क्यों महान थे महाराणा प्रताप? जीवन और युद्ध गाथा – जानिए पूरी बायोग्राफी हिंदी में! | Maharana Pratap History in Hindi | Maharana Pratap Biography | Maharana Pratap Jeevan Parichay | Maharana Pratap Jeevani | Maharana Pratap Jayanti 2025
Maharana Pratap Biography: महाराणा प्रताप, जिन्हें भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता, साहस और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, मेवाड़ के एक ऐसे शासक थे जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उनकी वीरता, दृढ़ संकल्प और मातृभूमि के प्रति समर्पण की कहानियाँ आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती हैं। यह लेख महाराणा प्रताप के जीवन के विभिन्न पहलुओं, उनके बचपन, व्यक्तिगत जीवन, युद्धों, और उनके अमर योगदान को विस्तार से प्रस्तुत करता है।
प्रारंभिक जीवन और जन्म
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार, उनका जन्म ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। उनके पिता महाराजा उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक थे, और उनकी माता रानी जयवंता बाई थीं। महाराणा प्रताप राणा सांगा के पोते थे, जिन्हें मेवाड़ का गौरवशाली इतिहास विरासत में मिला। बचपन में उन्हें प्यार से ‘कीका’ कहा जाता था।
महाराणा प्रताप का जन्म उस समय हुआ जब मेवाड़ मुगल आक्रमणों का सामना कर रहा था। 1557 में, जब मुगल सेना ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ को घेर लिया, तो उनके पिता उदय सिंह ने परिवार को सुरक्षित स्थान गोगुंडा में स्थानांतरित कर दिया। युवा प्रताप ने अपने पिता के इस निर्णय का विरोध किया और चित्तौड़ में रहकर युद्ध लड़ने की इच्छा जताई। हालांकि, उनके बुजुर्गों ने उन्हें समझाया, और वे गोगुंडा चले गए। इस घटना से उनके साहस और मातृभूमि के प्रति प्रेम की झलक मिलती है।
उनकी जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को विक्रमी संवत के अनुसार मनाई जाती है। राजस्थान में इस दिन को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण, और श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जाते हैं।
व्यक्तिगत जीवन
महाराणा प्रताप का व्यक्तिगत जीवन उनकी वीरता और समर्पण का प्रतीक है। उनकी पहली पत्नी महारानी अजबदे पंवार थीं, जो उनकी विश्वासपात्र और जीवन की कठिनाइयों में सहयोगी रहीं। अजबदे ने न केवल उनके निजी जीवन में, बल्कि मेवाड़ को पुनः प्राप्त करने के संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके दो पुत्र थे—अमर सिंह और भगवान दास। अमर सिंह ने बाद में मेवाड़ की गद्दी संभाली।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 विवाह किए, जो उस समय राजपूत शासकों में प्रचलित था। उनकी अन्य पत्नियों और उनसे प्राप्त संतानों के नाम इस प्रकार हैं:
- अमरबाई राठौर: पुत्र—नत्था
- शहमति बाई हाडा: पुत्र—पुरा
- अलमदेबाई चौहान: पुत्र—जसवंत सिंह
- रत्नावती बाई परमार: पुत्र—माल, गज, क्लिंगु
- लखाबाई: पुत्र—रायभाना
- जसोबाई चौहान: पुत्र—कल्याणदास
- चंपाबाई जंथी: पुत्र—कल्ला, सनवालदास, दुर्जन सिंह
- सोलनखिनीपुर बाई: पुत्र—साशा, गोपाल
- फूलबाई राठौर: पुत्रियाँ—चंदा, शिखा
- खीचर आशाबाई: पुत्र—हत्थी, राम सिंह
इतिहास के अनुसार, महाराणा प्रताप के कुल 17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ थीं। उनके पिता उदय सिंह की भी कई पत्नियाँ थीं, जिनमें रानी धीरबाई (रानी भटियाणी) उनकी प्रिय थीं। धीरबाई चाहती थीं कि उनका पुत्र जगमाल उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने, लेकिन प्रजा और दरबारियों ने प्रताप को ही योग्य माना। इस कारण जगमाल, शक्ति सिंह, और सागर सिंह जैसे भाइयों के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण रहे।
उत्तराधिकार और राज्याभिषेक
उदय सिंह की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। रानी धीरबाई अपने पुत्र जगमाल को सिंहासन पर देखना चाहती थीं, लेकिन मेवाड़ की कठिन परिस्थितियों को देखते हुए दरबारियों ने महाराणा प्रताप को उपयुक्त माना। उनका प्रथम राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुंडा में हुआ, और विधिवत दूसरा राज्याभिषेक उसी वर्ष कुंभलगढ़ दुर्ग में संपन्न हुआ। इस समारोह में जोधपुर के राठौड़ शासक राव चंद्रसेन भी उपस्थित थे।
जगमाल, जो अपने भाई के उत्तराधिकार से असंतुष्ट था, ने मुगल सम्राट अकबर का साथ देना शुरू कर दिया। यह मेवाड़ के लिए एक आंतरिक चुनौती थी, लेकिन प्रताप ने अपनी नेतृत्व क्षमता और प्रजा के समर्थन से इसे पार किया।
मुगलों के साथ संघर्ष
महाराणा प्रताप का जीवन मुगल साम्राज्य के खिलाफ निरंतर संघर्ष की कहानी है। सम्राट अकबर मेवाड़ को अपने अधीन करना चाहता था, लेकिन प्रताप ने कभी भी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने बिना युद्ध के प्रताप को मनाने के लिए चार राजदूत भेजे:
- जलाल खाँ (सितंबर 1572)
- मानसिंह (1573)
- भगवान दास (सितंबर 1573)
- टोडरमल (दिसंबर 1573)
इन सभी प्रयासों के बावजूद, प्रताप ने मुगलों की मित्रता को ठुकरा दिया। उनकी यह दृढ़ता हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध का कारण बनी।
हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576)
हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध युद्धों में से एक है। यह युद्ध मेवाड़ की सेना, जिसका नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया, और मुगल सेना, जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह और आसफ खाँ ने किया, के बीच हुआ। युद्ध का स्थान गोगुंडा के पास हल्दीघाटी का संकरा पहाड़ी दर्रा था।
महाराणा प्रताप की सेना में लगभग 3,000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारी थे, जबकि मुगल सेना में 5,000 से 10,000 सैनिक थे। तीन घंटे तक चले इस भयंकर युद्ध में प्रताप की सेना ने अद्भुत वीरता दिखाई। उनके विश्वासपात्र सरदारों में हकीम खाँ सूरी, जो एकमात्र मुस्लिम सरदार थे, और भील सेना के सरदार राणा पूंजा सोलंकी शामिल थे।
युद्ध के दौरान, जब प्रताप शत्रु सेना से घिर गए, उनके सरदार झाला मानसिंह ने अपने प्राणों का बलिदान देकर उन्हें बचाया। उनके भाई शक्ति सिंह ने अपना अश्व देकर उनकी जान बचाई। इस युद्ध में प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक भी गंभीर रूप से घायल हो गया। चेतक ने एक विशाल नाले को पार करके प्रताप को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया, लेकिन बाद में उसकी मृत्यु हो गई। चेतक की वीरता को आज भी “चेतक समाधि” के रूप में हल्दीघाटी में याद किया जाता है।
हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना को भारी नुकसान हुआ, जिसमें लगभग 1,600 सैनिक मारे गए, जबकि मुगल सेना ने 3,500 से 7,800 सैनिक खोए। इतिहासकारों के बीच इस युद्ध के परिणाम पर मतभेद हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रताप ने अपनी छोटी सेना के साथ मुगलों को कड़ा मुकाबला दिया। युद्ध के बाद, प्रताप पहाड़ियों में चले गए और छापामार युद्ध की रणनीति अपनाई।
अन्य महत्वपूर्ण युद्ध
महाराणा प्रताप ने अपने जीवनकाल में कई अन्य युद्ध लड़े, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- दिवेर-छापली का युद्ध (1582): यह युद्ध मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रताप ने अपने खोए हुए कई क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया। इस युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड ने “मेवाड़ का मैराथन” कहा। प्रताप ने मुगल चौकियों पर आक्रमण किए और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा किया। उनके मंत्री भामाशाह ने मालवा पर चढ़ाई करके 2.3 लाख रुपये और 20,000 अशर्फियाँ एकत्र कीं, जिससे सेना को आर्थिक सहायता मिली।
- खिमसर की लड़ाई (1584): इस युद्ध में प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपनी दृढ़ता दिखाई। हालांकि इसका कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला, लेकिन इसने मुगल सेना को मेवाड़ में उनकी शक्ति का अहसास कराया।
- राकेम की लड़ाई (1597): इस युद्ध में प्रताप ने मुगलों से अपने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल किया। उनकी आश्चर्यजनक और तेज हमलों की रणनीति ने मुगल सेना को कमजोर किया।
- गोगुंडा की लड़ाई (1576-1577): इस युद्ध में प्रताप ने अपनी सेना को पुनर्गठित करके उदयपुर में मुगल कमांडर पर हमला किया। यह युद्ध उनकी दृढ़ता का प्रतीक था।
- रखतलाई की लड़ाई (1587): इस युद्ध में प्रताप ने मुगलों और आमेर की संयुक्त सेना का सामना किया। युद्ध अनिर्णायक रहा, लेकिन प्रताप हार से बच गए।
चेतक: वफादार घोड़ा
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक उनकी वीरता का एक अभिन्न हिस्सा था। चेतक न केवल एक घोड़ा था, बल्कि प्रताप का सबसे वफादार साथी था। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने असाधारण साहस दिखाया। जब प्रताप शत्रुओं से घिर गए थे, चेतक ने एक विशाल नाले को पार करके उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। इस दौरान चेतक गंभीर रूप से घायल हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। प्रताप ने अपने प्रिय घोड़े के सम्मान में हल्दीघाटी में “चेतक समाधि” बनवाया, जो आज भी उनकी वफादारी का प्रतीक है।
छापामार युद्ध और प्रतिरोध
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने अरावली की पहाड़ियों को अपना आधार बनाया और छापामार युद्ध की रणनीति अपनाई। उन्होंने मुगल चौकियों पर आकस्मिक हमले किए, उनके कर संग्राहकों को परेशान किया, और मेवाड़ को मुगल शासन से मुक्त रखने के लिए निरंतर प्रयास किए। इस दौरान, उनके मंत्री भामाशाह ने उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे सेना को बल मिला।
प्रताप ने अपनी प्रजा को भी मुगल हमलों के समय पहाड़ी क्षेत्रों में शरण लेने का निर्देश दिया। उनकी इस रणनीति ने मेवाड़ को एक बंजर भूमि में बदल दिया, जिससे मुगलों के लिए इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। जेम्स टॉड ने लिखा है कि अरावली की पहाड़ियों में प्रताप जैसे स्वतंत्रता सेनानी के लिए वीरता का कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
मेवाड़ की मुक्ति
1579 से 1585 के बीच, जब मुगल साम्राज्य के अन्य हिस्सों में विद्रोह शुरू हुए, महाराणा प्रताप ने इसका लाभ उठाया। उन्होंने अपनी सेना के साथ मुगल चौकियों पर हमले तेज कर दिए और उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर पुनः कब्जा कर लिया। 1585 तक, मेवाड़ पर मुगल दबाव कम हो गया, और प्रताप ने अपनी सत्ता को पुनः स्थापित किया। यह मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग था, क्योंकि प्रताप ने 12 वर्षों के संघर्ष के बाद अपनी भूमि को मुक्त कर लिया।
Maharana Pratap Biography: मृत्यु और विरासत
19 जनवरी 1597 को, महाराणा प्रताप का निधन उनकी नई राजधानी चावंड में हुआ। उनकी मृत्यु के समय अकबर लाहौर में था। जब उसे यह समाचार मिला, तो वह मौन हो गया और उसकी आँखों में आँसू आ गए। अकबर, जो प्रताप का शत्रु था, उनके गुणों का प्रशंसक भी था। अकबर के दरबारी दुरसा आढ़ा ने इस घटना का वर्णन राजस्थानी छंद में किया:
अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी
गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी
नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली
न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली
गहलोत राणा जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी
निसा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी
महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र अमर सिंह प्रथम ने मेवाड़ की गद्दी संभाली। अमर सिंह ने 1620 तक शासन किया और कई युद्धों में मुगलों का सामना किया। हालांकि, 1614 में उन्होंने सम्राट जहांगीर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। मृत्युशय्या पर, प्रताप ने अपने पुत्र को मुगलों के सामने न झुकने और चित्तौड़ को वापस जीतने का निर्देश दिया था।
महाराणा प्रताप की वीरता का प्रभाव
महाराणा प्रताप की कहानी साहस, बलिदान, और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है। उन्होंने न केवल मुगल साम्राज्य का विरोध किया, बल्कि अपनी प्रजा को एकता और दृढ़ता का संदेश दिया। उनकी वीरता को निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है:
- स्वतंत्रता के लिए संघर्ष: प्रताप ने कभी भी मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की और अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
- रणनीतिक नेतृत्व: उनकी छापामार युद्ध की रणनीति और मुगल चौकियों पर आकस्मिक हमलों ने उन्हें एक कुशल योद्धा साबित किया।
- प्रजा के प्रति समर्पण: उन्होंने अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास किया और उन्हें मुगल हमलों से बचाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में शरण लेने का निर्देश दिया।
- चेतक के साथ बंधन: चेतक और प्रताप का रिश्ता वफादारी और साहस का प्रतीक है, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है।
Maharana Pratap Jayanti का इतिहास
महाराणा प्रताप को एक सच्चे देशभक्त के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता की पहली लड़ाई शुरू की थी। उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में सबसे प्रसिद्ध मुगल सम्राटों में से एक अकबर के साथ लड़ाई लड़ी थी। युद्ध 4 घंटे तक चला और अंत में महाराणा प्रताप को भागना पड़ा। हालाँकि, वह युद्ध के मैदान में कई विरोधियों को मारने में कामयाब रहे, जिससे उन्हें आज जो सम्मान और प्रतिष्ठा मिली है, वह उन्हें मिली।
यही कारण है कि उनकी जयंती हिंदू कैलेंडर के तीसरे महीने ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया को हर साल महाराणा प्रताप जयंती के रूप में मनाई जाती है ।
भारत के लोग, खास तौर पर उत्तर भारत में, महाराणा प्रताप का सम्मान करते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं। महान राजा की गाथा तब शुरू हुई जब मुगल सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप के पिता के वंश पर आक्रमण किया। बाद में, जब महाराणा प्रताप खुद राजा बने, तो उन्होंने कई बार अकबर के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया। हालाँकि राजा ने मुगलों पर पूरी तरह से विजय प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उन्होंने एक बार हल्दीघाटी के युद्ध में उन्हें हराया था, भले ही वे संख्या में दो से एक से कम थे। उन्होंने ऐसा इलाके की रणनीति का उपयोग करके किया जिसका उद्देश्य विरोधी सेनापति को मारना था।
Maharana Pratap Jayanti कैसे मनाई जाती है?
महाराणा प्रताप जयंती पर उनकी याद में व्यापक, विशेष पूजा की जाती है। देश के कई हिस्सों में, इस विशेष दिन पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और वाद-विवाद भी होते हैं। कई लोग उनके जन्मदिन पर उदयपुर में स्थित उनकी स्मारक प्रतिमा के दर्शन भी करते हैं। इसके अलावा, राजा की विरासत का सम्मान करने के लिए जीवंत परेड और धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं।
महाराणा प्रताप जयंती राजस्थान में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस दिन राजस्थान में छुट्टी होती है और सभी लोग महाराणा प्रताप की जयंती मनाने में हिस्सा लेते हैं। महाराणा प्रताप जयंती के दिन पूरे राज्य में सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी और पारंपरिक परिधानों में ऊँटों पर जुलूस निकाला जाएगा।
इस दिन उदयपुर और चित्तौड़गढ़ किले जैसे महाराणा प्रताप से जुड़े स्मारकों और स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। राजा की बहादुरी और वीरता तथा उनके साहसिक कार्यों को याद करने के महत्व पर भाषण और वार्ता भी होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एकता के संदेश को रेखांकित करने के लिए महाराणा प्रताप जयंती पर भोज आयोजित किए जाएंगे। इस दिन महाराणा प्रताप की बहादुरी, देशभक्ति और दुश्मनों के प्रति उनके उग्र प्रतिरोध को कृतज्ञता और श्रद्धा के साथ याद किया जाएगा।
निष्कर्ष: Maharana Pratap Biography
महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों के लिए जीवनभर संघर्ष किया। उनकी कहानी केवल एक राजा की नहीं, बल्कि एक सच्चे देशभक्त की है, जिसने अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ त्याग दिया। हल्दीघाटी का युद्ध, चेतक की वीरता, और मेवाड़ की मुक्ति की कहानियाँ भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अंकित हैं।
उनकी जयंती प्रत्येक वर्ष 9 मई को मनाई जाती है, जो हमें उनके साहस और समर्पण को याद करने का अवसर देती है। महाराणा प्रताप की प्रतिमा, जो उनकी वीरता को दर्शाती है, आज भी राजस्थान के कई स्थानों पर स्थापित है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा साहस वह है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।
राणा प्रताप वीर बलबंता, मेवाड़ के गौरव की कांता।
मुगल सेना को ललकारा, स्वतंत्रता का अलख जगारा।
चेतक संग रण में डटे, साहस के प्रतीक बन गए।
अमर रहेगा नाम उनका, जो मातृभूमि पे मर मिटे।
महाराणा प्रताप का जीवन हर भारतीय के लिए एक प्रेरणा है। उनकी वीरता और देशभक्ति की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा योद्धा वही है जो अपने देश और संस्कृति के लिए हर कठिनाई को हँसते-हँसते स्वीकार करता है। Maharana Pratap Biography
FAQs: Maharana Pratap Biography
अकबर को किसने हराया?
हल्दीघाटी की लड़ाई को अक्सर अकबर के विरुद्ध प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह कहना अधिक सटीक होगा कि महाराणा प्रताप की सेना ने अत्यंत साहसपूर्वक संघर्ष किया। हालांकि यह युद्ध किसी निर्णायक जीत के साथ समाप्त नहीं हुआ, लेकिन महाराणा प्रताप की रणनीति और साहस ने मुगलों को झुका दिया। यह युद्ध एक प्रकार का गतिरोध रहा, जिसके पश्चात मुगलों ने इस क्षेत्र पर प्रभाव बनाए रखा।
महाराणा प्रताप की जयंती कब मनाई जाती है?
प्रताप जयंती, जिसे महाराणा प्रताप जयंती भी कहा जाता है, राजस्थान में एक प्रमुख पर्व और सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाई जाती है। यह तिथि सामान्यतः 9 मई को मनाई जाती है, हालांकि कुछ लोग इसे 22 मई को भी मनाते हैं।
9 मई को किसकी जयंती है?
9 मई को महाराणा प्रताप की जयंती होती है। इसे महाराणा प्रताप जयंती या प्रताप जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन एक महान भारतीय योद्धा की स्मृति में सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
महाराणा प्रताप की तलवार वर्तमान में कहाँ है?
महाराणा प्रताप की तलवारें वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर में स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय में संरक्षित हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रताप जयंती कब मनाई जाती है? Maharana Pratap Jayanti 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह तिथि कभी 9 मई तो कभी 22 मई को पड़ती है।
महाराणा प्रताप की लंबाई कितनी थी? Maharana Pratap Height
महाराणा प्रताप की लंबाई लगभग 7 फीट 5 इंच बताई जाती है, जबकि अकबर की लंबाई 5 फीट 6 इंच थी। अकबर ने कभी महाराणा प्रताप का सामना सीधे नहीं किया, बल्कि हमेशा किसी प्रतिनिधि के माध्यम से बातचीत या संघर्ष किया।
महाराणा प्रताप का निधन कब हुआ?
महाराणा प्रताप का जन्म 1540 में हुआ था और उनका निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था।
महाराणा प्रताप को किसने मारा?
महाराणा प्रताप की मृत्यु किसी युद्ध में नहीं हुई थी। उनका निधन शिकार के दौरान लगी गंभीर चोटों के कारण हुआ।
महाराणा प्रताप के वंशज कौन थे?
अरविंद सिंह मेवाड़ महाराणा प्रताप के वंशज हैं। वे भगवत सिंह मेवाड़ और सुशीला कुमारी के पुत्र थे। उनके बड़े भाई महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन 10 नवंबर 2024 को हुआ। अरविंद सिंह के निधन के पश्चात सिटी पैलेस को पर्यटकों के लिए अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
महाराणा प्रताप के कितने पुत्र थे?
महाराणा प्रताप के कुल 17 पुत्र थे, जिनमें अमर सिंह सबसे प्रसिद्ध हुए और बाद में मेवाड़ के शासक बने। अन्य पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं: भगवानदास, सहसमल, गोपाल, काचरा, सांवलदास, दुर्जनसिंह, कल्याणदास, चंदा, शेखा, पूर्णमल, हाथी, रामसिंह, जसवंतसिंह, माना, नाथा और रायभान।
महाराणा प्रताप के पास कितने घोड़े थे?
महाराणा प्रताप के पास चेतक नामक एक बहादुर और प्रिय घोड़ा था, जो हल्दीघाटी युद्ध के दौरान उन्हें सुरक्षित निकालने में सहायक रहा।
महाराणा प्रताप की तलवार का वजन कितना था?
महाराणा प्रताप द्वारा उपयोग किए गए अस्त्र-शस्त्रों का कुल वजन लगभग 35 किलो था।
वर्तमान में मेवाड़ का राजा कौन है?
मेवाड़ की गद्दी को लेकर विवाद की स्थिति है। महाराणा प्रताप के वंशज महेंद्र सिंह मेवाड़ के पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ को वर्तमान उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बैठाया गया है।
चेतक की मृत्यु कैसे हुई?
हल्दीघाटी युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद चेतक ने महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। इसके पश्चात वह अपने घावों के कारण वीरगति को प्राप्त हुआ। यह कथा वर्षों से मेवाड़ की लोककथाओं और दरबारी कविताओं में सुनाई जाती है।
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