ममता और सेवा की मिसाल! जानिए, मदर टेरेसा की जीवनी, प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, मानवीय कार्य, विरासत, उपलब्धियाँ | Mother Teresa Paragraph in 100 Words | Mother Teresa Biography In Hindi | Mother Teresa Story | Mother Teresa Death | Mother Teresa Full Name | Biography of Mother Teresa
Mother Teresa Biography: मदर टेरेसा, जिन्हें दुनिया एक संत, दयालु माँ और गरीबों की मसीहा के रूप में जानती है, एक ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। उनकी कहानी प्रेरणा, त्याग, और अटूट विश्वास की कहानी है। 26 अगस्त, 1910 को जन्मीं इस महान आत्मा ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी सेवा और प्रेम की छाप छोड़ी। इस ब्लॉग में हम उनके जीवन के हर पहलू को सरल और स्पष्ट भाषा में समझेंगे, जिसमें उनके बचपन, मिशनरी जीवन, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना, उनकी उपलब्धियाँ, आलोचनाएँ, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा शामिल है। यह लेख 5000 शब्दों में उनकी पूरी कहानी को समेटता है।
Mother Teresa का प्रारंभिक जीवन और परिवार
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को उस्कुप, ओटोमन साम्राज्य (अब स्कोप्जे, उत्तरी मैसेडोनिया) में हुआ था। उनका जन्म का नाम था अंजेज़े गोंक्सा बोजाक्सीहु। “अंजेज़े” का अर्थ है “एग्नेस” और “गोंक्सा” का अर्थ अल्बानियाई भाषा में “फूल की कली” है। वह एक अल्बानियाई परिवार की सबसे छोटी संतान थीं। उनके पिता, निकोले बोजाक्सीहु, एक व्यापारी और स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे, जबकि उनकी माँ, ड्रानाफाइल, एक गृहिणी थीं जो अपने बच्चों को धार्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ पालने में विश्वास रखती थीं।
अंजेज़े का जन्म स्कोप्जे में हुआ, लेकिन उनके परिवार की जड़ें अल्बानिया के मिर्डिता क्षेत्र से थीं। उनकी माँ का संबंध गजाकोवा के एक गाँव से था। जब अंजेज़े केवल आठ वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। कुछ लोग मानते हैं कि उनकी मृत्यु बेलग्रेड में एक राजनीतिक बैठक के दौरान जहर देने के कारण हुई थी। इस घटना ने उनके परिवार को आर्थिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित किया।
बचपन से ही अंजेज़े धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। बारह वर्ष की उम्र में, उन्होंने बंगाल के मिशनरियों की कहानियों से प्रेरित होकर धार्मिक जीवन अपनाने का निर्णय लिया। 15 अगस्त, 1928 को, विटिना-लेटनीस के ब्लैक मैडोना मंदिर में प्रार्थना के दौरान उनका यह संकल्प और मजबूत हुआ। 18 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने परिवार को छोड़ दिया और आयरलैंड के रथफर्नहम में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो में शामिल हो गईं, जहाँ उन्होंने अंग्रेजी सीखी। यह उनके लिए एक बड़ा कदम था, क्योंकि वह फिर कभी अपनी माँ और बहन से नहीं मिल पाईं।
अल्बानिया में कम्युनिस्ट शासक एनवर होक्सा के शासन के दौरान, उन्हें अपने परिवार से मिलने की अनुमति नहीं दी गई। वह अपनी माँ और बहन की मृत्यु के बाद ही, कम्युनिस्ट शासन के पतन के पाँच साल बाद, अल्बानिया लौट पाईं। इस दौरान उनकी भावनात्मक पीड़ा को उनकी डायरी में देखा जा सकता है, जहाँ उन्होंने अपनी माँ के कष्टों के बारे में लिखा: “हे ईश्वर, मैं समझ सकता हूँ कि मुझे कष्ट सहना चाहिए, लेकिन मेरी माँ को क्यों कष्ट सहना पड़ रहा है?”
Mother Teresa का भारत में आगमन और मिशनरी जीवन की शुरुआत
1929 में, अंजेज़े भारत आईं और दार्जिलिंग में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो के कॉन्वेंट में अपनी नौसिखिया अवधि शुरू की। यहाँ उन्होंने बंगाली भाषा सीखी और सेंट टेरेसा स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। 24 मई, 1931 को, उन्होंने अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली और संत थेरेसा डी लिसीक्स के नाम पर अपना नाम “टेरेसा” चुना।
1937 में, उन्होंने अपनी गंभीर प्रतिज्ञा ली और “मदर” की उपाधि अपनाई। वह पूर्वी कलकत्ता के एंटाली में लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षिका बनीं और 1944 में प्रधानाध्यापिका नियुक्त हुईं। हालाँकि उन्हें पढ़ाने में आनंद आता था, लेकिन कलकत्ता की मलिन बस्तियों में गरीबी और पीड़ा ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया। 1943 का बंगाल अकाल और 1946 का डायरेक्ट एक्शन डे, जिसने हिंदू-मुस्लिम हिंसा को जन्म दिया, ने उनके मन पर गहरा असर डाला।
10 सितंबर, 1946 को, दार्जिलिंग की यात्रा के दौरान, मदर टेरेसा को एक आध्यात्मिक अनुभव हुआ, जिसे उन्होंने “आह्वान के भीतर आह्वान” कहा। उन्हें लगा कि ईश्वर उन्हें कॉन्वेंट छोड़कर गरीबों की सेवा में जीवन समर्पित करने का आदेश दे रहा है। इस अनुभव ने उनके जीवन का रास्ता बदल दिया। 1948 में, उन्होंने अपने वरिष्ठों से अनुमति लेकर लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और पटना के होली फैमिली अस्पताल में बुनियादी चिकित्सा प्रशिक्षण लिया। इसके बाद, उन्होंने नीले किनारे वाली साधारण सफेद साड़ी को अपनी पोशाक के रूप में चुना और भारतीय नागरिकता ग्रहण की।
Mother Teresa Biography: मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना
1948 में, मदर टेरेसा ने कलकत्ता की मलिन बस्तियों में काम शुरू किया। उन्होंने मोतीझील में एक स्कूल खोला, जहाँ झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। शुरुआती दिन कठिन थे। उनके पास कोई आय नहीं थी, और उन्हें भोजन और अन्य जरूरतों के लिए भीख माँगनी पड़ती थी। उनकी डायरी में इस अवधि का जिक्र है, जहाँ उन्होंने लिखा: “आज, मैंने गरीबों की गरीबी का सबक सीखा। घर की तलाश में मैं तब तक चलती रही जब तक मेरे हाथ-पैर दुखने नहीं लगे।”
7 अक्टूबर, 1950 को, वेटिकन से अनुमति मिलने के बाद, मदर टेरेसा ने “मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी” की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था उन लोगों की देखभाल करना, जिन्हें कोई नहीं चाहता था। 1952 में, उन्होंने कलकत्ता में एक परित्यक्त हिंदू मंदिर को “निर्मल हृदय” नामक धर्मशाला में बदल दिया, जहाँ गरीब और बीमार लोग सम्मान के साथ अपनी अंतिम साँस ले सकते थे। यहाँ हिंदुओं को गंगाजल, मुसलमानों को कुरान, और कैथोलिकों को परम अभिषेक दिया जाता था।
मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के लिए “शांति नगर” नामक एक धर्मशाला खोली और पूरे कलकत्ता में कुष्ठ रोग क्लीनिक स्थापित किए। 1955 में, उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए “निर्मला शिशु भवन” की स्थापना की। 1960 के दशक तक, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने भारत में कई धर्मशालाएँ, अनाथालय, और कुष्ठ रोग गृह खोले। 1965 में, पोप पॉल VI के आदेश से यह संगठन एक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक परिवार बन गया।
वैश्विक विस्तार और मानवता की सेवा
1965 में, मदर टेरेसा ने वेनेजुएला में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का पहला विदेशी केंद्र खोला। इसके बाद, संगठन ने रोम, तंजानिया, ऑस्ट्रिया, और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका, एशिया, अफ्रीका, और यूरोप में अपने केंद्र स्थापित किए। 1997 तक, यह संगठन 120 देशों में 600 मिशन संचालित कर रहा था, जिसमें 4500 से अधिक नन और 450 भाई शामिल थे।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने न केवल गरीबों की सेवा की, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, महामारी, और अकाल के दौरान राहत कार्य भी किए। संगठन ने एचआईवी/एड्स, कुष्ठ रोग, और तपेदिक से पीड़ित लोगों के लिए धर्मशालाएँ, सूप किचन, औषधालय, मोबाइल क्लीनिक, और स्कूल चलाए। उत्तरी अमेरिका, यूरोप, और ऑस्ट्रेलिया में भी उनके केंद्र थे, जहाँ बेघर, शराबी, और एड्स पीड़ितों की देखभाल की जाती थी।
1963 में, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ब्रदर्स की स्थापना हुई, और 1976 में चिंतनशील शाखा शुरू की गई। 1981 में, कॉर्पस क्रिस्टी मूवमेंट और 1984 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी फादर्स की स्थापना हुई। संगठन को दस लाख से अधिक सहकर्मियों (को-वर्कर्स) का समर्थन प्राप्त था, जो 29 मार्च, 1969 को एक आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय संघ बन गया।
मदर टेरेसा ने कई अंतरराष्ट्रीय मिशनों में हिस्सा लिया। 1982 में, बेरूत की घेराबंदी के दौरान, उन्होंने इजरायली सेना और फिलिस्तीनी गुरिल्लाओं के बीच युद्धविराम करवाकर 37 बच्चों को बचाया। उन्होंने इथियोपिया, चेरनोबिल, और आर्मेनिया में पीड़ितों की मदद की। 1991 में, वह अल्बानिया लौटीं और वहाँ एक केंद्र खोला।
Mother Teresa Biography: पुरस्कार और मान्यता
मदर टेरेसा के कार्यों को विश्व भर में सराहा गया। उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें शामिल हैं:
- 1962: रेमन मैग्सेसे शांति पुरस्कार, जो उन्हें गरीबों की सेवा के लिए दिया गया।
- 1969: अंतरराष्ट्रीय समझ के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार।
- 1971: पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार।
- 1975: अल्बर्ट श्वित्ज़र अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार।
- 1978: बलजान पुरस्कार।
- 1979: नोबेल शांति पुरस्कार, जो उन्हें गरीबी और संकट से लड़ने के लिए मिला। उन्होंने इस पुरस्कार की राशि (192,000 डॉलर) गरीबों की मदद के लिए दान कर दी।
- 1980: भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- 1982: ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया का मानद साथी।
- 1983: ऑर्डर ऑफ मेरिट (यूनाइटेड किंगडम)।
- 1994: अल्बानिया का स्वर्ण सम्मान।
- 1996: संयुक्त राज्य अमेरिका की मानद नागरिकता।
उन्हें कई विश्वविद्यालयों से मानद उपाधियाँ भी मिलीं। 1999 में, गैलप के सर्वेक्षण में वह 20वीं सदी की सबसे प्रशंसित व्यक्ति चुनी गईं। भारत सरकार ने उनकी जन्म शताब्दी पर 2010 में 5 रुपये का सिक्का जारी किया। उनकी मृत्यु के बाद, 5 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय दान दिवस के रूप में नामित किया।
Mother Teresa के बारे में आलोचनाएँ और विवाद!
मदर टेरेसा की प्रशंसा के साथ-साथ उनकी आलोचना भी हुई। कुछ आलोचकों, जैसे क्रिस्टोफर हिचेन्स, ने उनके कार्यों को “गरीबी की मित्र” कहकर आलोचना की। उन्होंने तर्क दिया कि वह गरीबी को समाप्त करने के बजाय उसे बढ़ावा देती थीं और गर्भपात व गर्भनिरोधक का विरोध करके महिलाओं के सशक्तीकरण को रोकती थीं। हिचेन्स ने उन पर पाखंड का आरोप लगाया, क्योंकि वह स्वयं उन्नत चिकित्सा उपचार लेती थीं, लेकिन उनके क्लीनिकों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ नहीं थीं।
कनाडाई शिक्षाविदों सर्ज लारिवे, जेनेवीव चेनार्ड, और कैरोल सेनेचल ने उनके क्लीनिकों में दर्द निवारक दवाओं और उचित चिकित्सा देखभाल की कमी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा का मानना था कि बीमारों को कष्ट सहना चाहिए, जैसा यीशु ने क्रूस पर किया।
1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद, मदर टेरेसा ने पीड़ितों से यूनियन कार्बाइड को क्षमा करने को कहा, जिसे कुछ लोगों ने कॉर्पोरेट अपराधों की लीपापोती के रूप में देखा। 1994 में, उन्होंने जेसुइट पादरी डोनाल्ड मैकगायर का बचाव किया, जिन पर बाद में यौन शोषण के आरोप सिद्ध हुए।
भारत में, कुछ हिंदू संगठनों, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ने उन पर धर्मांतरण का आरोप लगाया। कोलकाता के कुछ लोगों, जैसे चिकित्सक अरूप चटर्जी और पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य, ने कहा कि उनके कार्यों का शहर के गरीबों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने कोलकाता की छवि को गलत तरीके से प्रस्तुत किया।
हालाँकि, इन आलोचनाओं का खंडन भी किया गया। सिस्टर मैरी प्रेमा पियरिक और नवीन चावला ने कहा कि मदर टेरेसा का उद्देश्य अस्पताल बनाना नहीं, बल्कि उन लोगों को सम्मानजनक मृत्यु देना था, जिन्हें कोई नहीं चाहता था। उन्होंने धर्मांतरण के आरोपों को भी खारिज किया।
Mother Teresa का आध्यात्मिक जीवन और संदेह!
मदर टेरेसा का आध्यात्मिक जीवन उनकी सेवा का आधार था। वह हर सुबह प्रार्थना और मास में भाग लेती थीं। वह फ्रांसिस ऑफ असीसी से प्रेरित थीं और उनकी तरह गरीबी, शुद्धता, और आज्ञाकारिता की प्रतिज्ञा को महत्व देती थीं। हालाँकि, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 50 वर्षों में आध्यात्मिक शुष्कता का अनुभव किया, जिसमें उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर संदेह हुआ। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा: “मेरा विश्वास कहाँ है? यहाँ तक कि गहराई में भी खालीपन और अंधकार के अलावा कुछ नहीं है।”
उन्होंने अपने आध्यात्मिक सलाहकारों को पत्र लिखे, जिनमें उन्होंने इस “शून्यता की रात” का जिक्र किया। हालाँकि, वह इस संदेह के बावजूद अपनी सेवा में डटी रहीं। 1958 में, पोप पायस XII की मृत्यु के बाद, उन्हें कुछ समय के लिए आध्यात्मिक शांति मिली, लेकिन यह शुष्कता फिर लौट आई। उनके पत्रों को बाद में “Mother Teresa: Come Be My Light” में संकलित किया गया।
Pope Benedict XVI ने कहा कि उनकी प्रार्थना और ईसा मसीह के प्रति समर्पण ही उनकी सेवा का स्रोत था। यह आध्यात्मिक संघर्ष उन्हें अन्य संतों, जैसे थेरेसा ऑफ लिसीक्स, के समान बनाता है।
Mother Teresa Biography: सेवा की वैश्विक छाप! संत घोषणा और विरासत
मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर, 1997 को हुई। उनकी मृत्यु के बाद, वेटिकन ने उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की। 2002 में, मोनिका बेसरा के ट्यूमर के ठीक होने को उनके पहले चमत्कार के रूप में मान्यता दी गई, हालाँकि कुछ चिकित्सकों ने इसे पारंपरिक उपचार का परिणाम बताया। 2015 में, एक ब्राज़ीलियाई व्यक्ति के ब्रेन ट्यूमर के ठीक होने को उनके दूसरे चमत्कार के रूप में स्वीकार किया गया।
19 अक्टूबर, 2003 को, उन्हें “धन्य” घोषित किया गया, और 4 सितंबर, 2016 को, पोप फ्रांसिस ने उन्हें सेंट पीटर स्क्वायर में संत घोषित किया। 6 सितंबर, 2017 को, उन्हें सेंट फ्रांसिस जेवियर के साथ कलकत्ता आर्चडायोसिस का सह-संरक्षक बनाया गया।
मदर टेरेसा की विरासत आज भी जीवित है। उनके नाम पर स्कूल, अस्पताल, और सड़कें हैं। अल्बानिया में 5 सितंबर को “मदर टेरेसा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। स्कोप्जे में उनके मेमोरियल हाउस और कोसोवो में उनके नाम पर एक कैथेड्रल है। भारत में, मदर टेरेसा महिला विश्वविद्यालय और कई अन्य संस्थाएँ उनके नाम पर हैं। उनकी कहानी को कई वृत्तचित्रों और पुस्तकों, जैसे “समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड” और “मदर टेरेसा: नो ग्रेटर लव” में चित्रित किया गया है।
जब मदर टेरेसा ने इस दुनिया को अलविदा कहा, उस समय “Missionaries of Charity” संस्था ने 123 देशों में 610 सेवा केंद्र चला रही थी। इस संगठन में 4000 से अधिक नन (सिस्टर) और लगभग 300 ब्रदर जुड़े हुए थे। इन केंद्रों में:
- एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक रोगियों के लिए देखभाल गृह
- अनाथ बच्चों और जरूरतमंदों के लिए आश्रय और स्कूल
- सूप किचन और परिवार परामर्श सेवाएं
शामिल थीं। 1990 के दशक तक लाखों लोग इस संस्था से सहयोग कर रहे थे।
Mother Teresa Biography: उनकी स्मृति में समर्पित श्रद्धांजलि!
मदर टेरेसा को न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में याद किया जाता है। कई संस्थान, सड़कें और भवन उनके नाम पर रखे गए हैं:
- अल्बानिया में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
- उत्तरी मैसेडोनिया के स्कोप्जे में Mother Teresa Memorial House
- कोसोवो के प्रिस्टिना शहर में Blessed Mother Teresa Cathedral
अल्बानिया में 5 सितंबर को ‘मदर टेरेसा दिवस’ एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
Mother Teresa Biography: शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
- 1984: तमिलनाडु सरकार ने मदर टेरेसा महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की (कोडईकनाल में)
- 1999: पुडुचेरी में मदर टेरेसा स्नातकोत्तर और स्वास्थ्य विज्ञान अनुसंधान संस्थान की स्थापना
- NGO सेवालया द्वारा मदर टेरेसा गर्ल्स होम का संचालन, जहां अनाथ और गरीब बच्चियों को मुफ्त शिक्षा, भोजन और आवास मिलता है।
Mother Teresa Biography: विशेष सम्मान और राष्ट्रीय श्रद्धांजलियाँ
- 2010: भारतीय रेलवे ने मदर टेरेसा की जन्म शताब्दी पर “मदर एक्सप्रेस” नाम की ट्रेन शुरू की।
- तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई में उनकी याद में शताब्दी समारोह का आयोजन किया।
- 5 सितंबर 2013: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनकी पुण्यतिथि को अंतरराष्ट्रीय दान दिवस (International Day of Charity) घोषित किया। History of 5 September
- 2012: Outlook India के एक सर्वेक्षण में उन्हें भारत की 5वीं सबसे महान शख्सियत घोषित किया गया।
Mother Teresa Biography: फिल्मों और पुस्तकों में उनका जीवन!
प्रेरणादायक दस्तावेज़
- “Something Beautiful for God” (1969 की BBC डॉक्यूमेंट्री और 1971 की किताब): मैल्कम मुगेरिज द्वारा निर्मित
- इस डॉक्यूमेंट्री ने मदर टेरेसा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
- “Hell’s Angel” (1994): लेखक क्रिस्टोफर हिचेन्स ने मदर टेरेसा के कार्यों की आलोचना की
- हिचेन्स की किताब “The Missionary Position” में भी यह विचार विस्तार से प्रस्तुत किया गया
भारत की नज़र से
- “Mother of the Century” (2001) और “Mother Teresa” (2002): अमर कुमार भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित
- भारत सरकार के फिल्म डिवीजन द्वारा निर्मित ये डॉक्यूमेंट्री भारत में उनके सेवा कार्यों को दर्शाती हैं
संग्रहालय और स्मारक
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एवे मारिया विश्वविद्यालय, फ्लोरिडा (USA) में मदर टेरेसा को समर्पित एक संग्रहालय है, जो उनकी सेवा यात्रा को संरक्षित करता है।
निष्कर्ष: Mother Teresa Biography
मदर टेरेसा का जीवन एक ऐसी मिसाल है जो हमें प्रेम, करुणा, और निस्वार्थ सेवा का पाठ पढ़ाती है। उन्होंने अपने कार्यों से दिखाया कि छोटे-छोटे प्रयासों से भी दुनिया में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उनकी आलोचनाएँ भले ही रही हों, लेकिन उनकी सेवा और समर्पण ने लाखों लोगों के जीवन को छुआ। वह न केवल एक संत थीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा थीं जो हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी दूसरों की मदद में है। उनकी यह बात, “घर जाओ और अपने परिवार से प्यार करो,” आज भी हमें प्रेम और एकता का संदेश देती है।