Mystery of Shiv Shakti Rekha: जानें एक सीधी रेखा में बने शिव के 7 मंदिरों का रहस्य!

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धर्म या विज्ञान: केदारनाथ से रामेश्वरम् तक 7 शिव मंदिर जो देशांतर रेखा के हिसाब से एक ही कतार में हैं! आखिर एक ही सीधी रेखा में क्यों बने हैं शिव के ये 7 मंदिर?

Mystery of Shiv Shakti Rekha: उत्तराखंड के केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग में एक अनूठा संबंध है। दोनों ही ज्योतिर्लिंग देशांतर रेखा (longitude line) पर 79 डिग्री पर मौजूद हैं। इन दो ज्योतिर्लिंगों के बीच 5 ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो सृष्टि के पंच तत्व यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती का प्रतिनिधित्व करते हैं। केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच की दूरी लगभग 2,382 किलोमीटर है |

तमिलनाडु के अरुणाचलेश्वर, थिल्लई नटराज, जम्बूकेश्वर, एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर और आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्ती शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि ये सृष्टि के पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सभी देशांतर रेखा पर 79 डिग्री पर स्थापित हैं, जो उत्तर से दक्षिण तक भारत को दो हिस्सों में बांटती है। इस रेखा के एक छोर पर उत्तर में केदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को भी इसी कतार में गिना जाता है, लेकिन वास्तव में महाकालेश्वर मंदिर 79 डिग्री पर नहीं, बल्कि 75.768 डिग्री पर स्थापित है। इस कारण यह इस कतार से थोड़ा बाहर है।

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ये महज संयोग नहीं है कि ये 7 शिव मंदिर एक साथ एक ही कतार में आते हैं। दो ज्योतिर्लिंगों के बीच ये पांच शिवलिंग सृष्टि का संतुलन बनाते हैं। ये सारे शिव मंदिर 1500 से 2000 साल पहले अलग-अलग काल खंड में स्थापित किए गए, लेकिन इनके बीच से पंचतत्वों और देशांतर रेखा का संबंध योजनाबद्ध ही माना गया है। Mystery of Shiv Shakti Rekha

उज्जैन के महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय (Maharishi Panini Sanskrit University) में ज्योतिष विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उपेंद्र भार्गव के मुताबिक, यह बिलकुल ठीक है कि ये मंदिर लॉन्गिट्यूड के हिसाब से एक कतार में हैं, लेकिन इनकी स्थापना का काल अलग-अलग है। इस कारण यह कहना कठिन है कि किसी विशेष विचार के साथ इनकी स्थापना की गई होगी। लेकिन, जब भी इन मंदिरों की स्थापना की गई, उसमें अक्षांश और देशांतर का पूरा ध्यान रखा गया। वास्तु सिद्धांतों के हिसाब से इनकी स्थापना की गई है।

पौराणिक संदर्भों के मुताबिक, रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की स्थापना त्रेतायुग में भगवान राम ने समुद्र पार करने के पहले की थी। वहीं, केदारनाथ की स्थापना महाभारतकाल की मानी जाती है, जब कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उत्तर पथ के हिमालयों पर भगवान शिव की उपासना की थी। इसी तरह ये 5 मंदिर भी 5वीं से 12वीं शताब्दी के बीच बनाए गए हैं।

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कैेसे एक सूत्र में बंधे हैं सातों मंदिर?

उत्तराखंड का केदारनाथ, तमिलनाडु के अरुणाचलेश्वर, थिल्लई नटराज, जम्बूकेश्वर, एकाम्बेश्वरनाथ, आंध्रप्रदेश के श्रीकालाहस्ती शिव मंदिर अंततः रामेश्वरम् मंदिर को सीधी रेखा में स्थापित किया गया है | माना जाता है कि श्रीकालाहस्ती शिव मंदिर जल, एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर अग्नि, अरुणाचलेश्वर मंदिर वायु, जम्बूकेश्वर मंदिर पृथ्वी और थिल्लई नटराज मंदिर आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं | इन सभी मंदिरों को 79 डिग्री लॉन्गिट्यूड (longitude) की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है | इस रेखा को ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा (Mystery of Shiv Shakti Rekha)’ भी कहा जाता है |

क्रम

मंदिर

राज्य

तत्व

स्थापना

लॉन्गीट्यूड (longitude)

1

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

उत्तराखंड

—-

79.0669°

2

श्रीकालहस्ती मंदिर

चित्तूर, आंध्रप्रदेश

वायु

5वीं शताब्दी

79.7037°

3

श्री एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर

कांची, तमिलनाडु

पृथ्वी

7वीं शताब्दी

79.7036 °

4

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर

तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु

अग्नि

7वीं शताब्दी

79.0747°

5

श्री जम्बूकेश्वर मंदिर

थिरुवनाईकवल, तमिलनाडु

जल

4थी शताब्दी

78.7108°

6

श्री थिल्लई नटराज मंदिर

चिदंबरम्, तमिलनाडु

आकाश

10वीं शताब्दी

79.6954°

7

श्री रामेश्वरम् मंदिर

रामलिंगम्, तमिलनाडु

——–

79.3129°

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आइए जानते हैं कि ये सात मंदिरो के बारे में, और इनकी खासियत 

इन सभी मंदिरों के बीच में भारत का खास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जो उज्जैन में स्थापित है, वो मौजूद है | पश्चिमी देशों से पहले से उज्जैन में समय की गणना की अवधारणा हो चुकी थी | उज्जैन को भारत का सेंट्रल मेरिडियन माना जाता था | उज्जैन, पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में मध्य में माना जाता है | काल गणना के अनुसार शास्त्र में उज्जैन का अलग ही महत्व रहा है | भौगोलिक गणना के आधार पर प्राचीन विद्वानों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना है | साथ ही यह माना गया है कि कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है | ग्रीक गणितज्ञ क्लाडियस टॉलमी का भी मानना था कि उज्जैन भौगोलिक नजरिए से बेहद खास है | ग्रीक सभ्यता में उज्जैन को ओजीन नाम से जाना जाता था | उस समय विश्व के प्रसिद्ध शहरों में से एक था उज्जैन |

1 . केदारनाथ धाम, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में

यह मंदिर 79.0669 डिग्री लॉन्गिट्यूड (longitude) पर स्थित है | केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है | इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहते हैं | नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण होता है | कहा जाता है कि इस मंदिर को महाभारत काल में पांडवों ने बनवाया था और फिर आदिशंकराचार्य ने इसकी पुनर्स्थापना करवाई थी |

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देवासुर संग्राम से लेकर पाण्डवों तक इस ज्योतिर्लिंग की कथा मिलती है। यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसे अर्धज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के साथ इन्हें पूर्णज्योतिर्लिंग की मान्यता प्राप्त है। उत्तराखंड में स्थित इस ज्योतिर्लिंग को पुनर्स्थापित करने का श्रेय आदिगुरु शंकराचार्य को है। इस ज्योतिर्लिंग की संरचना बैल के कूल्हे जैसी है।

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2. श्रीकालाहस्ती मंदिर, आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के श्रीकालाहस्ती नामक स्थान पर

यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है | तिरुपति से 36 किमी दूर स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को पंचतत्वों में जल का प्रतिनिधि माना जाता है | यह मंदिर 79.6983 डिग्री E लांगिट्यूड (longitude) पर स्थित है | यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है। तिरुपति से 36 किमी दूर स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को पंचतत्वों में वायु का प्रतिनिधि माना जाता है। इसे राहु-केतु क्षेत्र और दक्षिण कैलाशम् नाम से भी जाना जाता है। 5वीं शताब्दी में स्थापित यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में राहु काल और राहु-केतु से जुड़े अन्य दोषों की पूजा कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। दुनियाभर में राहु काल की शांति इसी मंदिर में होती है।

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3. एकम्बरेश्वर मंदिर, तमिलनाडु के कांचीपुरम में

यह मंदिर 79.42’00’ E लांगिट्यूड (longitude)पर स्थित है | यहां शिवजी को धरती तत्व के रूप में पूजा जाता है | इस विशाल शिव मंदिर को पल्लव राजाओं द्वारा बनवाया गया और बाद में चोल एवं विजयनगर के राजाओं ने इसमें सुधार किया | इस मंदिर में जल की अपेक्षा चमेली का सुगंधित तेल चढ़ाया जाता है | तमिलनाडु के कांचीपुरम् स्थित एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर के बारे में किंवदंती है कि यहां देवी पार्वती ने क्रोधित शिव को प्रसन्न करने के लिए बालूरेत से शिवलिंग की स्थापना कर तप किया था। इस शिवलिंग को पंचतत्वों में पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है। करीब 25 एकड़ क्षेत्र में बना यह मंदिर 11 मंजिला है। इसकी ऊंचाई लगभग 200 फीट है। 7वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना की गई थी। वर्तमान मंदिर चोल राजाओं द्वारा 9वीं शताब्दी में बनाया गया था।

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4. अरुणाचलेश्वर मंदिर (अन्नामलैय्यर मंदिर), तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई में अरुणाचल पर्वत पर

यह मंदिर 79.0677 E डिग्री लांगिट्यूड (longitude) पर स्थित है | इसे तमिल साम्राज्य के चोलवंशी राजाओं ने बनाया था | इसे अन्नामलाईयार मंदिर भी कहते हैं। यह तमिलनाडु के तिरुवनमलाई शहर में अरुणाचला पहाड़ी पर है। यहां स्थापित शिव लिंग को अग्नितत्व का प्रतीक माना जाता है। 7वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर का चोल राजाओं ने 9वीं शताब्दी में विस्तार किया था। 10 हेक्टेयर में बने इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 217 फीट है। यहां हर साल नवंबर-दिसंबर में दीपम् उत्सव मनाया जाता है, जो 10 दिन तक चलता है। इस दौरान मंदिर के आसपास बड़ी मात्रा में दीपक जलाए जाते हैं। एक विशाल दीपक मंदिर की पहाड़ी पर जलाया जाता है जो दो-तीन किमी की दूरी से भी आसानी से देखा जा सकता है।

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5. जम्बूकेश्वर मंदिर (जम्बूकेश्वरार मंदिर), तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में

यह मंदिर करीब 1800 साल पुराना है | इसके गर्भगृह में एक जल की धारा हमेशा बहती रहती है | जम्बूकेश्वर या जम्बूकेश्वरार मंदिर, थिरुवनाईकवल (त्रिची) जिले में है। ये पंचतत्वों में जल का प्रतिनिधि शिवलिंग माना गया है क्योंकि इस मंदिर के गर्भगृह में एक प्राकृतिक जलधारा निरंतर बहती रहती है। मंदिर करीब 1800 साल पुराना माना जाता है। कुछ पौराणिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है।

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6. थिल्लई नटराज मंदिर, तमिलनाडु के चिदंबरम में

यह मंदिर 79.6935 E डिग्री लांगिट्यूड (longitude) पर स्थित है | इसका निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया है | यह मंदिर महान नर्तक नटराज के रूप में भगवान शिव को समर्पित है | नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे प्राचीन चित्रण चिदंबरम् में ही पाया जाता है | भगवान शिव के ही रूप नटराज का मंदिर तमिलनाडु के चिदंबरम् शहर में है। पहले इस जगह को थिलाई के नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस मंदिर को थिल्लई नटराज मंदिर भी कहा जाता है। भरतमुनि द्वारा बताए गए नाट्यशास्त्र के सभी 108 रूप इस मंदिर में देखने को मिलते हैं। मंदिर की दीवारों पर भरतनाट्यम् की विभिन्न मुद्राएं उकेरी गई हैं। वर्तमान मंदिर 10वीं शताब्दी में चोल राजाओं (Mystery of Shiv Shakti Rekha) ने बनवाया था।

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7. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम

माना जाता है कि लंका पर चढ़ाई से पहले श्रीराम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी (Mystery of Shiv Shakti Rekha)| यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है | तमिलनाडु में समुद्र तट पर रामनाथ स्वामी भगवान शिव का प्राचीन मंदिर स्थित है जिन्हें रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। रामायण में वर्णित कथा के अनुसार लंका पार करने से पहले समुद्र पर जब वानर सेना सेतु बनाने का काम कर रही थी उस समय भगवान राम ने यहां रेत से शिवलिंग का निर्माण कर उनकी पूजा की थी।

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