India 5000 years ago: आज से लगभग 5000 साल पहले, जब दुनिया के बाकी हिस्से अपने प्रारंभिक विकास के दौर में थे, भारत में तक्षशिला और नालंदा जैसे महान विश्वविद्यालय स्थापित हो चुके थे। नालंदा विश्वविद्यालय की विशालता और उसमें संग्रहीत ज्ञान को 1193 में बख्तियार खिलजी ने तबाह कर दिया था, और इसके पुस्तकालय को जलने में चार से पांच महीने लगे, जो इसकी व्यापकता को दर्शाता है। भारत में उस समय का ज्ञान आज के वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य है, और इसी ज्ञान के आधार पर हजारों साल पहले महाभारत जैसे महाकाव्य रचे गए थे। भारत एक अद्भुत सभ्यता का केंद्र था, जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं। यह सभ्यता केवल अपनी उन्नत नगर योजना और जल निकासी व्यवस्था के लिए ही नहीं, बल्कि अपने व्यापार, कला, और संस्कृति के लिए भी प्रसिद्ध थी।
इस काल में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे महानगरों का विकास हुआ, जहां की सड़कों और घरों की संरचना हमें उनके उन्नत वास्तुकला कौशल का परिचय देती है। उस समय के लोग कृषि पर आधारित जीवन जीते थे और गेहूं, जौ, और कपास की खेती करते थे। कपास का उपयोग वस्त्र निर्माण के लिए किया जाता था, और व्यापार की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण वस्त्र था। उस समय व्यापार न केवल भारत के भीतर, बल्कि मेसोपोटामिया और अन्य विदेशी सभ्यताओं के साथ भी होता था। सिंधु घाटी के लोग तांबा, कांसा, पत्थर और मिट्टी के बर्तन बनाने में कुशल थे। उनके धार्मिक जीवन में मातृ देवी की पूजा प्रमुख थी और कुछ संकेत यह भी बताते हैं कि पशुपति महादेव की आराधना भी प्रारंभ हो चुकी थी। लिपि के रूप में सिंधु लिपि का उपयोग किया जाता था, जो आज तक पूरी तरह से समझी नहीं जा सकी है। यह समय भारतीय इतिहास का एक सुनहरा अध्याय था, जहां विज्ञान, कला, और व्यापार अपने चरम पर थे, और इसकी समृद्धि का प्रभाव आने वाले युगों तक भारतीय संस्कृति पर दिखाई दिया। India 5000 years ago
- भारत का प्राचीन नाम अजनाभवर्ष था | यह नाम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता नाभीराय के नाम पर रखा गया था |
- ऋषभदेव के सौ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र भरत के नाम पर बाद में भारतवर्ष पड़ा |
- भारत दुनिया का सातवां सबसे पुराना देश है |
- भारत के इतिहास की शुरुआत करीब 65,000 साल पहले हुई थी |
- आर्य लोग सबसे पहले कृषक थे | वे कृषि के लिए उपयुक्त जगहों की तलाश में पंजाब आए और इसी जगह का नाम सप्तसिन्धु प्रदेश रखा |
- आर्यों ने ताम्रयुग की स्थापना की थी | ताम्रयुग के चिह्न सरस्वती नदी के किनारे मिले हैं |
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भारत, प्राचीन ज्ञान और उन्नत विज्ञान की धरोहर! कैसा था पुराना भारत, यहां जानिए प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम? India 5000 years ago
भारत, विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जिसका इतिहास हजारों वर्षों तक फैला हुआ है। आज से 5000 साल पहले का भारत भी एक समृद्ध और उन्नत सभ्यता थी, जिसने दुनिया को कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। इस लेख में, हम आपको भारत के 5000 साल पहले (India 5000 years ago) के जीवन, संस्कृति, विज्ञान और तकनीक के बारे में बताएंगे।
प्राचीन भारतीय सभ्यता कितनी पुरानी है? | How old is the ancient Indian civilization?
प्राचीन भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी और स्थायी सभ्यताओं में से एक है, जिसका इतिहास हजारों वर्षों में फैला हुआ है। इसका उद्गम सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व) से होता है, जो सिंधु नदी के आसपास उन्नत शहरी योजनाओं और व्यापारिक संबंधों के लिए प्रसिद्ध थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगर इसके उदाहरण हैं, जहाँ उन्नत स्वच्छता व्यवस्था और व्यापार नेटवर्क मौजूद थे।
सभ्यता के पतन के बाद वैदिक सभ्यता (1500 ईसा पूर्व) का उदय हुआ, जो संस्कृत और वेदों पर आधारित थी। वैदिक काल में सामाजिक ढांचे में जाति व्यवस्था का विकास हुआ, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र वर्ग शामिल थे। इसके बाद मौर्य साम्राज्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में भारतीय उपमहाद्वीप को एकीकृत किया, और सम्राटअशोक के बौद्ध धर्म संरक्षण से शांति और अहिंसा का प्रसार हुआ। गुप्त साम्राज्य के समय को भारतीय संस्कृति का स्वर्ण युग माना जाता है, जब विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, और साहित्य में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इस युग ने कला, वास्तुकला, और संगीत में भी समृद्धि देखी।
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भारतीय कैलेंडर का वैज्ञानिक महत्व | Scientific importance of Indian calendar
भारतीय कैलेंडर, जिसे पंचांग भी कहा जाता है, आज भी अपनी सटीकता के लिए जाना जाता है। यह न केवल समय का निर्धारण करता था, बल्कि ग्रहों की चाल और दिशाओं के बारे में भी जानकारी प्रदान करता था। इसका आधार विक्रम संवत है, जो ऋषियों द्वारा विज्ञान के आधार पर निर्मित किया गया था। यह कैलेंडर न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों के निर्धारण में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें गहन वैज्ञानिक आधार भी विद्यमान है। भारतीय कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति और सूर्य की गति के आधार पर आधारित है, जिससे इसे अत्यधिक सटीकता और समकालिकता प्राप्त होती है। इसकी प्रणाली में 12 चंद्रमास और 1 सूर्यवर्ष के आधार पर महीनों की गणना की जाती है, जिसमें हर महीने की शुरुआत पूर्णिमा और अमावस्या के आधार पर होती है।
भारतीय कैलेंडर की अनूठी विशेषता इसकी सटीकता है, जिसमें समय के साथ पृथ्वी की गति, चंद्रमा की स्थिति और सूर्य की गतिविधियों को समायोजित किया गया है। उदाहरण स्वरूप, भारतीय कैलेंडर में अति-संवेदनशील गणना की जाती है, जैसे कि अधिवर्ष (अधिकमास), जो कि हर दो साल में एक बार आता है और यह सौर और चंद्र कैलेंडर के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त, कैलेंडर में ऋतु परिवर्तन और मौसम के चक्र की गणना भी शामिल होती है, जो कृषि और फसल की योजना बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, भारतीय कैलेंडर न केवल सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है बल्कि यह आधुनिक विज्ञान और गणित की गहरी समझ का भी प्रमाण है, जो हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिक उपलब्धियों को उजागर करता है। India 5000 years ago
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प्राचीन भारत की उन्नत तकनीकें | Advanced Technologies of Ancient India
प्राचीन भारत का तकनीकी ज्ञान आज भी विश्व को आश्चर्यचकित करता है। लगभग 5000 साल पहले, भारत में उन्नत तकनीकी कौशल के प्रमाण मिलते हैं। विशेषकर, सिंधु घाटी सभ्यता (2500-1900 ई.पू.) के दौरान, नगरों की योजनाबद्धता और निर्माण की कला बेहद उन्नत थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के नगरों में विस्तृत जल निकासी प्रणाली और अचूक वास्तुकला के नमूने मिलते हैं। इसके अलावा, भारतीय शिल्पकारों ने धातु विज्ञान में भी महत्वपूर्ण प्रगति की, जिनमें विशेष रूप से तांबे और कांस्य के उत्कृष्ट उपयोग की तकनीकें शामिल थीं। आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान में भी भारतीयों ने बड़ी उपलब्धियां की, जैसे कि शल्य चिकित्सा और औषधियों का विस्तार। ‘सुष्रुत संहिता’ और ‘चरक संहिता’ जैसे ग्रंथों में विस्तृत चिकित्सा ज्ञान मौजूद है। इतना ही नहीं, महाभारत काल में गांधारी द्वारा 100 पुत्रों का जन्म एक उदाहरण है, जिसे महर्षि व्यास के विज्ञानिक हस्तक्षेप द्वारा संभव बनाया गया था। यह घटना टेस्ट-ट्यूब बेबी की आधुनिक अवधारणा से कहीं अधिक उन्नत मानी जाती है।
गणित और खगोलशास्त्र में भी भारतीयों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया; आर्यभट्ट और ब्राह्मगुप्त जैसे गणितज्ञों ने अंक प्रणाली और त्रिकोणमिति में नवाचार किए। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित वास्तुशास्त्र और ज्योतिष के नियम भी इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण अत्यंत उन्नत था। इस तरह, प्राचीन भारत की तकनीकें उनकी समृद्ध संस्कृति और विज्ञान की गहरी समझ को दर्शाती हैं, जो आज भी अध्ययन और अनुसंधान का प्रमुख विषय बनी हुई हैं। India 5000 years ago
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चिकित्सा विज्ञान और सुश्रुत के नवाचार | Medical science and innovations of Sushruta
भारत का चिकित्सा विज्ञान प्राचीन काल से ही अत्यंत उन्नत रहा है, और इसमें सुश्रुत का योगदान अमूल्य है। लगभग 5000 साल पहले, भारत में चिकित्सा विज्ञान ने कई महत्वपूर्ण नवाचार किए थे, जो आज भी प्रासंगिक हैं। सुश्रुत, जो ‘सर्जरी का जनक’ माने जाते हैं, ने अपनी पुस्तक ‘सुश्रुत संहिता’ में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांतिकारी विधियाँ पेश कीं। उनकी संहिता में 300 से अधिक सर्जिकल प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है, जिनमें से कई आज भी उपयोग में हैं। उन्होंने चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के औषधियों का प्रयोग, शल्य क्रियाओं का वर्णन और चिकित्सा पद्धतियों का विस्तृत विवरण दिया। सुश्रुत ने न केवल शल्य चिकित्सा में उन्नति की, बल्कि उन्होंने पंचकर्म और आयुर्वेदिक उपचार के महत्व को भी उजागर किया।
उनकी प्रक्रियाओं में पुनर्निर्माण सर्जरी, जैसे कि नासिका (नाक) का पुनर्निर्माण, का उल्लेख मिलता है, जो चिकित्सा विज्ञान में एक बड़ी उपलब्धि थी। सुश्रुत के अनुसार, स्वस्थ जीवन के लिए सही आहार, व्यायाम, और स्वच्छता पर भी जोर दिया गया। उनकी शिक्षाओं और विधियों ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली को विश्वसनीयता और मान्यता दिलाई। इस प्रकार, सुश्रुत और उनके द्वारा किए गए नवाचार चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हैं, जिन्होंने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया।
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महाभारत और परमाणु हथियार | Mahabharata and nuclear weapons
महाभारत एक विशाल और प्राचीन भारतीय महाकाव्य है, जिसे 5000 साल पहले के भारत के इतिहास और संस्कृति का दर्पण कहा जाता है। इसमें धर्म, युद्ध, राजनीति और नैतिकता से जुड़ी गहरी कहानियाँ हैं। लेकिन हाल के वर्षों में महाभारत के कुछ संदर्भों को आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी देखा गया है। इनमें से एक प्रमुख चर्चा परमाणु हथियारों की है। महाभारत में वर्णित “ब्रह्मास्त्र” और “अग्नेयास्त्र” जैसे दिव्यास्त्रों को कई विशेषज्ञ परमाणु हथियारों के रूप में देखते हैं। इस संदर्भ में कुरुक्षेत्र का युद्ध एक बड़ा उदाहरण है, जहाँ इन दिव्यास्त्रों का उपयोग विनाशकारी शक्ति के रूप में होता है। महाभारत में इन अस्त्रों का वर्णन इस तरह किया गया है कि वे पूरे नगरों और मानव सभ्यता को नष्ट करने में सक्षम थे, जैसा कि आज के परमाणु हथियार कर सकते हैं।
इसके अलावा, ‘महाभारत’ में भीषण विस्फोटों, आकाशीय अग्नि, और घातक विकिरण जैसी घटनाओं का उल्लेख है, जो कि परमाणु हमलों की वर्तमान स्थिति से मेल खाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह बहस है कि क्या महाभारत में वर्णित ये घटनाएँ वास्तविक थीं या उन्हें केवल प्रतीकात्मक रूप में समझना चाहिए। लेकिन इतना तय है कि प्राचीन भारत के ग्रंथों में विज्ञान और तकनीक की जटिलताओं को वर्णित किया गया है। महाभारत के संदर्भ में, परमाणु हथियारों जैसी विनाशकारी शक्ति की अवधारणा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि प्राचीन भारतीय सभ्यता ज्ञान और विज्ञान में कितनी उन्नत थी।
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भास्कराचार्य और प्राचीन भारत की वैज्ञानिक खोजें | Bhaskaracharya and scientific discoveries of ancient India
भास्कराचार्य (1114-1185 ई.) प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, जिनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों ने भारत के ज्ञान-विज्ञान के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है। उन्हें भारत का महानतम गणितज्ञ माना जाता है, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें “सिद्धांत शिरोमणि” प्रमुख है। इस ग्रंथ में चार प्रमुख भाग थे – लीलाावती, बीजगणित, ग्रहगणित और गोलाध्याय। भास्कराचार्य ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का वर्णन किया था, जो न्यूटन से सदियों पहले की खोज मानी जाती है। उन्होंने ग्रहों की गति, कक्षाओं की गणना, और सौरमंडल के अन्य पहलुओं पर विस्तार से शोध किया।
उनकी गणितीय कुशलता का अद्भुत उदाहरण उनके द्वारा हल किए गए जटिल समीकरण और बीजगणितीय समस्याएँ हैं। भास्कराचार्य ने शून्य की संकल्पना को और विस्तार से परिभाषित किया, जो गणित की दुनिया में क्रांतिकारी कदम था। इसके साथ ही उन्होंने कालगणना, सूर्य और चंद्र ग्रहण की सटीक गणना, और खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी खोजें न केवल उस समय के वैज्ञानिक समाज को प्रभावित करती थीं, बल्कि आज भी उनकी गणनाएँ और सिद्धांत प्रासंगिक और प्रशंसनीय हैं। भास्कराचार्य की खोजों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में विज्ञान और गणित का स्तर अत्यंत उन्नत था, और भारत के महान विद्वानों ने विज्ञान की नींव रखी जो आधुनिक युग के लिए भी प्रासंगिक है। उनके योगदान ने भारत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध किया और विश्वभर में प्राचीन भारतीय विज्ञान की श्रेष्ठता को सिद्ध किया। India 5000 years ago
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नालंदा की लाइब्रेरी का रहस्य | Mystery of Nalanda Library
नालंदा विश्वविद्यालय, जो आज बिहार में स्थित है, अपने समय में प्राचीन भारत का सबसे प्रमुख ज्ञान केंद्र था। इसका पुस्तकालय, जिसे “धर्मगंज” के नाम से जाना जाता था, तीन मुख्य भागों में बंटा हुआ था – रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। यह पुस्तकालय न केवल भारत, बल्कि पूरे एशिया से आने वाले विद्वानों के लिए ज्ञान का खजाना था। यहां हजारों पांडुलिपियाँ, वेद, उपनिषद, जैन और बौद्ध धर्मग्रंथ, विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, और अन्य विविध विषयों पर साहित्य उपलब्ध था। कहा जाता है कि नालंदा की लाइब्रेरी में इतनी पांडुलिपियाँ थीं कि जब इसे 12वीं सदी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने जलाया, तो वह तीन महीने तक जलती रही।
नालंदा की लाइब्रेरी की आग ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को अमूल्य ज्ञान से वंचित कर दिया। इस पुस्तकालय के नष्ट होने के साथ ही बौद्ध धर्म के अध्ययन और शिक्षा के इस महान केंद्र का भी पतन हो गया। हालांकि, इतिहासकारों और विद्वानों के अनुसार, नालंदा की लाइब्रेरी में संरक्षित कई महत्वपूर्ण दस्तावेज आज भी अज्ञात हैं, और यह रहस्य बना हुआ है कि कुछ पांडुलिपियाँ कहां गायब हो गईं। इसके बावजूद, नालंदा की लाइब्रेरी भारतीय इतिहास में बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अमर है। इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण विषय है। नालंदा की लाइब्रेरी का रहस्य सदियों बाद भी उतना ही गहरा और आकर्षक है, जितना उस समय था जब यह ज्ञान का प्रकाश फैलाती थी।
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तक्षशिला का रहस्य | Mystery of Taxila
तक्षशिला, जिसे आज के पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित माना जाता है, भारत की प्राचीनतम और विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों में से एक था। तक्षशिला की स्थापना करीब 5000 साल पहले हुई थी और यह महाजनपद काल के दौरान बौद्ध धर्म, वेद, गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और राजनीति का प्रमुख केंद्र था। तक्षशिला का नाम राजा तक्ष के नाम पर पड़ा था, जो महाभारत के अनुसार भरतवंशी राजाओं में से एक थे। यहाँ की शिक्षा प्रणाली अद्वितीय थी; यह पहली ऐसी जगह थी जहाँ छात्रों को व्यावहारिक और सैद्धांतिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। प्रसिद्ध विद्वान जैसे चाणक्य (कौटिल्य), चरक, और पाणिनि ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की और ज्ञान का प्रसार किया।
तक्षशिला न केवल शिक्षा का केंद्र था, बल्कि यह व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण केंद्र भी था, क्योंकि यह भारत, ग्रीस, और पर्शिया के बीच व्यापारिक मार्गों के निकट था। आज भी, तक्षशिला के खंडहरों में उस समय की अद्वितीय वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है। यहाँ की खुदाई से निकले स्तूप, मठ और विश्वविद्यालयों के अवशेष, इस बात का प्रमाण देते हैं कि तक्षशिला कितना समृद्ध और उन्नत शिक्षा केंद्र था। यद्यपि समय के साथ तक्षशिला का पतन हुआ, लेकिन इसका रहस्य और ऐतिहासिक महत्व आज भी लोगों को आकर्षित करता है। तक्षशिला का यह प्राचीन रहस्य न केवल भारत की ऐतिहासिक धरोहर को उजागर करता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि उस समय की शिक्षा और संस्कृति कितनी उन्नत थी। India 5000 years ago
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विदेशी आक्रमणों का प्रभाव और भारतीय ज्ञान की हानि | Impact of foreign invasions and loss of Indian knowledge
भारत में पिछले 5000 वर्षों के दौरान अनेक विदेशी आक्रमण हुए, जिन्होंने न केवल भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि यहाँ के अद्वितीय ज्ञान, विज्ञान और साहित्य को भी भारी क्षति पहुँचाई। सबसे पहले, 326 ईसा पूर्व में सिकंदर के आक्रमण से लेकर मध्यकालीन इस्लामी आक्रमणों तक, इन आक्रमणों ने भारत की समृद्ध ज्ञान-परंपरा को बाधित किया। विशेषकर तुर्क और मुग़ल आक्रमणों ने यहाँ की शैक्षिक और सांस्कृतिक धरोहर को बहुत नुकसान पहुँचाया। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया, जिससे हजारों वर्षों की वैज्ञानिक, धार्मिक, और दार्शनिक जानकारी लुप्त हो गई। यही नहीं, विदेशी आक्रमणों के चलते संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे गए अनमोल ग्रंथ भी नष्ट हो गए या खो गए।
इसके अलावा, भारतीय समाज में विदेशी शासन के कारण सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था में भी विकार उत्पन्न हुए, जिससे भारतीय ज्ञान की धारा का प्रवाह रुक गया। इस काल में शिक्षा के प्रति लोगों की रुचि कम हो गई, और भारत की ज्ञान-समृद्ध परंपरा धूमिल हो गई। इस दौरान बड़ी मात्रा में बौद्ध और हिंदू साहित्य नष्ट हो गया या चोरी कर विदेशों में पहुँच गया। विदेशी आक्रमणों का प्रभाव भारतीय शिक्षा, कला, विज्ञान और तकनीक के विकास को सदियों पीछे ले गया, जिससे पुनः उभरने में काफी समय लगा। India 5000 years ago
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