राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना | National River Linking Project | NRLP

‘राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना | National River Linking Project | NRLP’ अपने किस्म की एक अनूठी योजना है । इस योजना के तहत देश में कुल 30 रिवर- लिंक बनाने की योजना है, जिनसे कुल 37 नदियों को एक -दुसरे से जोड़ा जाएगा । इसके लिए 15,000 कि.मी. लंबी नई नहरों का निर्माण प्रस्तावित है । यह परियोजना दो चरणों में होगी । एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास का होगा, जिसमें कुल 14 लिंक चुने गए हैं। गंगा , यमुना, कोसी , सतलज, जैसी नदियाँ (Rivers like Ganga, Yamuna, Kosi, Sutlej) इसका हिस्सा होंगी । जबकि दूसरा भाग प्रायद्वीप नदियों (दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने वाली) के विकास का है, जिसके तहत 16 लिंक बनाने की योजना है । महानदी , गोदावरी, कृष्णा , कावेरी , नर्मदा इत्यादि (Mahanadi, Godavari, Krishna, Kaveri, Narmada etc.) इसका इसका हिस्सा होंगी ।

केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में कोसी- मेची नदी को जोड़ने के लिए 4900 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत किये जाने के कारण यह योजना ख़बरों में है। बजट 2022-23 में, 44,605 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ केन -बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project) के कार्यान्वयन के लिए घोषणा की जा चुकी है । आइये राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं ।

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Table of Contents

राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना का इतिहास | History of National River Linking Project

दरअसल, नदियों की इंटरलिंकिंग का विचार 161 वर्ष पुराना है | 1858 में ब्रिटिश सैन्य इंजीनियर आर्थर थॉमस कॉटन ने बड़ी नदियों के बीच नहर जोड़ने का प्रस्ताव दिया था, जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी को बंदरगाहों की सुविधा प्राप्त हो सके एवं दक्षिण-पूर्वी प्रांतों में पुनः-पुनः पड़ने वाले सूखे से निपटा जा सके |

1919 – सर आर्थर कॉटन का प्रस्ताव (Sir Arthur Cotton’s proposal)

नदियों को जोड़ने का विचार सबसे पहले 1919 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य अभियंता सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इस प्रारंभिक दूरदर्शी प्रस्ताव ने नदी जोड़ो पर भविष्य की चर्चाओं के लिए आधार तैयार किया।

1960 – के.एल राव का पुनरुद्धार (Revival of K.L Rao)

1960 में, ऊर्जा और सिंचाई राज्य मंत्री के.एल राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव देकर इस अवधारणा को पुनर्जीवित किया। इसने प्रमुख नदियों को जोड़ने के संभावित लाभों के बारे में चर्चा को फिर से जीवंत कर दिया।

1982 – राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency (NWDA)

पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 1982 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) की स्थापना करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस संस्था ने नदी जोड़ो परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2002 – सुप्रीम कोर्ट का निर्देश (Supreme Court’s instructions)

2002 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को 2003 तक नदियों को जोड़ने की योजना बनाने और 2016 तक इसे लागू करने का निर्देश दिया। इस निर्देश ने जल वितरण चुनौतियों को संबोधित करने की तात्कालिकता और महत्व पर प्रकाश डाला।

2003 – सरकारी टास्क फोर्स (government task force)

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रतिक्रिया देते हुए, सरकार ने 2003 में नदी जोड़ की जटिलताओं को समझने और कार्यान्वयन के लिए एक व्यापक योजना तैयार करने के लिए एक टास्क फोर्स की स्थापना की।

2012 – सुप्रीम कोर्ट का अनुरोध (Supreme Court request)

2012 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना में अपनी रुचि दोहराई और अनुरोध किया कि नदी जोड़ो पहल को फिर से शुरू करने के प्रयास तेज किए जाएं।

2014 – केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को मंजूरी (Ken-Betwa river linking project approved)

2014 में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर घटित हुआ जब कैबिनेट ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को मंजूरी दी। इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश में केन नदी को उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी से जोड़ना था।

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नदी जोड़ो परियोजना | River Linking Project | NRLP | इंटरलिंकिंग ऑफ़ रिवर्स (ILR)| Interlinking of Reverse (ILR)

भारत में नदियों को जोड़ने के लिए National River Linking Project | NRLP परियोजना एक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य नहरों, जलाशयों और डायवर्जन चैनलों के नेटवर्क के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों को जोड़ना है। परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य जल-समृद्ध क्षेत्रों से अधिशेष जल को जल-कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करके जल की कमी, बाढ़ और जल संसाधनों के असमान वितरण को संबोधित करना है। ILR परियोजना में दो मुख्य घटक शामिल हैं: प्रायद्वीपीय नदियाँ विकास घटक और हिमालयी नदियाँ विकास घटक।

समर्थकों का तर्क है कि परियोजना सिंचाई में सुधार कर सकती है, पनबिजली उत्पादन के अवसर प्रदान कर सकती है और सूखे और बाढ़ के प्रभावों को कम कर सकती है। हालाँकि, National River Linking Project | NRLP को पर्यावरणीय चिंताओं, समुदायों के विस्थापन, अंतरराज्यीय जल विवाद, वित्तीय व्यवहार्यता और तकनीकी जटिलताओं सहित महत्वपूर्ण चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। Interlinking of Reverse (ILR) का कार्यान्वयन बहस और चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें समर्थक टिकाऊ जल प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना, पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों और हितधारक परामर्श की वकालत कर रहे हैं।

interlinking of rivers under National River Linking Project

गंगा -ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में बाढ़ को नियंत्रित करने के अलावा, यह राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को भी लाभान्वित करेगा । गंगा -ब्रह्मपुत्र में हर साल आने वाली बाढ़ के कारण बिहार और असम सबसे अधिक प्रभावित होते हैं । इसके उप -घटक के तौर पर गंगा की पूर्वी सहायक नदियों को साबरमती और चंबल नदी प्रणालियों से जोड़ना भी लक्षित है । वहीँ दक्षिण भारत की नदियों महानदी और गोदावरी से अधिशेष पानी कृष्णा, कावेरी, पेन्नार और वैगई नदियों में स्थानांतरित किए जाने का लक्ष्य है । इसके तहत, चार उप-घटक हैं:

  • महानदी और गोदावरी नदी घाटियों को कावेरी, कृष्णा और वैगई नदी प्रणालियों से जोड़ना;
  • केन से बेतवा नदी, और पार्वती और कालीसिंध नदियाँ चंबल नदी तक;
  • तापी के दक्षिण में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को जोड़ना; और
  • पश्चिम की ओर बहने वाली कुछ नदियों को पूर्व की ओर बहने वाली नदियों से जोड़ना

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राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य | Some important facts about National River Linking Project

  • देश की कुछ नदियों में आवश्यकता से अधिक जल रहता है तथा अधिकांश नदियाँ ऐसी हैं जो वर्षा ऋतु को छोड़कर वर्षभर सूखी ही रहती हैं या उनमें जल की मात्रा बहुत ही कम रहती है |
  • ब्रह्मपुत्र जैसी अन्य नदियों में जल अधिक रहता है, उनसे बाढ़ आने का ख़तरा बना रहता है |
  • National River Linking Project | NRLP ‘जल अधिशेष’ वाली नदी घाटी (जो बाढ़-प्रवण होता है) से जल की ‘कमी’ वाली नदी घाटी (जहाँ जल की कमी या सूखे की स्थिति रहती है) में अंतर-घाटी जल अंतरण परियोजनाओं के जरिये जल के हस्तांतरण की परिकल्पना करती है | इसे औपचारिक रूप से हम राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) के रूप में जानते हैं |
  • यहाँ “जल अधिशेष” से हमारा तात्पर्य नदी में उपलब्ध उस अतिरिक्त जल से है जो सिंचाई, घरेलू खपत और उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् शेष बच जाता है, परन्तु इस दृष्टिकोण में नदियों के स्वयं की जल की जरूरतों की अनदेखी कर दी जाती है |
  • जल की अल्पता को भी मात्र मानव आवश्यकताओं के परिप्रेक्ष्य में देखा गया है, न कि नदी की खुद की जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में जिनमें कई अन्य कारक भी सम्मिलित होते हैं |

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राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के उद्देश्य | Objectives of National River Linking Project

  • राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) का मकसद, पानी की ज़्यादा मात्रा वाले इलाकों से पानी की कमी वाले इलाकों में पहुंचाना है | इस परियोजना के तहत, 3,000 भंडारण बांधों के ज़रिए देश की 37 नदियों को जोड़ा जाएगा | इससे पानी की प्रचुरता वाले इलाकों से पानी की कमी वाले इलाकों में पहुंचाया जा सकेगा |
  • इस परियोजना से बाढ़ और सूखे को नियंत्रित किया जा सकेगा और देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या को सुलझाने में मदद मिलेगी | साथ ही, इससे जलविद्युत उत्पादन में भी मदद मिलेगी |
  • Interlinking of Reverse (ILR) के तहत, 15,000 किलोमीटर लंबी नई नहरें बनाई जाएंगी, जिनमें 174 घन किलोमीटर पानी का भंडारण किया जा सकेगा | इस परियोजना में 30 नदी-जोड़ो परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें से 14 नदियां हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय हैं | इस परियोजना का प्रबंधन राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency (NWDA) करती है |
  • परियोजना का दायरा राष्ट्रीय नदी-जोड़ो परियोजना में लगभग 3000 भंडारण बाँधों के नेटवर्क के माध्यम से देश भर में 37 नदियों को जोड़ने के लिये 30 लिंक शामिल होंगे। इसका लक्ष्य भविष्य में देश की पानी की ज़रूरतों को पूरा करना है।
  • यह बेहद महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके तहत 15 हज़ार किमी | लंबी नई नहरें बनानी होंगी, जिनमें 174 घन किमी | पानी का भंडारण किया जा सकेगा। NPP के अंतर्गत 30 नदी-जोड़ो परियोजनाओं (जिनमें 14 नदियाँ हिमालयी और शेष 16 प्रायद्वीपीय हैं) की रूपरेखा तैयार करने की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) को सौंपी गई है।
  • Interlinking of Reverse (ILR) की शुरुआत साल 1999 में एनडीए सरकार के बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी | हालांकि, साल 2004 में एनडीएन सरकार आने के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई |
  • साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि वह इस परियोजना पर समयबद्ध तरीके से काम करे | हालांकि, पर्यावरणविदों के विरोध की वजह से इस परियोजना में देरी हुई |
  • राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना का लक्ष्य लगभग 3000 भंडारण बांधों के नेटवर्क के माध्यम से भारत में 37 नदियों को जोड़कर पानी की अधिकता वाले बेसिनों से पानी की कमी वाले बेसिनों में पानी स्थानांतरित करना है, जिसके परिणामस्वरूप एक विशाल दक्षिण एशियाई जल ग्रिड की स्थापना होगी।

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नदी जोड़ो परियोजना में तीन अलग-अलग घटक शामिल हैं | The river linking project consists of three distinct components

हिमालयी घटक | Himalayan component

एनआरएलपी के हिमालयी घटक के तहत, 14 परियोजनाएं योजना चरण में हैं। इन परियोजनाओं में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों पर भंडारण बांधों का निर्माण शामिल है। इसके अतिरिक्त, गंगा और यमुना नदियों को जोड़ने का भी प्रस्ताव है। इस घटक का उद्देश्य न केवल गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में बाढ़ को नियंत्रित करना है, बल्कि राजस्थान, हरियाणा और गुजरात जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों को लाभ पहुंचाना भी है। इसमें आगे दो उप-घटक शामिल हैं:

  • एक, गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन को महानदी बेसिन से जोड़ना।
  • और दूसरा, गंगा की पूर्वी सहायक नदियों को साबरमती और चंबल नदी प्रणालियों से जोड़ना।

प्रायद्वीपीय घटक | peninsular component

एनआरएलपी का प्रायद्वीपीय घटक दक्षिणी भारत की 16 नदियों को जोड़ने पर केंद्रित है। इसमें महानदी और गोदावरी नदियों से अतिरिक्त पानी को कृष्णा, कावेरी, पेन्नार और वैगई नदियों में स्थानांतरित करना शामिल है। इस घटक में चार उप-घटक संबंध शामिल हैं:

  • महानदी और गोदावरी नदी घाटियों को कावेरी, कृष्णा और वैगई नदी प्रणालियों से जोड़ना।
  • केन नदी को बेतवा नदी से और पारबती और कालीसिंध नदियों को चंबल नदी से जोड़ना।
  • तापी नदी के दक्षिण में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को बंबई के उत्तर में बहने वाली नदियों के साथ एकीकृत करना।
  • पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों और पूर्व की ओर बहने वाली नदियों के बीच संबंध स्थापित करना।
  • नदियों को जोड़ने से भारत के जल प्रबंधन परिदृश्य को बदलने की क्षमता है, जिससे सूखे और बाढ़ की चुनौतियों का स्थायी समाधान मिलेगा।

अंतर्राज्यीय नदियों को जोड़ने वाला घटक | Component connecting interstate rivers

  • इस घटक में अलग-अलग राज्यों के भीतर नदियों को आपस में जोड़ना, अंतर-राज्य जल हस्तांतरण और प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन में योगदान देना शामिल है।
  • इस महत्वाकांक्षी परियोजना की देखरेख और कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भारत में जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की है।
  • एनआरएलपी, जिसे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के रूप में भी जाना जाता है, बड़े पैमाने पर अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण परियोजनाओं की कल्पना करता है।
  • ये परियोजनाएँ अधिशेष और बार-बार बाढ़ का अनुभव करने वाले बेसिनों से पानी को पानी की कमी, सूखे और कमी से जूझ रहे बेसिनों की ओर मोड़ने का प्रयास करती हैं।
  • व्यापक लक्ष्य एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली बनाना है जो पानी की उपलब्धता में क्षेत्रीय विविधताओं को संबोधित करने और समग्र जल सुरक्षा को बढ़ाने के लिए देश के जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करता है।

rivers on india map under National River Linking Project

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हिमालयी क्षेत्र की संयोजक नहरों के नाम | Names of connecting canals of Himalayan region

  1. सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियां (Son Dam – Southern Tributaries of Ganga)
  2. सुवर्णरेखा-महानदी (Subarnarekha – Mahanadi)
  3. शारदा-यमुना (Sharada – Yamuna)
  4. राजस्थान-साबरमती (Rajasthan – Sabarmati)
  5. यमुना-राजस्थान (Yamuna – Rajasthan)
  6. ब्रह्मपुत्र-गंगा(जोगीगोपा-तीस्ता-फरक्का) (Brahmaputra – Ganga (Jogigopa – Teesta – Farakka))
  7. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा) (Brahmaputra – Ganga (Manas – Sankosh – Teesta – Ganga))
  8. फरक्का-सुंदरवन (Farakka – Sundarbans)
  9. फरक्का-दामोदर-सुवर्णरेखा (Farakka – Damodar – Subarnarekha)
  10. चुनार-सोन बैराज (Chunar – Son Barrage)
  11. घाघरा-यमुना (Ghaghara – Yamuna)
  12. गंडक-गंगा (Gandak – Ganga)
  13. कोसी-मेकी (Kosi – Mechi)
  14. कोसी-घाघरा (Kosi – Ghaghara)

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प्रायद्वीपीय क्षेत्र की संयोजक नहरों के नाम | Names of connecting canals of peninsular region

  1. कावेरी (कट्टई)- वईगई-गुंडुर (Kaveri (Kattei) – Vaigai – Gundur)
  2. कृष्णा (अलमाटी)-पेन्नार (Krishna (Almatti) – Pennar)
  3. कृष्णा (नागार्जुन सागर)-पेन्नार (स्वर्णशिला) (Krishna (Nagarjuna Sagar) – Pennar (Swarnashila))
  4. कृष्णा (श्रीसैलम)-पेन्नार (प्रोडात्तुर) (Krishna (Srisailam) – Pennar (Proddatur))
  5. केन-बेतवा लिंक (Ken-Betwa Link)
  6. गोदावरी (इंचमपाली लो डैम)-कृष्णा (नागार्जुन टेल पाँड) (Godavari (Inchampalli Low Dam) – Krishna (Nagarjunasagar))
  7. गोदावरी (इंचमपाली)-कृष्णा (नागार्जुन सागर) (Godavari (Inchampalli) – Krishna (Nagarjuna Sagar))
  8. गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा) (Godavari (Polavaram) – Krishna (Vijayawada))
  9. दमनगंगा-पिंजाल (Damanganga – Pinjal)
  10. नेत्रावती-हेमावती (Netravati – Hemavati)
  11. पम्बा-अचनकोविल-वप्पार (Pamba – Achankovil – Vaippar)
  12. पार-तापी- नर्मदा (Par-Tapi-Narmada)
  13. पार्वती-काली सिंध-चंबल (Parvati-Kali Sindh-Chambal)
  14. पेन्नार (स्वर्णशिला)-कावेरी (ग्रांड आर्नीकट) (Pennar (Swarnashila) – Kaveri (Grand Anicut))
  15. महानदी (मणिभद्रा)-गोदावरी (दौलाईस्वरम) (Mahandi (Manibhadra) – Godavari (Dowlaiswaram))
  16. वेदती-वरदा (Vedati – Wardha)

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राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के तहत, नदियों को जोड़ने के फायदे | Benefits of linking rivers under the National River Linking Project

  • जलवैज्ञानिक असंतुलन: 28 से 29 दिनों की वास्तविक वर्षा अवधि के साथ, भारत में एक महत्वपूर्ण जलवैज्ञानिक असंतुलन है। जहां कुछ स्थानों पर सूखा पड़ता है, वहीं अन्य स्थानों पर बहुत प्रचुर वर्षा होती है। इंटरलिंकिंग से पानी बाढ़ वाले क्षेत्रों से सूखे वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित हो जाएगा।
  • सिंचाई के लाभ: पानी की कमी वाले पश्चिमी प्रायद्वीप में, नदियों को जोड़ने से 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने की क्षमता मिलती है। इससे भारत को कृषि आय, फसल उत्पादन और नौकरियां बढ़ाने में मदद मिलेगी। सबसे बढ़कर, आपस में जुड़ी नदियों की बदौलत भारत खाद्य सुरक्षा हासिल करने के करीब पहुंच जाएगा।
  • जल आपूर्ति: परियोजना के हिस्से के रूप में 90 बिलियन क्यूबिक मीटर शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की योजना बनाई गई है। यह भारत की पेयजल कमी की समस्या का समाधान कर सकता है। नदियों का अंतर्संबंध औद्योगिक उद्देश्यों के लिए 64 | 8 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध करा सकता है। इसके अलावा, इंटरलिंकिंग गर्मियों में पानी की कमी के कारण वन्यजीवों की रक्षा कर सकती है और मत्स्य पालन के अस्तित्व में सहायता कर सकती है।
  • अंतर्देशीय नेविगेशन सुधार: यदि नदियाँ आपस में जुड़ जाएँ तो नेविगेशनल चैनलों का एक नेटवर्क बनाया जाएगा। सड़कों और रेलमार्गों की तुलना में, जल परिवहन अधिक किफायती और कम प्रदूषणकारी है। इसके अतिरिक्त, नदियों को जोड़ने से राजमार्गों और ट्रेनों पर दबाव कम हो सकता है।
  • बिजली उत्पादन: आपस में जुड़ी नदियाँ कुल मिलाकर 34 गीगावॉट बिजली का उत्पादन कर सकती हैं। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के उपयोग में कमी से भारत को लाभ होगा। इसके अतिरिक्त, यह पेरिस समझौते और ग्लासगो जलवायु समझौते में उल्लिखित भारत के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।

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राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत चुनौतियाँ | Challenges under National River Linking Project

  • परियोजना व्यवहार्यता: परियोजना की अनुमानित लागत 5. 6 लाख करोड़ रुपये है। उसमें विशाल संरचनाएं भी जोड़ना जरूरी है। इन सबके लिए मजबूत इंजीनियरिंग कौशल की आवश्यकता है। इसलिए, आवश्यक व्यय और श्रम बहुत अधिक है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: यह विशाल परियोजना संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगी। इस तरह के स्थानांतरण और परिवर्तन से नदी प्रणालियों के जानवरों, वनस्पतियों और जीवों को नुकसान होगा। कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य नदी प्रणालियों के किनारे स्थित हैं। विचार को क्रियान्वित करते समय, इन सभी कारकों पर विचार करना आवश्यक होगा। इस परियोजना से समुद्र में प्रवेश करने वाले मीठे पानी की मात्रा में कमी आ सकती है, जिससे समुद्री जलीय प्रजातियाँ प्रभावित होंगी।
  • समाज पर प्रभाव: बाँधों और जलाशयों के निर्माण के कारण बहुत से लोग उजड़ जायेंगे। इसके परिणामस्वरूप कई लोगों को अत्यधिक पीड़ा का अनुभव होगा। उन्हें आवश्यक पुनर्वास और मुआवजा मिलना चाहिए।
  • बाढ़ पर नियंत्रण: कुछ लोगों ने बाढ़ को कम करने की इस परियोजना की क्षमता के बारे में संदेह व्यक्त किया है। भारत का अनुभव अलग रहा है, भले ही यह तकनीकी रूप से बोधगम्य है। हीराकुंड बांध, दामोदर बांध और अन्य जैसे बड़े बांध कभी-कभी पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में बाढ़ का कारण बनते हैं।
  • अंतरराज्यीय विवाद: नदी जोड़ो परियोजना को केरल, सिक्किम और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों ने चुनौती दी है। लिंक किए गए लेख में भारत में अंतरराज्यीय नदी विवादों के बारे में अधिक जानकारी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विवाद: परियोजना के हिमालयी घटक में बांधों के निर्माण और नदियों को जोड़ने से आसपास के देशों पर असर पड़ेगा। परियोजना को क्रियान्वित करते समय इस पर विचार करना आवश्यक होगा। बांग्लादेश द्वारा ब्रह्मपुत्र से गंगा में जल प्रवाह का विरोध किया गया है।

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FAQs

Q | भारत की पहली परियोजना कौन सी है?

दामोदर घाटी बहुउद्देश्यीय परियोजना को भारत की पहली बहुउद्देशीय परियोजना माना जाता है जो 7 जुलाई 1948 को अस्तित्व में आई थी।

Q | नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत कब हुई?

1999 में एनडीए सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदी जोड़ो परियोजना पर काम शुरू किया था। हालांकि 2004 में एनडीएन सरकार जाते ही यह योजना फिर ठंडे बस्ते में चली गई। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि वह इस परियोजना पर समयबद्ध तरीके से अमल करे। जिससे इसकी लागत और न बढ़े।

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Q | भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की योजना क्या कहलाती है?

नदियों को आपस में जोड़ना – राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (एनआरएलपी)

Q | भारत में कितनी नदी जोड़ने वाली परियोजनाएं हैं?

एनपीपी के दो घटक हैं, अर्थात् हिमालयी नदियाँ विकास घटक और प्रायद्वीपीय नदियाँ विकास घटक। एनपीपी के तहत 30 लिंक परियोजनाओं की पहचान की गई है। केन बेतवा लिंक परियोजना (केबीएलपी) एनपीपी के तहत पहली लिंक परियोजना है, जिसके लिए कार्यान्वयन शुरू हो गया है।

Q | राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना क्या है?

यह एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की विभिन्न नदियों को नहरों और बाँधों के माध्यम से जोड़कर पूरे देश में जल संसाधनों का समान वितरण करना है। इसका लक्ष्य सूखे से ग्रस्त क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराना, बाढ़ को नियंत्रित करना, और जल विद्युत उत्पादन में वृद्धि करना है।

Q | इस परियोजना के क्या लाभ हैं?

  • जल सुरक्षा: यह परियोजना पूरे देश में पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने में मदद करेगी, खासकर सूखे वाले क्षेत्रों में।
  • बाढ़ नियंत्रण: नदियों को जोड़ने से बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने और उसकी तीव्रता को कम करने में मदद मिलेगी।
  • सिंचाई: इससे किसानों को सिंचाई के लिए अधिक पानी मिलेगा, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी।
  • जल विद्युत: नदियों को जोड़ने से जल विद्युत उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी, जिससे स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ेगा।
  • पर्यावरण: इस परियोजना से भूजल स्तर को बढ़ाने और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने में मदद मिलेगी।

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Q | इस परियोजना के क्या नुकसान हैं?

  • पर्यावरणीय प्रभाव: नदियों को जोड़ने से जल प्रदूषण, नम भूमि का विनाश, और जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।
  • सामाजिक प्रभाव: इस परियोजना के कारण विस्थापन और सामाजिक संघर्ष हो सकता है।
  • आर्थिक प्रभाव: यह परियोजना बहुत महंगी है और इसके निर्माण में कई साल लग सकते हैं।
  • तकनीकी चुनौतियां: नदियों को जोड़ना एक जटिल तकनीकी कार्य है और इसमें कई चुनौतियां शामिल हैं।

Q | इस परियोजना की वर्तमान स्थिति क्या है?

इस परियोजना को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है और कई विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। विभिन्न नदियों को जोड़ने के लिए कई अध्ययन और सर्वेक्षण किए गए हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस योजना तैयार नहीं की गई है।

Q | इस परियोजना का भविष्य क्या है?

यह परियोजना भारत सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, लेकिन इसके कई आलोचक भी हैं। सरकार को इस परियोजना के लाभों और नुकसानों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने और सभी हितधारकों के साथ परामर्श करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण होगा कि इस परियोजना को पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से टिकाऊ तरीके से लागू किया जाए।

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