का मानना ​​था कि इस लड़के की माँ एक खतरा थी और उसका चरित्र अच्छा नहीं था, इसलिए उसे उसकी माँ से अलग करना बहुत ज़रूरी था। इंग्लैंड में इस लड़के ने ईसाई धर्म अपना लिया और महारानी विक्टोरिया के बेटे एडवर्ड द सेवेंथ से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई। इस बच्चे की ज़िम्मेदारी ब्रिटिश क्राउन को दी गई और उसे 50,000 पाउंड का वार्षिक वजीफ़ा दिया गया। अगर इसे आज की मुद्रास्फीति के हिसाब से एडजस्ट करें तो इसकी कीमत 65 करोड़ प्रति वर्ष होगी।

दरअसल, यह लड़का कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। वह प्रिंस दुलीप सिंह थे, जिन्हें आज हम भारत में सिख साम्राज्य के अंतिम शासक महाराजा दुलीप सिंह के नाम से भी जानते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इंग्लैंड भेजने से 4 साल पहले 1849 में जब अंग्रेजों ने सिखों को युद्ध में हरा दिया था, तब लॉर्ड डलहौजी ने 11 साल के राजकुमार दुलीप को यह आदेश दिया कि हीरा महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया जाये (Mystery of Kohinoor Diamond)। यह हीरा था कोहिनूर, जो उस साल जहाज से 6700 किलोमीटर का सफर तय करके लंदन पहुंचा था।

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कोहिनूर: उत्पत्ति और इतिहास

कोहिनूर हीरे की उत्पत्ति और इतिहास सदियों से रहस्य और (Mystery of Kohinoor Diamond) विवादों से भरा रहा है। इस अद्वितीय हीरे का नाम फ़ारसी में “प्रकाश का पर्वत” है, और यह अपनी अद्वितीय चमक और आकार के लिए विश्व प्रसिद्ध है। कोहिनूर की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियाँ हैं, लेकिन व्यापक रूप से स्वीकार्य मान्यता यह है कि इस हीरे को भारत के गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था। गोलकुंडा, जो अब आंध्र प्रदेश में स्थित है, उस समय दुनिया का एकमात्र ऐसा स्थान था जहां से हीरे प्राप्त होते थे। 13वीं शताब्दी से यह हीरा भारत के विभिन्न राजाओं के खजानों की शोभा बढ़ाता रहा, जिसमें काकतीय वंश से लेकर दिल्ली के सुल्तानों और मुगल शासकों तक सभी शामिल थे। मुगलों के समय में यह हीरा बाबर के पास आया, जिन्होंने इसे अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” में उल्लेखित किया। बाद में, शाहजहां ने इसे अपने प्रसिद्ध मयूर सिंहासन में जड़वाया, जो उनकी शक्ति और समृद्धि का प्रतीक बना। मुगलों के पतन के बाद, कोहिनूर, अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली के पास चला गया, जिन्होंने इसे अपनी ताकत का प्रतीक बनाया। 18वीं शताब्दी के अंत में, पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अपने खजाने में शामिल किया।

रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया और कोहिनूर उनके हाथ लग गया। 1849 में, इसे इंग्लैंड ले जाया गया और महारानी विक्टोरिया को सौंपा गया, जिसके बाद यह ब्रिटिश राजगद्दी का हिस्सा बन गया। लेकिन कोहिनूर के साथ एक अभिशाप की कहानियाँ भी जुड़ी हुई थीं, जिसके अनुसार यह हीरा जिसके पास भी रहा, उसकी जिंदगी में खून, हिंसा, और धोखे का साया रहा। ब्रिटिश शाही परिवार ने इस अभिशाप से डरते हुए इसे हमेशा महिला सदस्यों को पहनने के लिए दिया, और इसे महारानी के मुकुट में जड़ा गया। आज, यह हीरा लंदन के टॉवर में रखा हुआ है, और इसे लेकर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और ईरान सहित कई देशों ने अपना दावा किया है। हालांकि, यह विवादित धरोहर अभी भी ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है, और इसे भारत लौटाने की मांग समय-समय पर उठती रही है। कोहिनूर न केवल एक कीमती रत्न है, बल्कि यह उपनिवेशवाद के काले अध्याय का प्रतीक भी है। इस हीरे का इतिहास हमें याद दिलाता है कि कैसे विदेशी शासकों ने हमारे खजाने को लूटा और हमारी सांस्कृतिक धरोहर को हड़प लिया। आज भी कोहिनूर की वापसी (Mystery of Kohinoor Diamond) के लिए संघर्ष जारी है, और यह भारतीय जनमानस में गर्व और पीड़ा का एक स्थायी प्रतीक बना हुआ है।

हाल ही में जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस (Journal of Earth System Science) में पब्‍ल‍िश एक रिसर्च में दावा क‍िया गया क‍ि कोह‍िनूर समेत दुनिया के सबसे फेमस हीरे भारत के आंध्र प्रदेश के वज्रकरुर किम्बरलाइट फील्‍ड (vajrakarur kimberlite field) से 300 किलोमीटर दूर पाए गए | यरूशलेम के हिब्रू विश्वविद्यालय में हीरों का अध्ययन करने वाले भू-रसायनज्ञ याकोव वीस ने कहा, हमने पाया क‍ि वज्रकरुर में जैसी जमीन है, वह हीरों के ल‍िए मजबूत आधार है | हमने यहां की म‍िट्टी का अध्‍ययन क‍िया, पता चला क‍ि ल‍िथोस्फीयर (lithosphere) यानी कठोर परत और ऊपरी मेंटल में ऐसे हीरों को रखने के पर्याप्‍त सबूत हैं | गोलकुंडा के हीरे मेंटल में अधिक गहराई में बने हैं | शायद धरती के केंद्र के आसपास ये बने होंगे |

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कोहिनूर का ब्रिटेन तक का सफर – Mystery of Kohinoor Diamond

कोहिनूर हीरे का ब्रिटेन तक का सफर इतिहास की सबसे दिलचस्प और विवादास्पद कहानियों में से एक है। इस हीरे की यात्रा का आरंभ भारत के गोलकुंडा की खदानों से हुआ, जहां से इसे निकाला गया और सदियों तक भारतीय राजाओं और शासकों के खजाने की शोभा बना रहा। 18वीं शताब्दी के अंत तक, यह हीरा पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुँचा। रणजीत सिंह ने इसे अपने खजाने में शामिल किया और इसे अपनी शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना।

  • 1849 में, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर विजय प्राप्त की, तो कोहिनूर भी अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारी और उनके बेटे, 11 वर्षीय महाराजा दलीप सिंह को मजबूर किया गया कि वे कोहिनूर हीरा अंग्रेजों को सौंप दें। इसके बाद, अंग्रेजों ने इसे महारानी विक्टोरिया को उपहार के रूप में भेजने का निर्णय लिया।
  • कोहिनूर को इंग्लैंड भेजने की प्रक्रिया भी कम रोमांचक नहीं थी। इसे एक विशेष जहाज में बेहद कड़ी सुरक्षा के साथ भेजा गया। 1850 में, यह हीरा इंग्लैंड पहुँचा, जहां इसे महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया। महारानी ने इसे अपने निजी आभूषणों में शामिल किया, और इसके बाद से यह ब्रिटिश शाही परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गया।
  • महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के दौरान, कोहिनूर को उनके ताज में जड़ा गया। हालांकि, इसकी असली चमक को बनाए रखने के लिए इसे फिर से काटा और पॉलिश किया गया, जिसके बाद इसका वजन कम होकर 105.6 कैरेट रह गया। यह हीरा अब ब्रिटिश शाही मुकुट का हिस्सा है, जिसे वर्तमान में लंदन के टॉवर में प्रदर्शित किया गया है।
  • कोहिनूर के ब्रिटेन पहुँचने के बाद से ही इसे लेकर विवाद और चर्चाएं जारी हैं। कई देशों, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने इस हीरे पर अपने दावे पेश किए हैं और इसे वापस लौटाने की मांग की है। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इन मांगों को खारिज कर दिया है और कोहिनूर को ब्रिटिश धरोहर का हिस्सा मानती है।

इस प्रकार, कोहिनूर का ब्रिटेन तक का सफर न केवल एक कीमती रत्न की यात्रा है, बल्कि यह औपनिवेशिक इतिहास और उसकी जटिलताओं का भी प्रतीक है। यह हीरा आज भी कई भारतीयों के लिए गर्व और दुख का विषय बना हुआ है, और इसके लौटने की उम्मीदें अब भी कायम हैं।

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कोहिनूर का अभिशाप और ब्रिटिश शाही परिवार – Mystery of Kohinoor Diamond

जब कोहिनूर ब्रिटिश राजशाही के हाथों में आया, तो उन्होंने भी इसके अभिशाप से डरते हुए इसे हमेशा महारानी के मुकुट में ही रखा। यह कहा जाता था कि इस हीरे को सिर्फ कोई देवता या कोई महिला ही बिना किसी बुरे परिणाम के पहन सकती है। इसलिए इसे महारानी विक्टोरिया से लेकर वर्तमान समय तक शाही महिलाओं के मुकुट में रखा गया है।

सबसे पहले यह महारानी एलेक्जेंड्रा के मुकुट में गया, फिर महारानी मैरी के मुकुट में, और आखिर में 1937 में यह इंग्लैंड की महारानी की मां के मुकुट में गया। महारानी की मां का अंतिम संस्कार 2002 में हुआ और तब आखिरी बार हमने इस मुकुट को सार्वजनिक रूप से देखा। आज यह मुकुट और कोहिनूर, लंदन के टॉवर के अंदर, वाटरलू बैरक के अंदर, एक रत्न गृह में रखा गया है।

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कोहिनूर की भारत वापसी की मांग

कोहिनूर हीरा भारतीय इतिहास में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है, खासकर इसकी वापसी की मांग को लेकर। भारतीय इतिहासकार और नेता लंबे समय से इस हीरे की भारत में वापसी की मांग कर रहे हैं। 2015 में शशि थरूर द्वारा ऑक्सफोर्ड यूनियन में दिया गया भाषण, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की आलोचना की थी, काफी प्रसिद्ध हुआ। कोहिनूर की वापसी की मांग दशकों से चर्चा का विषय रही है। यह हीरा न केवल अपनी अद्वितीय चमक और मूल्य के लिए जाना जाता है, बल्कि इसे भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी माना जाता है।

कोहिनूर हीरा भारतीय शासकों के खजाने का हिस्सा रहा और इसे देश की संपन्नता और शक्ति का प्रतीक माना जाता था। लेकिन 1849 में, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा किया, तो इसे महाराजा दलीप सिंह से छीनकर इंग्लैंड भेज दिया गया। तब से यह हीरा ब्रिटिश शाही परिवार के मुकुट का हिस्सा बना हुआ है।

भारत में कोहिनूर की वापसी की मांग लगातार उठती रही है। भारतीय संस्कृति मंत्रालय ने 2016 में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कोहिनूर की वापसी की मांग की गई थी, लेकिन ब्रिटेन ने इसे खारिज कर दिया। ब्रिटिश सरकार का कहना है कि कोहिनूर कानूनी तौर पर लाया गया था और इसे महारानी विक्टोरिया को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन यह तर्क कई लोगों के लिए संतोषजनक नहीं है।

यह मुद्दा केवल भारत तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी इस पर अपने दावे पेश किए हैं, क्योंकि इस हीरे का इतिहास इन क्षेत्रों से भी जुड़ा हुआ है। हालांकि, भारत में इस मुद्दे पर विशेष जोर है, क्योंकि यह हीरा भारतीय संस्कृति और इतिहास का अहम हिस्सा रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी इस पर बहस चलती रहती है कि कोहिनूर जैसे ऐतिहासिक धरोहरों को उनके मूल देशों में लौटाया जाना चाहिए, ताकि उन देशों के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव कर सकें।

कोहिनूर की वापसी की मांग आज भी भारत के राष्ट्रीय गौरव और इतिहास के प्रति सम्मान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मुद्दा भारत के लोगों की भावना और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रति उनके विचारों को उजागर करता है और भविष्य में भी यह मुद्दा बने रहने की संभावना है।

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कोहिनूर और अंतरराष्ट्रीय विवाद – Mystery of Kohinoor Diamond 

कोहिनूर हीरे पर न केवल भारत, बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और ईरान ने भी अपना दावा किया है। 2000 में, अफगानिस्तान में तालिबान ने कहा था कि वे कोहिनूर को उनके देश को लौटा देंगे। 2016 में पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि अंग्रेजों ने यह हीरा आज के पाकिस्तान से चुराया था, क्योंकि सिख साम्राज्य की राजधानी लाहौर थी।

हालांकि, इतिहासकारों का मानना है कि इस हीरे पर दावा करना मुश्किल है, क्योंकि उस समय यह क्षेत्र विभिन्न शासकों के अधीन था और राष्ट्रीय सीमाएं आज की तरह स्पष्ट नहीं थीं। इसके बावजूद, कोहिनूर का मुद्दा आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित बना हुआ है।

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निष्कर्ष: Mystery of Kohinoor Diamond

कोहिनूर हीरा भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसका इतिहास कई विवादों और रहस्यों से (Mystery of Kohinoor Diamond) भरा हुआ है। यह हीरा न केवल अपनी असाधारण चमक और मूल्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसे भारतीय शाही परिवारों का हिस्सा भी माना जाता है। 1849 में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा किया, तो इस हीरे को महाराजा दलीप सिंह से छीनकर इंग्लैंड भेज दिया गया। तब से यह ब्रिटिश शाही परिवार के मुकुट का हिस्सा बना हुआ है, जो आज भी ब्रिटेन के ताज में जड़ा हुआ है।

कोहिनूर की वापसी की मांग एक ज्वलंत मुद्दा बन चुका है। भारत में इसे लौटाने की मांग को लेकर लगातार आंदोलन और याचिकाएँ की जाती रही हैं। भारतीय नेताओं और नागरिकों का मानना है कि यह हीरा ऐतिहासिक अन्याय का प्रतीक है और इसे वापस लाना भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की पुनर्बहाली का एक महत्वपूर्ण कदम होगा। हालांकि, ब्रिटिश सरकार का कहना है कि कोहिनूर कानूनी तौर पर इंग्लैंड लाया गया था (Mystery of Kohinoor Diamond) और इसे उपहार के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन यह तर्क कई लोगों के लिए असंतोषजनक है।

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