इतिहास के पन्नों से उभरे रहस्य! महाभारत के 5 ज़िन्दा सबूत जिन्हे देख वैज्ञानिकों के भी होश उड़े | Living Evidences of Mahabharata
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1. महारथी कर्ण का अंग राज्य
कुंती के सबसे बड़े पुत्र दानवीर कर्ण, अंग देश के राजा थे जो उन्हें दुर्योधन ने उपहार में भेंट किया था । आज अंग देश को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के नाम से जाना जाता है जरासंध द्वारा अपने राज्य के कुछ हिस्सों को कर्ण को देने की बात भी कही जाती है जो आज बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले के नाम से जाना जाता है । इन राज्यों का स्थान वही है जहां कल था इसे चाहकर भी बदला नहीं जा सकता इस बात से ही आप इसकी सच्चाई का पता लगा सकते हैं । Living Evidences of Mahabharata
2. घटोत्कच का कंकाल
कुरुक्षेत्र के पास ही भारतीय पुरातत्व विभाग को खुदाई के समय बेहद ही विशाल आदमी का कंकाल मिला था । जिसको देखकर यह पता चलता था कि यह कंकाल किसी साधारण मनुष्य का नहीं है तभी यह बात उठने लगी है कि यह कंकाल घटोत्कच का है । महाभारत काल के घटोत्कच के बारे में तो आप सभी जानते होंगे जब भीम और हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच महाभारत के युद्ध में लड़ाई करने आया था तब कर्ण ने अपनी शक्ति से उसको मार दिया था । महाभारत के महाकाव्य में दिया गया घटोत्कच का वर्णन भी इसी कंकाल के समान है|
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3. लाक्षागृह
महाभारत काल में लाक्षागृह की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है । कौरवों ने पांडवों को जलाने की साजिश के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था लेकिन पांडव सुरंग से निकलकर बाहर आ गए थे । कहां जाता है आज भी यह सुरंग उत्तर प्रदेश के बरनावा नामक स्थान पर मौजूद है । वैज्ञानिकों ने पाया है कि उस समय के लोग लाक्षागृह बनाने के लिए किस तरह की तकनीक का उपयोग करते थे। उन्होंने यह भी पाया है कि लाक्षा एक अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ है और इसे जलाने से अत्यधिक गर्मी और धुआँ उत्पन्न होता है। यह वैज्ञानिक खोजें इस बात की पुष्टि करती हैं कि लाक्षागृह जैसी एक संरचना का निर्माण करना और उसे जलाना उस समय की तकनीक के लिए संभव था। Living Evidences of Mahabharata
4. कुरुक्षेत्र की लाल मिट्टी
यह तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था जोकि हरियाणा राज्य में स्थित है । कहते हैं उस समय भयंकर युद्ध में बहे खून की वजह से वहां की जमीन लाल हो गई थी । पुरातात्विक विशेषज्ञों ने भी माना है कि महाभारत की घटना सच थी उस जगह पर तीरो और भालो को जमीन में गड़ा पाया गया है । जिनकी जांच में यह पता चला है कि यह 2800 ईसा पूर्व के हैं जोकि लगभग महाभारत काल के समय के बने हुए हैं ।
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5. अर्जुन का चक्रव्यूह
आप महाभारत में अर्जुन के चक्रव्यूह के बारे में जानते होंगे लेकिन आपको पता है इस चक्रव्यूह का जीता जागता सबूत आज भी मौजूद है हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सोलह सिंहवी धार के नीचे बसा राजनोड़ गांव एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में मशहूर है । यहां पर पांडव अज्ञातवास के दौरान रुके थे इसी समय अर्जुन ने यहां पर चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त करके उसे पत्थर पर बनाया था जो आज भी यहां मौजूद है । इस चक्रव्यू को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि अंदर जाने का रास्ता तो साफ दिखाई देता है लेकिन बाहर आने का रास्ता पता नहीं चलता इस जगह को पीपलू किले के नाम से भी जाना जाता है ।
महाभारत के प्रमाण: तारों और नक्षत्रों की गवाही
कहते हैं कि तारे झूठ नहीं बोलते, वे सबके रहस्य जानते हैं। लेकिन सोचिए अगर तारे खुद महाभारत की सच्चाई की गवाही दें तो क्या होगा? आपको यह सुनकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह बिल्कुल सच है कि महाभारत में कई खगोलीय घटनाओं का वर्णन है। अगर आप वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत को ध्यान से पढ़ेंगे तो पाएंगे कि इस पूरे ग्रंथ में तारों और नक्षत्रों की दिशाओं और व्यवस्थाओं का कई बार वर्णन किया गया है। तारों और नक्षत्रों की दिशाओं और व्यवस्थाओं का वर्णन प्राचीन उपकरणों की मदद से किया गया था। Living Evidences of Mahabharata
आज तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि ऐसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जो पूरे ब्रह्मांड का अनुकरण प्रदान करते हैं। और अगर आप चाहें तो इन सॉफ्टवेयर में किसी भी तारे या नक्षत्र की स्थिति दर्ज करके यह जांच सकते हैं कि तारों का ऐसा निर्माण कभी हुआ था या नहीं। अगर हुआ था, तो उसकी सही तारीख क्या थी। इन सिमुलेशन का उपयोग करके महाभारत में दर्शाए गए नक्षत्रों और सितारों की स्थिति की जाँच की गई और पाया गया कि पूरी समयावधि सही है, यानी महाभारत का युद्ध वास्तव में दावा किए गए समय में हुआ था। यह एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता और कोई भी इसे दोहरा सकता है। जाँचें कि महाभारत के दावे सही हैं या गलत।
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महाभारत के प्रमाण: भौगोलिक साक्ष्य
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था, जो आज के हरियाणा में एक छोटा सा स्थान है। लेकिन इस पूरे युद्ध का भौगोलिक प्रभाव इस छोटे से क्षेत्र तक सीमित नहीं था। महाभारत में कई स्थानों का वर्णन है जो आधुनिक भूगोल और प्राचीन भू-राजनीति से मेल खाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो लगभग 5000 साल पहले हुए इस युद्ध में वर्णित कई स्थान आज भी देखे जा सकते हैं। आप सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में कई राज्य और रियासतें शामिल थीं और उनके और पांडवों के बीच कई गठबंधन थे। Living Evidences of Mahabharata
चाहे भगदत्त हो, जिसका राज्य आज के इराक में था | शुकुनशिना, जिसका संबंध आज के ईरान से था, मामा शकुनि हो, जिसका शासन पाकिस्तान के पश्चिमी भाग और अफ़गानिस्तान के पूर्वी और दक्षिणी भाग में था, कलिंग हो, जिसका साम्राज्य ओडिशा में था और जराडवा हो, जिसका राज्य पाकिस्तान के दक्षिणी प्रांतों, सिंध और बलूचिस्तान में फैला हुआ था। इसी तरह, इस कहानी के दूसरी तरफ़ पांडव थे, जिनके सहयोगियों में पंचाल यानी उत्तर प्रदेश, मत्स्य यानी राजस्थान, मगध यानी बिहार, पांड्य यानी दक्षिण भारत और कई अन्य राज्य शामिल थे। इस विस्तृत भौगोलिक समयरेखा की जांच मार्क जुकरबर्ग और अल्फ्रेड फोर्ट जैसी प्रसिद्ध हस्तियों ने की थी।
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महाभारत के प्रमाण: पुरातात्विक साक्ष्य और शोध प्रमाण
इस साक्ष्य को नकारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। आपको माइथोलॉजी शब्द का मतलब समझना होगा। अंग्रेजी में इसका मतलब पौराणिक या काल्पनिक कहानी होता है। अतीत में हज़ारों बार इस शब्द का इस्तेमाल सनातन संस्कृति और पौराणिक कथाओं पर सवाल उठाने के लिए किया गया है, उन्हें काल्पनिक और पौराणिक कहा गया है। लेकिन असल में इन सभी दावों की विश्वसनीयता तब टूटी जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और कुछ स्वतंत्र शोध दलों ने इनकी जांच शुरू की। अपने अध्ययन के दौरान उन्हें कई ऐसे साक्ष्य मिले जो महाभारत युद्ध की प्रामाणिकता को साबित करते हैं। जैसे, उस युद्ध में इस्तेमाल किए गए अस्त्र-शस्त्र, शास्त्र, कुछ हथियार, तीर या कुछ ऐसा जो इस युद्ध की गवाही देता हो। शोधकर्ता भी शायद यही सोच रहे होंगे। इस पुरातात्विक स्थल की खुदाई के दौरान इन शोधकर्ताओं ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में कई जगहों पर बड़े पैमाने पर खुदाई की। इस दौरान कई बड़े और छोटे स्थलों की खुदाई की गई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुद अपनी प्रयोगशालाओं में इन जगहों पर मिले प्राचीन साक्ष्यों की जांच की। इनकी जांच करने के बाद उन्हें चौंकाने वाले तथ्यों से रूबरू होने का मौका मिला। कुरुक्षेत्र में, जहां यह युद्ध लड़ा गया था, वैज्ञानिकों ने लोहे के तीर और तलवारें बरामद कीं। Living Evidences of Mahabharata
जब इन तीरों की आयु थर्मो-ल्यूमिनेसेंस तकनीक से निर्धारित की गई, तो वे लगभग 4800 वर्ष पुराने पाए गए, जो महाभारत के प्रलेखित समय सीमा के बहुत करीब है। इसके अलावा, भूमि की खुदाई के दौरान, कुछ मिट्टी के बर्तन मिले, जिनका अभी भी परीक्षण किया जा रहा है। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि ये चीजें या तो सीधे महाभारत युद्ध से जुड़ी हैं या उस समय के आम लोगों से। इस ठोस सबूत के साथ, प्राचीन शहर द्वारका भी एक जीवित सबूत है जो महाभारत के पक्ष में गवाही देता है। भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका , प्राचीन हिंदू कथाओं का एक महत्वपूर्ण तत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण द्वापर युग में पृथ्वी को छोड़कर आध्यात्मिक दुनिया में चले गए, तो कलियुग शुरू हो गया, जिसके कारण द्वारका और उसके शहरवासी समुद्र में डूब गए। जब इस कहानी की तुलना वास्तविकता से की गई, तो एक राजसी संबंध सामने आया। पुरातत्वविदों ने पाया कि समुद्र में वास्तव में कुछ ऐसा था जो भगवान कृष्ण की इस कहानी से मेल खाता था। 1963 में एक उत्खनन अभियान में, इस श्रृंखला ने बहुत मजबूत सबूत दिए, चाहे वह प्राचीन कलाकृतियों की खोज हो या जलमग्न प्राचीन संरचनाओं की खोज। अंततः, यह साबित हुआ कि इस स्थान पर कभी एक सुंदर शहर था, जिसे द्वारका के नाम से जाना जाता था। खैर, ये तीन सबूत यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि महाभारत एक काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि एक वास्तविक इतिहास है।
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