Upbhokta Ke Adhikar: उपभोक्ता अधिकार क्या होते हैं? भारत में उपभोक्ता के दाईत्व क्या हैं, यहाँ पाए पूरी जानकारी !
Consumer Rights in India: उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और उनका प्रयोग करना चाहिए | इसके लिए, उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार भी है, जिसका मतलब है कि जीवन भर जागरूक उपभोक्ता बने रहने के लिए ज़रूरी ज्ञान और कौशल हासिल करना| खरीदारी से पहले, उपभोक्ताओं को उत्पादों की गुणवत्ता और गारंटी पर भी ध्यान देना चाहिए | उन्हें ISI mark, AGMARK mark जैसे गुणवत्ता चिह्नित उत्पाद खरीदने चाहिए |
हर देश अपने नागरिकों के लिए अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ता अधिकारों का एक सेट प्रदान करता है। उपभोक्ता अधिकार ग्राहकों को सामान और सेवाओं को खरीदते समय उनके बारे में आवश्यक जानकारी रखने की अनुमति देते हैं। भले ही निर्माता, व्यापारी, विक्रेता और व्यवसायी समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को जानते हों, लेकिन वे धोखाधड़ी, अनुचित व्यापार प्रथाओं आदि के ज़रिए उपभोक्ताओं का शोषण कर सकते हैं।
उपभोक्ता अधिकार, उपभोक्ताओं को ऐसी अनुचित प्रथाओं से बचाते हैं और उन्हें इन अधिकारों को लागू करने में सक्षम बनाते हैं। भारत में, सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता अधिकार प्रदान करती है।
परिभाषा के अनुसार, “उपभोक्ता का अधिकार” है कि उसे उस वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मूल्य और मानक के बारे में पर्याप्त जानकारी हो जिसका वह उपयोग कर रहा है और उसे उपभोक्ता के रूप में किसी भी तरह के गलत व्यवहार से सुरक्षा मिले।
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सबसे पहले अमेरिका में हुई थी उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत | Consumer movement first started in America
इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई, जहाँ राल्फ नाडेर (Ralph Nader) ने एक आंदोलन चलाया था जिसके फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया गया। इसीलिये 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में शुरुआत में चार विशेष प्रावधान थे–
1. उपभोक्ता सुरक्षा का अधिकार
2. उपभोक्ता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार
3. उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार
4. उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार। बाद में इसमें समयानुसार और प्रावधान जोड़े जाते रहे।
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भारत में उपभोक्ता आंदोलन | Consumer Movement in India
भारत में निष्पक्ष रोजगार अभ्यास समिति (Fair Employment Practice Committee (FEPC) से उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत 1966 में मुंबई से हुई थी, जिसे उद्योगपति जेआरडी टाटा (J R D Tata) के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों ने शुरू किया था। इसकी शाखाएँ कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बी.एम. जोशी ने 1974 में पुणे में की थी। इसके बाद अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ और उपभोक्ता आंदोलन आगे बढ़ता रहा। 9 दिसंबर, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह सरल व सुगम हो गया, लेकिन वर्तमान में तकनीक के प्रसार के मद्देनज़र बाज़ार में आए बदलावों के चलते यह कुछ मामलों में लगभग अप्रासंगिक हो गया है।
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कौन है उपभोक्ता? | Who is the consumer?
उपभोक्ता संरक्षण कानून अधिनियम 1986 की धारा 2 की उपधारा के अनुसार, वस्तुओं, पदार्थों या सेवाओं का उपभोग करने वाला और इनका मूल्य चुकाने वाला या चु्काने का वादा करने वाला उपभोक्ता कहलाता है। उपभोक्ता वह है, जो उपभोग के लिये वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय करता है। सेवाओं को भाड़े पर लेने वाला या इस्तेमाल करने वाला भी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है, बशर्ते इनका वाणिज्यिक इस्तेमाल न किया जाए।
यदि कोई फुटकर व्यापारी किसी थोक विक्रेता से वस्तुएँ खरीदता है, तो वह उपभोक्ता नहीं है क्योंकि वह तो वस्तुओं को बेचने के लिये खरीदता है। कोई व्यक्ति, जो वस्तुओं एवं सेवाओं का चयन करता है, उन्हें प्राप्त करने के लिये पैसा खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उनका उपयोग करता है, उपभोक्ता कहलाता है।
इस लेन-देन में विक्रेता की ईमानदारी सबसे अहम है, क्योंकि इसी पर उपभोक्ता का विश्वास टिका होता है। लेकिन कई बार विक्रेता ऐसा काम कर देता है कि उपभोक्ता का विश्वास टूट जाता है; और यह बात ऑनलाइन मार्केटिंग करने वाले ई-उपभोक्ताओं पर भी लागू होती है।
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कौन उपभोक्ता नहीं है? | Who is not a consumer?
वह व्यक्ति, जो वस्तुएं मुफ्त में प्राप्त करता है, जो सेवाएं मुफ्त में प्राप्त करता है, जो वस्तुओं को पुन: बिक्री के लिए अथवा किसी वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ प्राप्त करता है, जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए सेवाओं का लाभ उठाता है, जो सेवाओं के अनुबंध के तहत सेवाएं प्राप्त करता है, उपभोक्ता नहीं है। तथापि, – किसी व्यक्ति द्वारा स्वरोजगार के माध्यम से विशेषकर अपनी आजीविका चलाने के प्रयोजनार्थ, वस्तुओं को खरीदना और उनका प्रयोग करना तथा सेवाएं प्राप्त करना वाणिज्यिक प्रयोजन में शामिल नहीं है।
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भारत में उपभोक्ता के अधिकार | Consumer Rights in India
आज उपभोक्ता को बाजार में प्रतियोगिता, गुमराह करने वाले विज्ञापन, घटिया वस्तुएं एवं सेवाएं तथा अन्य बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय बन गया है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार ने उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों (Consumer Rights) को मान्यता प्रदान की है। दूसरे शब्दों में यदि उपभोक्ता अपने आपको शोषण एवं धोखे से बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ अधिकारों को मान्यता प्रदान करनी होगी। दूसरे शब्दों में यदि उपभोक्ता अपने आपको शोषण एवं धोखे से बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ अधिकार देने होंगे ताकि वे ऐसी स्थिति में हो कि वे वस्तुओं के विक्रेता एवं सेवा प्रदान करने वालों से व्यवहार करते समय सतर्क रह सकें।
उदाहरण के लिए उपभोक्ताओं के अधिकारों में से एक अधिकार चयन का अधिकार है। यदि आप इस अधिकार की जानकारी रखते हैं तो आप दुकानदार से एक ही वस्तु के विभिन्न किस्में दिखाने के लिए कह सकते हैं, जिससे कि आप अपनी पसंद की वस्तु का चयन कर सकें। कभी-कभी दुकानदार उस ब्रांड की वस्तु को बेचने का प्रयत्न करता है जिस पर उसे अधिक कमीशन मिलता है। हो सकता है कि यह सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु न हो या फिर यह अपेक्षाकृत कम मूल्य पर उपलब्ध हो। इस व्यवहार को आप रोक सकते हैं। यदि आप अपने चयन के अधिकार का उपयोग करें तथा यदि एक दुकान पर अधिक किस्म के उत्पाद उपलब्ध नहीं है तो आप दूसरी दुकान पर जा सकते हैं।
- सुरक्षा का अधिकार : उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं की बिक्री से सुरक्षा का अधिकार है, जो स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए हानिकारक है। उपभोक्ता के रूप में यदि आप इस अधिकार के सम्बन्ध में सचेत हैं तो हानि को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं और यदि सतर्कता के बाद भी हानि होती है तो आप विक्रेता की शिकायत कर सकते हैं तथा क्षतिपूर्ति का दावा भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए माना आपने कोई दवा खरीदी है तो दवा के हानिकारक होने की दशा में आप दवा विक्रेता को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। इसी प्रकार से यदि आप खाना पकाने के लिए गैस के सिलेन्डर का प्रयोग करते हैं तो आपूर्ति के समय जांच कर लें कि यह रिस तो नहीं रहा है। यदि बाद में यह रिसने लगता है तो इसके कारण आग लगने पर यदि कोई चोट आती है या किसी की मृत्यु हो जाती है तो आपूर्ति कर्ता का क्षतिपूर्ति का दायित्व होगा।
- सूचना पाने का अधिकार : उपभोक्ता को उपलब्ध वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, स्तर या श्रेणी तथा मूल्य के सम्बंध में जानने का अधिकार है, जिससे कि वह किसी वस्तु अथवा सेवा का क्रय करने से पहले सही चुनाव कर सके। इसके साथ ही वस्तु के उपभोग के समय उससे होने वाली क्षति अथवा चोट से बचने के लिए उपभोक्ता को सुरक्षा के किन उपायों का ध्यान रखना चाहिए इस सम्बंध में जहां भी आवश्यकता हो उपभोक्ता को सूचना प्रदान करानी चाहिए। उदाहरण के लिए गैस सिलेन्डर को लें, पूर्तिकर्ता को उपभोक्ता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि ‘‘जब गैस का प्रयोग न हो तो रेगुलेटर की सहायता से गैस के प्रवाह को बंद कर देना चाहिए।’’
- चयन का अधिकार : प्रत्येक उपभोक्ता को अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को उनकी विभिन्न किस्मों में से चयन का अधिकार है। कई बार विक्रेता एवं व्यापारी घटिया गुणवत्ता वाली वस्तु को बेचने के लिए दबाव के हथकन्डे अपनाता है। कभी-कभी उपभोक्ता भी, टी.वी पर विज्ञापनों से प्रभावित हो जाता है। उपभोक्ता यदि अपने चयन के अधिकार के प्रति सचेत है तो इन सम्भावनाओं से बचा जा सकता है।
- सुनवाई का अधिकार : इस अधिकार को तीन विभिन्न अर्थों में समझा जा सकता है। व्यापक अर्थ में इसका अर्थ है कि जब भी सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा उपभोक्ता के हितों को प्रभावित करने वाले निर्णय लिए जाएं तो उपभोक्ता से सलाह ली जाय। उपभोक्ताओं का यह भी अधिकार है कि निर्माता, विक्रेता एवं विज्ञापनकर्ता उत्पादन एवं विपणन सम्बन्धी निर्णय लेते समय उनके विचार जानें। तीसरे, उपभोक्ताओं की शिकायतों की सुनवाई के समय अदालती कार्यवाही के मध्य उनकी सुनवाई का भी उनका अधिकार है।
- निवारण का अधिकार : जब भी किसी उपभोक्ता को अनुचित व्यापार व्यवहार, जैसे अधिक मूल्य वसूलना, घटिया गुणवत्ता वाले अथवा असुरक्षित उत्पादों को बेचना, वस्तु एवं सेवाओं की आपूर्ति में नियमितता की कमी के सम्बंध में कोई शिकायत है या फिर उसे दोषपूर्ण अथवा मिलावटी वस्तुओं के कारण कोई हानि हुई है अथवा चोट पहुंची है तो उसे उनके निवारण का अधिकार है। उसे दोषपूर्ण वस्तुओं के स्थान पर दूसरी वस्तु अथवा विक्रेता द्वारा मूल्य वापसी को प्राप्त करने का अधिकार है। उसे उचित न्यायालय में वैधानिक समाधान पाने का भी अधिकार है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाता है कि उनकी शिकायत पर उचित ध्यान दिया जायेगा। इस अधिकार में यदि आपूर्तिकर्ता अथवा विनिर्माता की गलती के कारण उन्हें कोई हानि होती है अथवा किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो उपभोक्ता के लिए उचित क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान है।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार : बाजार में दोषपूर्ण कार्यों एवं उपभोक्ताओं के शोषण को रोकने के लिए उपभोक्ताओं में जागरूकता पैदा करना एवं उनको शिक्षित करना बहुत आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपभोक्ता संगठन, शैक्षणिक संस्थान एवं सरकारी नीति निर्धारकों से अपेक्षा है कि वे उपभोक्ताओं को निम्नलिखित विषयों से अवगत कराएं और उनके विषय में शिक्षित करें।
- अनुचित व्यापार कार्यों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गये प्रासंगिक कानून,
- बेईमान व्यापारियों एवं उत्पादनकर्ताओं द्वारा अपनाये जाने वाली वे विधियां जिनके द्वारा वह उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिए बाजार के व्यवहार को तोड़ मरोड़ करने का प्रयत्न करता है,
- उपभोक्ता किस प्रकार से अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं,
- शिकायत करते समय उपभोक्ताओं द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया इत्यादि।
- एकाधिकार के मामलों में, इसका अर्थ है उचित कीमत पर संतोषजनक गुणवत्ता और सेवाओं का आश्वासन पाने का अधिकार। इसमें मूलभूत वस्तुओं और सेवाओं का अधिकार भी शामिल है।
- इस अधिकार को प्रतिस्पर्द्धी बाजार में बेहतर रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है जहाँ अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर उपलब्ध हैं।
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भारत में उपभोक्ता के उत्तरदायित्व | Responsibilities of the consumer in India
कहावत है कि बिना उत्तरदायित्व के अधिकार नहीं हो सकते। उपभोक्ताओं के अधिकारों (Consumer Rights) एवं इन अधिकारों के उद्देश्यों का मूल्यांकन करने के पश्चात यह समझ लेना आवश्यक है कि क्या उपभोक्ता के कुछ उत्तरदायित्व होने चाहिए, जिससे कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें। उदाहरण के लिए उपभोक्ता यदि यह चाहते हैं कि वे अपनी सुनवाई के अधिकार का प्रयोग कर सकें तो उनका यह भी उत्तरदायिव है कि वह अपनी समस्याओं को जानें तथा उनके सम्बन्ध में सूचनाओं को प्राप्त करते रहें। अपनी शिकायतों के निवारण के अधिकार (Consumer Rights) का उपयोग करने के लिए उपभोक्ताओं को सही वस्तु को ही मूल्य पर चुनने के सम्बन्ध में सावधानी बरतनी चाहिए तथा उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि किसी प्रकार की चोट अथवा हानि को रोकने के लिए उन वस्तुओं का कैसे उपयोग करें। उपभोक्ता के दायित्वों में विशेष रूप से निम्न दायित्व सम्मलित हैं :
- स्वयं सहायता का दायित्व : उपभोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि जहां तक संभव हो वस्तु के सम्बंध में सूचना एवं चुनाव के लिए वह विक्रेता पर निर्भर न रहें। एक उपभोक्ता के नाते, आप से यह अपेक्षित है कि स्वयं को धोखे से बचाने के लिए आपका व्यवहार उत्तदायित्वपूर्ण हो। एक सजग उपभोक्ता दूसरों की अपेक्षा अपने हितों का अधिक ध्यान रख सकता है। शुरू से ही जागरूक हो जाना एवं अपने आपको तैयार कर लेना हानि होने अथवा क्षति पहुंचाने के पश्चात उसका निवारण करने से, सदा श्रेष्ठ होता है।
- लेन-देन का प्रमाण : उपभोक्ता का दूसरा दायित्व क्रय का प्रमाण एवं स्थायी वस्तुओं के क्रय से सम्बन्धित प्रपत्रों को प्राप्त करना एवं उन्हें सुरक्षित रखना है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के क्रय पर रोकड़ पर्ची (कैश मेमो) को प्राप्त करना आवश्यक है। याद रहे कि यदि आप वस्तु में किसी कमी के सम्बन्ध में शिकायत करना चाहते हैं तो क्रय का प्रमाण होने पर आप वस्तु की मरम्मत अथवा उसके प्रतिस्थापन का दावा कर सकते हैं। इसी प्रकार टी.वी., रेफरीजरेटर आदि स्थायी वस्तुओं के क्रय पर विक्रेता आश्वासन/गारंटी कार्ड देते हैं। यह कार्ड आपको क्रय के पश्चात मरम्मत अथवा नुकसान के प्रतिस्थापन की सेवा मुफ़्त प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- उचित दावा : उपभोक्ता का एक और दायित्व, जो उसे मस्तिष्क में रखना चाहिए, है कि शिकायत करते समय एवं हानि अथवा क्षति होने पर उसकी पूर्ति का दावा करते समय अनुचित रूप से बड़ा दावा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी उपभोक्ता अपने निवारण के अधिकार का उपयोग न्यायालय में करता है। ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिनमें उपभोक्ता ने बिना किसी उचित कारण के क्षतिपूर्ति की बड़ी राशि का दावा किया है। यह एक अनुचित कार्य है, जिससे बचना चाहिए।
- उत्पाद अथवा सेवाओं का उचित उपयोग : कुछ उपभोक्ता विशेष रूप से गारंटी अवधि के दौरान यह सोचकर वस्तुओं तथा सेवाओं का दुरूपयोग करते हैं कि इस अवधि में इसका प्रतिस्थापन तो हो ही जायेगा। उनके लिए ऐसा करना उचित नहीं है। उन्हें वस्तुओं का अपनी स्वयं की वस्तु समझकर प्रयोग करना चाहिए।
इन दायित्वों के अतिरिक्त उपभोक्ता के अन्य दायित्व भी हैं। उन्हें विनिर्माता, व्यापारी एवं सेवा प्रदानकर्ता के साथ अपने अनुबंध का सख्ती से पालन करना चाहिए। उधार क्रय की स्थिति में उसे समय पर भुगतान करना चाहिए। उन्हें सेवा के माध्यम जैसे बिजली एवं पानी के मीटर, बस एवं रेल गाड़ियों की सीटों के साथ छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि वह अपने अधिकारों (Consumer Rights) का उपयोग तभी कर सकते हैं जब वह अपने दायित्वों को निभाने के लिए तैयार अथवा इच्छुक हैं।
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उपभोक्ता अधिकार के अंतर्गत, उपभोक्ता न्यायालय | Under Consumer Rights, Consumer Court
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, उपभोक्ता अधिकारों (Consumer Rights) की रक्षा और उन्हें लागू करने के लिए उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (जिसे उपभोक्ता न्यायालय या उपभोक्ता मंच के रूप में जाना जाता है) की स्थापना का प्रावधान करता है। अधिनियम में उपभोक्ता शिकायतों के त्वरित निवारण के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर निवारण एजेंसियों की स्थापना का प्रावधान है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) या जिला आयोग उन शिकायतों पर विचार करता है, जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य 1 करोड़ रुपये से कम है। राज्य आयोग जिला आयोग द्वारा पारित आदेशों से अपील और उन शिकायतों पर विचार करता है, जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य 1 करोड़ रुपये से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपये से कम है। राष्ट्रीय आयोग उन शिकायतों पर विचार करता है, जहाँ वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य 10 करोड़ रुपये से अधिक है।
जब जिला आयोग में शिकायत दर्ज की जाती है, तो आयोग उपभोक्ताओं और विक्रेताओं/निर्माताओं/कंपनियों को सुनवाई का मौका देगा, उनसे साक्ष्य एकत्र करेगा और आदेश/निर्णय पारित करेगा। उपभोक्ता निवारण आयोग वस्तुओं में दोष होने पर उपभोक्ताओं को निम्नलिखित मुआवजा दे सकता है:
- वस्तुओं की निःशुल्क मरम्मत करें
- उत्पाद में कमियों को ठीक करें
- उत्पाद को समान या बेहतर उत्पाद से बदलें
- कीमत वापस करें
- लागत, क्षति या असुविधा के लिए मुआवजा (धन) दें
- उत्पादों या वस्तुओं की बिक्री पूरी तरह से बंद कर दें
- अनुचित व्यापार व्यवहार/प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार को बंद करें या न दोहराएँ
- पहले से गलत तरीके से प्रस्तुत विज्ञापन के स्थान पर सही विज्ञापन जारी करें
सरकार ने उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं ताकि उपभोक्ता अपने अधिकारों (Consumer Rights)को लागू कर सकें। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं को कुछ अधिकार देता है, जो उन्हें अनुचित व्यापार व्यवहार और मिलावटी, घटिया या दोषपूर्ण वस्तुओं की बिक्री के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है। उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों को लागू करना चाहिए और निर्माताओं या विक्रेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि वे जनता को धोखा न दें।
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 | Consumer Protection Act 1986
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, अन्य कानूनों की अपेक्षा उपभोक्ताओं को अधिक संरक्षण प्रदान करता है। उपभोक्ता अधिक विस्तार से अथवा विस्तृत तरह से बैंकिग, बीमा, वित्त, ट्रांसपोर्ट, होटल, टेलीफोन, बिजली की आपूर्ति या अन्य ऊर्जा, आवास, मनोरंजन अथवा अमोद-प्रमोद आदि (Banking, insurance, finance, transport, hotel, telephone, supply of electricity or other energy, accommodation, entertainment or amusement etc.) में अधिक संरक्षण प्राप्त कर सकता है। यह अधिनियम राज्य व केन्द्रीय स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परामर्श समितियां बनाने का प्रावधान करती है। उपभोक्ता के विवादों का शीघ्र और उचित निपटारा करने के लिये अर्ध न्यायिक पद्धति को बनाया गया है। इसमें जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग को शामिल करते हैं। इन्हें उपभोक्ता न्यायालय कहा जाता है।
उपभोक्ता अधिकार के तहत, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं? | Under consumer rights, what are the important features of Consumer Protection Act?
- यह सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट रूप से छूट प्रदान न की गई हो
- इसमें सभी क्षेत्र – निजी, सार्वजनिक और सहकारी – आते हैं
- यह एक अतिरिक्त समाधान उपलब्ध कराता है
- इस अधिनियम के प्रावधान प्रतिपूरक प्रकृति के हैं
- इसमें ऐसे न्यायनिर्णय प्राधिकारी उपलब्ध कराने का प्रावधान है जो सरल, त्वरित और किफायती है
- इसमें राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना का प्रावधान भी है।
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FAQ: Consumer Rights in India
उपभोक्ता का अधिकार (Consumer Rights) क्या है?
जीवन और संपत्ति के लिये खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार। वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक, और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना। प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना।
उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी?
बड़े पैमाने पर खाद्य-भंडारण एवं जमाखोरी जैसी घटनाओं ने एक संगठित रूप में वर्ष 1960 में उपभोक्ता आंदोलन को जन्म दिया। इस आंदोलन ने सरकार पर दबाव बनाने में सफलता प्राप्त की और इस दिशा में एक बड़ा कदम वर्ष 1986 में उठाया गया।
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Consumer Rightsर का जनक कौन है?
उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सबसे पहले अमेरिका में 1962 में स्थापित की गयी थी। उपभोक्ता जागरूकता के कार्यकर्ता राल्फ नादेर है। उन्हे उपभोक तथा आंदोलन के पिता के रूप में संदर्भित किया जाता है। पूंजीवाद और वैश्वीकरण के इस युग में, अपने लाभ को अधिकतम करना प्रत्येक निर्माता का मुख्य उद्देश्य है।
उपभोक्ता कितने प्रकार के होते हैं?
प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता, तृतीयक उपभोक्ता या शीर्ष उपभोक्ता उपभोक्ताओं के विभिन्न प्रकार हैं। ये प्रकार उस ट्रॉफिक स्तर के अनुसार होते हैं जिससे वे संबंधित हैं।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब मनाया जाता है?
उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया गया। वर्ष 2023 के लिये विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का विषय “हरित ऊर्जा संक्रमण के माध्यम से उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना” है। यह अधिक स्थायी और उपभोक्ता-अनुकूल पारिस्थितिकी निर्माण की दिशा में एक कदम है।
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उपभोक्ता का कर्तव्य क्या है?
उपभोक्ताओं को हमेशा विक्रेता से खरीद का बिल लेने पर जोर देना चाहिए ताकि यदि खरीद में कोई समस्या हो तो उसका तुरंत समाधान किया जा सके। उपभोक्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे विक्रेता के शोषणकारी व्यवहार और अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाएं।
उपभोक्ता न्यायालय का क्या अर्थ है?
उपभोक्ता न्यायालय एक विशेष उद्देश्य न्यायालय है जो उपभोक्ता विवादों और शिकायतों से संबंधित मामलों से निपटता है । ये सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित किए जाते हैं। इसका प्राथमिक कार्य विक्रेताओं द्वारा निष्पक्ष व्यवहार बनाए रखना है। उपभोक्ता के पास मामला दर्ज करने के लिए उचित दस्तावेज होने चाहिए।
निष्कर्ष: Consumer Rights in India
भारत जैसे विकासशील देश में व्याप्त विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, गरीबी, निरक्षरता और क्रय शक्ति में कमी के चलते उपभोक्ताओं के ठगे जाने, धोखाधड़ी, गुणों के विपरीत सामान दिये जाने आदि की शिकायतें प्राय: सुनने को मिलती रहती हैं। उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों (Consumer Rights in India) के प्रति जागरूकता की कमी और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिये संस्थागत व्यवस्था की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। ऑनलाइन शॉपिंग को बदलते वक्त और कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कार कहा जा सकता है। ऐसे में देश में डिजिटल रूप से सक्षम समाज के बजाय डिजिटल रूप से सशक्त समाज पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
जिस प्रकार एक उपभोक्ता घर पर बैठे हुए उत्पादों को ऑनलाइन खरीदने में सक्षम है, उसी प्रकार वह उसी रीति से शिकायत दर्ज करने और समाधान प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिये। सरकार उपभोक्ताओं को डिजिटाइजेशन के पूर्ण लाभ उपलब्ध कराने और ऑनलाइन व्यवस्था से जुड़े जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षोपाय करने के लिये बराबर कार्य कर रही है। डिजिटल जागरूकता कार्यक्रमों का सृजन करने के लिये उपभोक्ता मामले विभाग और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं। फिर भी इंटरनेट का खुलापन, पहचान की कमी और उपयोगकर्त्ताओं (विशेषकर प्रथम बार उपयोगकर्त्ताओं) की सुरक्षा के प्रति समझ का कम स्तर ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं जिनके संबंध में केंद्रित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
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