Ancient Indian Technology: प्राचीन तकनीक जो आज विलुप्त हो चुकी है।

Ancient Indian Technology: प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी विश्व में अग्रणी थी। भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की। वे कृषि, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, धातु विज्ञान, वास्तुकला और अन्य कई क्षेत्रों में महारत हासिल कर ली थी। भारतीयों ने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किए जो आज भी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने शून्य की खोज की, जो गणित के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। उन्होंने दशमलव प्रणाली का भी आविष्कार किया, जो आज भी दुनिया भर में उपयोग की जाती है। भारतीय चिकित्सकों ने आयुर्वेद नामक एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली विकसित की, जो आज भी लोकप्रिय है। भारतीय खगोलविदों ने सौरमंडल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की।

भारतीय वास्तुकारों ने अद्भुत मंदिरों और महलों का निर्माण किया, जो आज भी खड़े हैं। भारतीय धातुकारों ने उच्च गुणवत्ता वाली इस्पात बनाने की तकनीक विकसित की। भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने उन्नत कृषि पद्धतियों का विकास किया। दुर्भाग्यवश, समय के साथ Ancient Indian Technology का महत्व कम हो गया। विदेशी आक्रमणों, सामाजिक परिवर्तनों और औद्योगिक क्रांति ने भारतीय प्रौद्योगिकी के विकास को प्रभावित किया। आजकल, हम प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी (Ancient Indian Technology) के अवशेष केवल पुरातात्विक स्थलों पर ही देख सकते हैं।

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आधुनिक विज्ञान में प्राचीन भारत का योगदान

भारत प्राचीन काल से ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान देता रहा है। आज भी, जिसे हम ‘पारंपरिक ज्ञान’ कहते हैं, वह वास्तव में वैज्ञानिक तर्क पर आधारित है। आज प्रौद्योगिकी को अनुप्रयुक्त विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है, लेकिन आरंभिक मनुष्यों ने पत्थर-कार्य, कृषि, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन, धातुकर्म, कपड़ा निर्माण, लकड़ी की नक्काशी, नाव-निर्माण और नौकायन जैसी तकनीकों का विकास किया।

  • भारतीय उपमहाद्वीप में पहले पत्थर के औजार दो मिलियन साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।
  • नवपाषाण क्रांति ने सिंधु और गंगा घाटियों के कुछ हिस्सों में कृषि का विकास देखा, जिसके कारण बर्तन, जल प्रबंधन, धातु के औजार, परिवहन आदि की ज़रूरत पैदा हुई।
  • धातुकर्म ने मानव समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाए क्योंकि इसने हथियारों, औजारों और उपकरणों की एक पूरी तरह से नई श्रृंखला को जन्म दिया।

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क्या भारत ने दुनिया को दी थी आधुनिक विज्ञान की नींव? एक खोया हुआ खजाना: Ancient Indian Technology

प्राचीन भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक उन्नत केंद्र रहा है। हमारे पूर्वजों ने कई ऐसे आविष्कार किए थे जो अपने समय से बहुत आगे थे। लेकिन समय के साथ कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां लुप्त हो गईं। आइए कुछ ऐसी ही प्रौद्योगिकियों के बारे में जानते हैं:

1. लोहे की शल्य चिकित्सा (Iron Surgery)

  • क्या था: प्राचीन भारत में लोहे के औजारों का उपयोग करके शल्य चिकित्सा की जाती थी। सुश्रुत संहिता में इस बारे में विस्तृत विवरण मिलता है।
  • क्यों लुप्त हुई: समय के साथ अन्य धातुओं और तकनीकों का विकास हुआ और लोहे की शल्य चिकित्सा का उपयोग कम हो गया।

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प्राचीन भारत में शल्य चिकित्सा का स्तर अत्यंत उन्नत था। उस समय लोहे के औजारों का उपयोग करके जटिल सर्जरी की जाती थी। आश्चर्यजनक रूप से, भारत में लोहे के स्तंभों का निर्माण हजारों साल पहले हो गया था, जो इस बात का प्रमाण है कि भारतीयों को धातु विज्ञान का गहरा ज्ञान था। शल्य चिकित्सा में इस ज्ञान का उपयोग करके, वे हड्डियों को जोड़ने, टूटी हुई हड्डियों को ठीक करने और अन्य जटिल सर्जरी करने में सक्षम थे।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी शल्य चिकित्सा के विभिन्न उपकरणों और तकनीकों का वर्णन मिलता है। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें विभिन्न प्रकार के घावों, फ्रैक्चर और अन्य चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए विस्तृत विवरण दिए गए हैं। दुर्भाग्य से, समय के साथ यह अद्भुत ज्ञान खो गया और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों ने इसकी जगह ले ली। आज हम आधुनिक तकनीक का उपयोग करके जटिल सर्जरी करते हैं, लेकिन प्राचीन भारत के शल्य चिकित्सकों का ज्ञान और कौशल आज भी हमें आश्चर्यचकित करता है।

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2. आयुर्वेद (Ayurveda)

  • क्या था: आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों पर आधारित है।
  • क्यों लुप्त हुई: आधुनिक चिकित्सा के विकास के साथ आयुर्वेद को महत्व कम मिलने लगा। हालांकि, हाल के वर्षों में आयुर्वेद में पुनरुत्थान देखने को मिल रहा है।

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आयुर्वेद प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान का एक अनमोल रत्न है जो सदियों से मानव स्वास्थ्य को संवर्धित करता रहा है। यह जीवन विज्ञान का एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करना केंद्रबिंदु है। आयुर्वेद में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियाँ शामिल हैं जैसे आहार, योग, ध्यान, जड़ी-बूटियों और औषधियों का उपयोग। यह रोगों के उपचार के साथ-साथ स्वास्थ्य को बनाए रखने और बढ़ाने पर भी जोर देता है। आयुर्वेद की विशिष्टता इसकी व्यक्तिगतकृत उपचार योजनाओं में निहित है जो प्रत्येक व्यक्ति की अनूठी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विशेषताओं को ध्यान में रखती हैं। हालांकि आयुर्वेद की महत्ता सदियों से स्पष्ट रही है, आज के समय में इसकी लोकप्रियता पुनर्जीवित हो रही है क्योंकि लोग प्राकृतिक और समग्र चिकित्सा पद्धतियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। आयुर्वेद की विरासत को संरक्षित करना और इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ एकीकृत करना आवश्यक है ताकि मानवता को इसके लाभों से अधिकतम लाभ मिल सके।

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3. खगोल विज्ञान (Astronomy)

  • क्या था: प्राचीन भारतीय खगोलविदों ने ग्रहों की गति, ग्रहण और ब्रह्मांड के बारे में गहन अध्ययन किया था। आर्यभट्ट जैसे खगोलविदों ने कई महत्वपूर्ण खोजें की थीं।
  • क्यों लुप्त हुई: मध्यकाल में वैज्ञानिक अध्ययनों पर प्रतिबंध लगने के कारण खगोल विज्ञान का विकास रुक गया।

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प्राचीन भारत खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत उन्नत था। वे ग्रहों, नक्षत्रों और खगोलीय घटनाओं का विस्तृत अध्ययन करते थे। वे सटीकता के साथ ग्रहणों की भविष्यवाणी कर सकते थे और ग्रहों की गति का सटीक विवरण दे सकते थे। आर्यभट्ट जैसे महान खगोलविदों ने पृथ्वी की गोलाकारता, पृथ्वी के घूर्णन और ग्रहों की गति के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था। उन्होंने सूर्य और चंद्र ग्रहणों के कारणों का भी स्पष्टीकरण दिया था। प्राचीन भारतीयों ने नक्षत्रों का उपयोग समय और दिशा निर्धारण के लिए करते थे। वे राशिफल और ज्योतिष शास्त्र में भी निपुण थे।

दुर्भाग्यवश, मध्यकाल में हुए आक्रमणों और सांस्कृतिक उथल-पुथल के कारण यह ज्ञान धीरे-धीरे लुप्त हो गया। आज हम प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान के बारे में बहुत कम जानते हैं। हमें इस खोए हुए ज्ञान को पुनर्जीवित करने और इसका अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि हम अपनी विरासत को समझ सकें और आधुनिक विज्ञान के विकास में इसका योगदान कर सकें।

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4. धातुकर्म (Metallurgy)

  • क्या था: प्राचीन भारत में धातुओं को शुद्ध करने और उनसे विभिन्न वस्तुएं बनाने की कला बहुत विकसित थी। दमस्कस स्टील जैसे मिश्र धातुओं का आविष्कार भारत में ही हुआ था।
  • क्यों लुप्त हुई: विदेशी आक्रमणों और व्यापारिक मार्गों में बदलाव के कारण धातुकर्म की कला प्रभावित हुई।

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प्राचीन भारत धातुकर्म के क्षेत्र में अग्रणी था। भारतीय लोहारों ने लोहे, तांबे, सोने, चांदी और अन्य धातुओं का उपयोग करके अद्भुत कलाकृतियाँ और उपयोगी वस्तुएँ बनाईं। लोहे के स्तंभ दिल्ली में स्थित है, जो आज भी अपनी जंग-मुक्त स्थिति में खड़ा है, भारतीय धातुकर्म की महारत का एक प्रमाण है। प्राचीन भारतीयों ने धातुओं को शुद्ध करने, पिघलाने, ढालने और मिश्रित करने की उन्नत तकनीकें विकसित की थीं। वे हथियारों, उपकरणों, आभूषणों, मूर्तियों और भवन निर्माण सामग्री बनाने के लिए धातुओं का उपयोग करते थे। दुर्भाग्य से, इन प्राचीन तकनीकों में से कई समय के साथ खो गईं या विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दी गईं। आज, भारतीय धातुकर्म की विरासत को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इस प्राचीन कला को फिर से जीवंत किया जा सके।

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5. वास्तु शास्त्र (Vaastu Shastra)

  • क्या था: वास्तु शास्त्र इमारतों के निर्माण के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है।
  • क्यों लुप्त हुई: आधुनिक निर्माण तकनीकों के विकास के साथ वास्तु शास्त्र को महत्व कम मिलने लगा।

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वास्तु शास्त्र प्राचीन भारत की एक ऐसी विधा है जो वास्तुकला और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। यह प्राचीन भारतीय ज्ञान मानव जीवन और उसके आसपास के वातावरण के बीच गहरा संबंध स्थापित करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इमारतों और संरचनाओं का निर्माण न केवल सौंदर्य की दृष्टि से बल्कि प्रकृति की शक्तियों और ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए किया जाता था।

इस विज्ञान के अनुसार, किसी स्थान की दिशा, आकार, और सामग्री का मानव मन और शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वास्तु शास्त्र में घरों, मंदिरों, बगीचों आदि के निर्माण के लिए विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए हैं। ये दिशानिर्देश न केवल भौतिक सुख-सुविधाओं बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं।

दुर्भाग्यवश, आधुनिक समय में वास्तु शास्त्र को अक्सर अंधविश्वास से जोड़कर देखा जाता है। हालांकि, इस प्राचीन विज्ञान में वैज्ञानिक तथ्यों की भी झलक मिलती है। वास्तु शास्त्र में वर्णित कई सिद्धांतों का आधुनिक विज्ञान द्वारा भी समर्थन किया जाता है।

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6. शस्त्रास्त्र (Weapons)

  • क्या था: प्राचीन भारत में शस्त्रास्त्रों का निर्माण केवल युद्ध उपकरणों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह कला, धर्म और संस्कृति का भी एक अभिन्न हिस्सा था। तलवारें, धनुष, भाले, और अन्य अनेक प्रकार के अस्त्रों का निर्माण बेहद कुशलता से किया जाता था। इन शस्त्रों में न केवल मजबूती बल्कि अद्भुत कलात्मकता भी देखने को मिलती थी।
  • क्यों लुप्त हुई: समय के साथ, औद्योगिक क्रांति और आधुनिक हथियारों के आगमन ने पारंपरिक शस्त्र निर्माण को प्रभावित किया। बड़े पैमाने पर उत्पादन और तकनीकी उन्नति के कारण, हाथ से बनाए गए हथियारों की मांग कम हो गई। इसके अलावा, युद्ध के तरीकों में बदलाव और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर जोर देने के कारण, शस्त्र निर्माण पर कम ध्यान दिया जाने लगा।

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प्राचीन भारत में शस्त्रास्त्रों का निर्माण केवल युद्ध उपकरणों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह कला, धर्म और संस्कृति का भी एक अभिन्न हिस्सा था। तलवारें, धनुष, भाले, और अन्य अनेक प्रकार के अस्त्रों का निर्माण बेहद कुशलता से किया जाता था। इन शस्त्रों में न केवल मजबूती बल्कि अद्भुत कलात्मकता भी देखने को मिलती थी। भारतीय लोहार लोहे को गलाकर और उसे विभिन्न आकार देने में माहिर थे। दमस्कस स्टील जैसी उच्च गुणवत्ता वाली इस्पात बनाने की तकनीक भी भारत में विकसित हुई थी। दमस्कस स्टील से बने शस्त्र बेहद मजबूत और लचीले होते थे। इसके अलावा, भारतीयों ने जहरदार तीर बनाने की तकनीक भी विकसित की थी।

दुर्भाग्यवश, समय के साथ, औद्योगिक क्रांति और आधुनिक हथियारों के आगमन ने पारंपरिक शस्त्र निर्माण को प्रभावित किया। बड़े पैमाने पर उत्पादन और तकनीकी उन्नति के कारण, हाथ से बनाए गए हथियारों की मांग कम हो गई। इसके अलावा, युद्ध के तरीकों में बदलाव और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर जोर देने के कारण, शस्त्र निर्माण पर कम ध्यान दिया जाने लगा। आजकल, हम इन प्राचीन शस्त्रों को केवल संग्रहालयों में ही देख सकते हैं।

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7. जल संसाधन प्रबंधन (Water Resources Management)

  • क्या था: प्राचीन भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन एक अत्यंत विकसित कला था। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मौर्य और गुप्त काल तक, भारतीयों ने जल को एक पवित्र तत्व माना और इसका संरक्षण और कुशल उपयोग किया। उन्होंने कुएं, तालाब, नहरें, बांध और जलाशय जैसी जटिल जल प्रबंधन प्रणालियां विकसित की थीं।
  • क्यों लुप्त हुई: समय के साथ, जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी आक्रमणों ने इन जटिल जल प्रबंधन प्रणालियों को क्षतिग्रस्त कर दिया। आधुनिक कृषि पद्धतियों और औद्योगीकरण ने पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों को कम प्रभावी बना दिया।

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प्राचीन भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन सिर्फ एक तकनीकी पहलू नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ था। जल को जीवन का आधार माना जाता था और इसका सम्मान किया जाता था। भारतीय ग्रंथों में जल संरक्षण के महत्व पर जोर दिया गया है। प्राचीन भारतीयों ने जल को एकत्रित करने, संग्रहित करने और वितरित करने के लिए जटिल जल प्रबंधन प्रणालियां विकसित की थीं। इन प्रणालियों में कुएं, तालाब, नहरें और बांध शामिल थे। कुएं ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का मुख्य स्रोत थे। तालाबों का उपयोग सिंचाई, पीने और स्नान के लिए किया जाता था। नहरों का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था और बांधों का उपयोग बाढ़ नियंत्रण के लिए किया जाता था।

ये जल प्रबंधन प्रणालियां न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती थीं बल्कि सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी बचाती थीं। इन प्रणालियों का निर्माण और रखरखाव समुदाय द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता था। यह प्रणाली इतनी प्रभावी थी कि भारत में सदियों तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई।

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8. नाविकी (Sailing)

  • क्या था: प्राचीन भारत की नौवहन तकनीक।
  • क्यों लुप्त हुई: विदेशी आक्रमणों और व्यापार मार्गों में बदलाव के कारण।

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प्राचीन भारत की नौवहन तकनीक विश्व में अग्रणी थी। भारतीय नाविक दूर-दूर तक समुद्र यात्रा करते थे और विभिन्न देशों से व्यापार करते थे। वे बड़े-बड़े जहाज बनाते थे जो लंबी समुद्री यात्राओं का सामना कर सकते थे। भारतीय नाविकों ने दिशा निर्धारण, समुद्री मानचित्रण और मौसम पूर्वानुमान (Navigation, Nautical Mapping and Coasting)  जैसी तकनीकों में महारत हासिल कर ली थी।

भारतीय नाविकों ने अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व तक की यात्राएं की। वे मसाले, कपड़े, सोना, चांदी और अन्य वस्तुओं का व्यापार करते थे। भारतीय नौवहन तकनीक का प्रभाव अन्य संस्कृतियों पर भी पड़ा। भारतीय नाविकों ने अपने ज्ञान और अनुभव अन्य देशों के लोगों को साझा किया।

दुर्भाग्यवश, समय के साथ भारतीय नौवहन तकनीक का महत्व कम हो गया। विदेशी आक्रमणों और व्यापार मार्गों में बदलाव के कारण भारतीय नाविकों की गतिविधियां कम हो गईं। इसके अलावा, पुर्तगालियों और अन्य यूरोपीय शक्तियों के आगमन ने भी भारतीय नौवहन तकनीक को प्रभावित किया। आजकल, हम प्राचीन भारतीय नौवहन तकनीक के अवशेष केवल पुरातात्विक स्थलों पर ही देख सकते हैं।

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निष्कर्ष: Ancient Indian Technology

प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी विश्व में अग्रणी थी। भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की। वे कृषि, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, धातु विज्ञान, वास्तुकला और अन्य कई क्षेत्रों में महारत हासिल कर ली थी। भारतीयों ने शून्य की खोज की, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति विकसित की, लोहे के स्तंभ का निर्माण किया और कई अन्य अद्भुत चीजें कीं। दुर्भाग्यवश, समय के साथ प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी (Ancient Indian Technology) का महत्व कम हो गया। विदेशी आक्रमणों, सामाजिक परिवर्तनों और औद्योगिक क्रांति ने भारतीय प्रौद्योगिकी को प्रभावित किया। कई महत्वपूर्ण ज्ञान और तकनीकें लुप्त हो गईं।

हालांकि, आजकल Ancient Indian Technology में रुचि पुनर्जीवित हो रही है। शोधकर्ता और विद्वान प्राचीन भारतीय ग्रंथों और पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन कर रहे हैं। वे प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं। प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी का अध्ययन न केवल हमारे अतीत को समझने में मदद करता है बल्कि भविष्य के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन सकता है। प्राचीन भारतीयों ने कई समस्याओं के समाधान खोज लिए थे जो आज भी हमारे सामने हैं। उनके ज्ञान और अनुभव से हम आधुनिक समस्याओं का समाधान खोजने में मदद ले सकते हैं।

इसलिए, प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी (Ancient Indian Technology) का अध्ययन और संरक्षण आवश्यक है। हमें अपने पूर्वजों की उपलब्धियों को याद रखना चाहिए और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी का पुनर्जीवन न केवल हमारे देश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभदायक होगा।

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