श्री राम मंदिर उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि (Ram Janmabhoomi- Ayodhya) पर बनाया जा रहा एक हिंदू मंदिर है| रामायण (Ramayan) के अनुसार, हिंदू धर्म के प्रमुख देवता भगवान श्रीराम का ये जन्मस्थान है| शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था| मंदिर का निर्माणश्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की देख-रेख में हो रहा है.
पुरातत्व के सबूतों से अब यह साबित हो चुका है कि अयोध्या में इन दिनों जहां श्रीराम जन्मभूमि का भव्य मंदिर बन रहा है, वहां 12वीं सदी में एक भव्य और विशालकाय मंदिर हुआ करता था। कहा जाता है कि इसी विशालकाय मंदिर को तोड़कर बाबर (Babar) के सिपहसलार मीर बाकी ने राम जन्मभूमि पर तीन गुंबदों वाली बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था।
Also, read: लक्षद्वीप का सफर | Trip to Lakshadweep
भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था पहला राम मंदिर
भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था पहला राम मंदिर पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के आधार पर तय हुई परंपरागत धारणाओं के अनुसार अयोध्या के पवित्र श्री रामजन्मभूमि मंदिर के इतिहास का विवरण कुछ इस प्रकार है। जब भगवान श्रीराम प्रजा सहित बैकुंठ धाम चले गए तो पूरी अयोध्या नगरी (मंदिर-राज महल-घर-द्वार) सरयू में समाहित हो गई। मात्र अयोध्या का भू-भाग ही बच गया और वर्षों तक यह भूमि यूं ही पड़ी रही। बाद में कौशांबी के महाराज कुश ने अयोध्या को फिर से बसाया। इसका वर्णन कालिदास के ग्रंथ ‘रघुवंश’ में मिलने की बात कही जाती है। लोमश रामायण के अनुसार उन्होंने ही सर्वप्रथम पत्थरों के खंभों वाले मंदिर का अपने परम पिता की पूज्य जन्मभूमि पर निर्माण करवाया। वहीं जैन परंपराओं के मुताबिक अयोध्या को ऋषभदेव ने फिर से बसाया था।
महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था भव्य राम मंदिर
महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था भव्य राम मंदिर भविष्य पुराण के अनुसार उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व में एक बार फिर से (दूसरी बार) उजड़ चुकी अयोध्या का निर्माण करवाया। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के लक्ष्मण घाट को आधार बनाकर 360 मंदिरों का निर्माण करवाया था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और इसीलिए उन्होंने ही श्रीराम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। हिंदू पक्ष का दावा रहा है कि बाबर से पहले भी 1033 में मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद ने जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। उसके बाद गहड़वाल वंश के राजाओं द्वारा इस पवित्र मंदिर का फिर से निर्माण (तीसरी बार) करवाया गया था।
Also, read: नमामि गंगे योजना | Namami Gange Yojana | NGY
राम जन्मभूमि – अयोध्या का इतिहास | History of Ram Janmabhoomi– Ayodhya
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मस्थली अयोध्या को हिन्दुओं के 7 पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना गया है, जिसकी स्थापना मनु ने की थी। वेदों में इसे ईश्वर की नगरी भी बताया गया है। यह नगरी कई धर्मों की आस्था से जुड़ी हुई है, जैन मत के मुताबिक यहां प्रमुख तीर्थकर अनंतनाथ जी, अभिनंदनाथ, सुमतिनाथ, ऋषभनाथ, अजितनाथ, का जन्म हुआ था। इसके साथ ही भगवान राम की जन्मस्थली होने की वजह से भी इस नगरी का अत्यंत महत्व है।
अयोध्या में कई महान योद्धा, अवतारी पुरुष और ऋषि मुनियों ने जाना लिया है | जैन मत के अनुसार यहाँ पर आदित्यनाथ सहित ५ तीर्थंकरों (जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है।) का जन्म हुआ था | अयोध्या की जड़ना भारत के सप्प्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है | जैन परंपरा के अनुसार २४ में से २२ तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के थे |
5 अगस्त 2020 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन अनुष्ठान किया गया था और मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ| श्री हरि विष्णु के एक अवतार माने जाने वाले श्रीराम एक व्यापक रूप से पूजे जाने वाले हिंदू राजा हैं| प्राचीन भारतीय महाकाव्य, रामायण के अनुसार, राम का जन्म अयोध्या में हुआ था| इसे रामजन्मभूमि कहा जाता है जो सरयू नदी के तट पर बसा है|
साल 1528-29 के बीच मीर बाकि ने बाबर के हुकुम से बनाई गई थी बाबरी मस्जिद
बाबर के आदेश पर 1528-29 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराने वाला मीर बाकी मुगल सम्राट बाबर का प्रमुख सेनापति था। वह ताशकंद (मौजूदा उजबेकिस्तान का एक शहर) का मूल निवासी था। बाबर ने उसे अवध प्रदेश का शासक नियुक्त किया था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में जनवरी-फरवरी 1526 में बाकी की चर्चा शाघावाल नाम से मिलती है।
Also, read: फेम इंडिया योजना | FAME India Yojana | FIY
1528 में जब उसके सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मस्जिद बनवाने की सूचना दी, तो बाबर ने नाम बाबरी रखने का हुक्म दिया। बाबरी की याद में बाबर का स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा। 16 दिसंबर 1530 को बाबर की मौत हो गई। बाबरनामा में बाबर ने अपने हर क़दम के बारे में लिखा है, लेकिन 1528 के बाद से किसी भी घटना का ज़िक्र नहीं किया।
बाबरी मशीद बनने के 300 साल बाद शुरू हुआ विवाद
मस्जिद के बनने के 300 साल बाद इसे लेकर विवाद की पहली झलक दिखाई दी। अब जो इतिहास शुरू होने वाला था वह लंबी लड़ाई के साथ-साथ विध्वंस की कहानी कहने वाला था।
1853 से 1855 के बीच में अयोध्या के मंदिरों को लेकर विवाद शुरू होने लगे। Indian history collective की रिपोर्ट बताती है कि उस वक्त सुन्नी मुसलमानों के एक गुट ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर हमला कर दिया था। उनका दावा था कि यह मंदिर मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है। हालांकि, इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिला।
सर्वपल्ली गोपाल की किताब ‘एनाटॉमी ऑफ अ कन्फ्रंटेशन: अयोध्या एंड द राइज ऑफ कम्युनल पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में भी इसका जिक्र है। किताब में यह भी कहा गया है कि उस वक्त हनुमानगढ़ी मंदिर बैरागियों के अधीन था और उन्होंने आसानी से मुसलमानों के गुट को हटा दिया था।
1859 में अंग्रेजी सरकार ने की सुलह की कोशिश
मुगलों और नवाबों के शासन के चलते 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए, पर मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने तथा अंग्रेजी हुकूमत के प्रभावी होने के साथ ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़ा हो गया।
Also, read: प्रधानमंत्री वय वंदना योजना | Pradhanmantri Vaya Vandana Yojana | PMVVY
1859 में अंग्रेजी हुकूमत ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों तथा हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी।
साल सन 1885 में पहली बार कोर्ट पहुंचे थे राम लला
अयोध्या राम मंदिर एवं मस्जिद विवाद साल 1885 में पहली बार कोर्ट में पहुंचा। इसके तहत हिंदू महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की इजाजत मांगी। Supreme Court Observer (SCO) की रिपोर्ट बताती है कि यह पहली बार था, जब राम मंदिर विवाद कोर्ट पहुंचा था। यहां महंत रघुवीर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर बनवाने की याचिका दायर की थी।
फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने यह याचिका खारिज कर दी थी, तब फैजाबाद कोर्ट में रघुवीर दास की याचिका गई थी। उस वक्त केस की सुनवाई कर रहे जज पंडित हरि किशन ने इस याचिका को रद्द कर दिया था। उस वक्त पहली बार निर्मोही अखाड़ा सामने आया था और लोगों को उसके बारे में पता चला था। महंत रघुवीर दास उसी अखाड़े से थे। इसके बाद भी रघुवीर दास ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी सरकार के जज से गुहार लगाई, लेकिन यहां भी याचिका को खारिज कर दिया गया। यह मामला यहीं दब गया और अगले 48 सालों तक मामला ठंडे बस्ते में रहा और छुट-फुट शांतिपूर्ण विरोध होते रहे।
साल 1930 का दौर (अयोध्या का नया अध्याय)
इस साल, हिंदू राष्ट्रवादी नेता, मदनमोहन मालवीय ने अयोध्या में एक राम मंदिर निर्माण के लिए एक आंदोलन शुरू किया। मालवीय ने कहा कि राम मंदिर हिंदुओं के लिए एक धार्मिक और राष्ट्रीय प्रतीक है, और इसे पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए। मालवीय के आह्वान पर, देश भर के हिंदू अयोध्या में आकर राम मंदिर निर्माण के लिए धरने पर बैठ गए। आंदोलन ने पूरे भारत में हिंदुओं के बीच एक मजबूत भावना पैदा की, और यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। दोनों ही बाबरी मस्जिद पर अपना हक जता रहे थे। इसकी बात दोनों समुदायों के वक्फ बोर्ड तक पहुंची और दोनों की लड़ाई 10 साल तक खिंच गई। इस लड़ाई में जज द्वारा जो फैसला आया उसमें शिया समुदाय के दावों को खारिज कर दिया गया।
अंततः, ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबा दिया, और राम मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। हालांकि, आंदोलन ने अयोध्या में हिंदू राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत किया, और यह आज भी जारी है। 1930 का दौर अयोध्या के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत की, जो आज भी जारी है। आंदोलन ने अयोध्या को एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया, और यह हिंदू राष्ट्रवाद के उदय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
1934 अयोध्या में हुए दंगे
1934 में अयोध्या में हुए दंगे, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद, इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी । इन दंगों में कई लोगों की मौत हुई और हिंदू-मुस्लिम संबंधों में खटास पैदा हुई। दंगों की शुरुआत 22 जुलाई 1934 को हुई, जब एक हिंदू युवक ने एक मुस्लिम युवक को गोमांस बेचते हुए देखा। इस बात को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ, जो देखते ही देखते हिंसक हो गया। दंगों में हिंदू भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर हमला किया और तीनों गुंबद तोड़ दिए।
Also, read: आत्मनिर्भर भारत अभियान | Atmanirbhar Bharat Abhiyaan | ANB
इसके बाद पुलिस ने हस्तक्षेप किया और दंगों को रोकने की कोशिश की। दंगों में लगभग 100 लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हुए। इन दंगों के बाद अयोध्या में माहौल तनावपूर्ण हो गया। दंगों के बाद, अंग्रेजी सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दंगों के लिए दोनों समुदायों के लोग जिम्मेदार थे। दंगों ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को और बढ़ावा दिया। हिंदुओं ने दंगों को इस बात का संकेत माना कि उन्हें अपना मंदिर वापस पाने के लिए मजबूत कदम उठाने होंगे।
1936 में मशीद को लेकर शुरू हुआ आपसी विवाद
1936 में, महाराष्ट्र के फैजपुर नामक स्थान पर, हिंदू महासभा ने एक रैली का आयोजन किया। इस रैली में, हिंदू महासभा ने दावा किया कि फैजपुर में एक मस्जिद भगवान राम का जन्मस्थान है। हिंदू महासभा ने मांग की कि इस मस्जिद को हटाकर यहां एक मंदिर बनाया जाए।
इस दावे को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद शुरू हो गया। हिंदू समुदाय का कहना था कि मस्जिद का निर्माण भगवान राम के जन्मस्थान पर किया गया था, इसलिए इसे हटाकर यहां मंदिर बनाया जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय का कहना था कि मस्जिद का निर्माण कई सौ साल पहले हुआ था, और इसे हटाने का कोई मतलब नहीं है।
1946 में विवादित भूमि को लेकर शुरू हुआ प्रदर्शन
प्रदर्शनों की शुरुआत 1946 के सितंबर महीने में हुई। इस समय, अयोध्या में विवादित भूमि पर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग दावा कर रहे थे। हिंदुओं का कहना था कि यह भूमि भगवान राम का जन्मस्थान है, और यहां एक मंदिर होना चाहिए। मुस्लिमों का कहना था कि यह भूमि एक मस्जिद की है, और इसे गिराया नहीं जाना चाहिए।
साल 1947, भारत की आजादी के बाद से बदल गई अयोध्या की राजनीति
मॉर्डन समय में जब भी अयोध्या की बात होती है, तो उसमें राजनीति शब्द जरूर सामने आता है। हालांकि, इसकी शुरुआत बंटवारे के बाद ही हुई। पाकिस्तान का वजूद बना और अयोध्या में अब हिंदू महासभा का हस्तक्षेप सामने आया।
कृष्णा झा और धीरेन्द्र के झा की किताब ‘अयोध्या- द डार्क नाइट’ सहित कई किताबें इस बारे में कहती हैं कि 1947 का अंत होते-होते हिंदू महासभा द्वारा एक मीटिंग रखी गई थी, जिसमें बाबरी मस्जिद पर कब्जे की बात कही गई थी। इसके बाद के चुनावों में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर को मुद्दा बनाया था। कांग्रेस के इस मुद्दे के बाद कोई और पार्टी कहीं टिक नहीं पाई और फैजाबाद में भी कांग्रेस जीत गई। 1947 के बाद से अयोध्या की राजनीति में हुए कुछ महत्वपूर्ण बदलावों का विवरण इस प्रकार है:
- राम मंदिर आंदोलन ने अयोध्या को एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। इस आंदोलन ने पूरे भारत में हिंदुओं के बीच एक मजबूत भावना पैदा की, और इसने हिंदू राष्ट्रवाद की भूमिका को मजबूत किया।
- अयोध्या विवाद ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता की भूमिका को बढ़ावा दिया है। इस विवाद ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव को बढ़ावा दिया है, और इसने सांप्रदायिक हिंसा को भी बढ़ावा दिया है।
Also, read: पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन योजना | PM Cares For Children Yojana | PM- Cares
साल 1949 में बाबरी मस्जिद में मिली राम लला की मूर्ति
22-23 दिसंबर 1949 की रात को अयोध्या की बाबरी मस्जिद के भीतर भगवान राम की एक नौ इंच की मूर्ति प्रकट होने की घटना को “रामलला के प्रकटीकरण” के रूप में जाना जाता है। यह घटना राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, और इसने हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन को एक नई गति प्रदान की।
मूर्ति के प्रकट होने की घटना के बारे में कई अलग-अलग कहानियां हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह एक चमत्कार था, जबकि अन्य मानते हैं कि यह एक साजिश थी। इस घटना के बाद हालात इतने गंभीर हो गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संज्ञान लिया। महज 6 दिनों के अंदर ही बाबरी मस्जिद पर ताला लगा दिया गया। उस वक्त हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि राम लला की मूर्ति अपने- आप वहां प्रकट हुई है, लेकिन इस दावे को खारिज कर दिया गया।
साल 1950 में एक बार फिर से किया गया केस
साल 1950 में, अयोध्या में विवादित भूमि को लेकर दो अलग-अलग केस फैजाबाद कोर्ट में दाखिल किए गए। एक केस हिंदू पक्ष ने किया, जिसमें उन्होंने रामलला की पूजा की इजाजत मांगी। दूसरा केस निर्मोही अखाड़े ने किया, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद की जमीन पर अधिकार मांगा। हिंदू पक्ष का कहना था कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, और यह भूमि उनका जन्मस्थान है। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण इस भूमि पर हिंदू मंदिर को ध्वस्त करके किया गया था। इसलिए, इस भूमि पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए।
निर्मोही अखाड़े का कहना था कि वे इस भूमि के मालिक हैं। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण उनके पूर्वजों ने किया था। इसलिए, इस भूमि पर मंदिर या मस्जिद का निर्माण करने का अधिकार उन्हें है। फैजाबाद कोर्ट ने 1950 में हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने कहा कि रामलला की पूजा करने का अधिकार हिंदू पक्ष को है। हालांकि, कोर्ट ने अंदरूनी गेट को बंद ही रखा गया।
साल 1984 से एक बार फिर से गरमाया राम जन्मभूमि का विवाद
इस साल, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन शुरू किया। VHP का कहना था कि अयोध्या में विवादित भूमि भगवान राम का जन्मस्थान है, और यहां एक मंदिर होना चाहिए। साल 1986 में राजीव गांधी सरकार के आदेश पर बाबरी मस्जिद के अंदर का गेट खोला गया। दरअसल, उस वक्त लॉयर यूसी पांडे ने फैजाबाद सेशन कोर्ट में याचिका दायर की थी कि फैजाबाद सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने इसका गेट बंद करने का फैसला सुनाया था, इसलिए इसे खोला जाना चाहिए। तब हिंदू पक्ष को यहां पूजा और दर्शन की अनुमति भी दे दी गई और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट भी किया।
VHP ने देश भर में राम जन्मभूमि आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए। इन कार्यक्रमों में शामिल थे:
- राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन
- राम जन्मभूमि पर रामलला की मूर्ति की स्थापना
- राम जन्मभूमि पर कारसेवा का आयोजन
Also, read: एकीकृत बाल विकास योजना | Integrated Child Development Scheme | ICDS
साल 1989 में रखी गई थी राम मंदिर की नींव
उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित जगह पर शिलान्यास करने की अनुमति दे दी थी। इसके बाद, पहली बार रामलला का नाम इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था, जिसमें निर्मोही अखाड़ा (1959) और सुन्नी वक्फ बोर्ड (1961) ने रामलला जन्मभूमि पर अपना दावा पेश किया। इस नींव-पूजन के लिए विहिप ने देशभर से राम नाम की ईंटें इकट्ठा की थीं। 9 नवंबर 1989 को, विश्व हिन्दू परिषद नेता अशोक सिंघल ने राम नाम की पहली ईंट रखी। इस मौके पर हजारों हिंदू भक्त मौजूद थे। यह नींव-पूजन राम मंदिर आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने विवाद को और अधिक गहरा कर दिया, और हिंदू-मुस्लिम संबंधों में खटास पैदा कर दी।
साल 1992 में गिराई गई बाबरी मस्जिद (बाबरी विध्वंस)
6 दिसंबर 1992 का वो दिन जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। भारत के इतिहास में यह दिन दर्ज है। कारसेवकों ने यहां एक अस्थाई मंदिर की स्थापना भी कर दी थी। मस्जिद गिराने के 10 दिन बाद प्रधानमंत्री ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जस्टिस एम.एस. लिब्रहान को लेकर एक कमेटी बनाई, जिसमें मस्जिद को गिराने और सांप्रदायिक दंगों को लेकर एक रिपोर्ट बनानी थी।
जनवरी 1993 आते-आते अयोध्या की जमीन को नरसिम्हा राव की सरकार ने अपने अधीन ले लिया और 67.7 एकड़ जमीन को केंद्र सरकार की जमीन घोषित कर दिया गया। साल 1994 में इस्माइल फारूकी जजमेंट आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट SC ने 3:2 के बहुमत से अयोध्या में कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस जजमेंट में यह भी कहा गया था कि कोई भी धार्मिक जगह सरकारी हो सकती है।
Also, read: प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान | Pradhanmantri Surakshit Matritva Abhiyan | PMSMA
30 सितंबर 2010 अयोध्या मामले का ऐतिहासिक फैसला
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या मामले पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में, कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा रामलला, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले से दोनों पक्षों में नाराजगी थी। हिंदू पक्ष का कहना था कि उन्हें पूरी भूमि मिलनी चाहिए, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना था कि उन्हें पूरी भूमि मिलनी चाहिए।
इस फैसले के खिलाफ दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि विवादित भूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण किया जाएगा।
साल 2019 में आखिरकार आया ऐतिहासिक फैसला
चीफ जस्टिस गोगोई ने साल 2019 में 5 जजों की बेंच बनाई और पुराने 2018 वाले फैसले को खारिज कर दिया। 8 मार्च 2019 को दो दिन की सुनवाई के बाद जमीनी विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की बात एक बार फिर से कही गई।
नवंबर 2019 आते-आते सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हित में फैसला सुनाया और राम मंदिर को एक ट्रस्ट के जरिए बनवाने का आदेश दिया। इसके साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी गई, जहां अयोध्या में मस्जिद बनवाया जाना था। दिसंबर तक इस मुद्दे पर कई पिटीशन फाइल की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को खारिज कर दिया। फरवरी 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना हुई। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 5 एकड़ जमीन को स्वीकार किया और अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया।
अब 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ही रामलला की मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा किया जाना है।
FAQs
प्रश्न 1. राम जन्मभूमि कहाँ स्थित है?
उत्तर: राम जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में स्थित है। यह शहर गंगा नदी के तट पर स्थित है।
प्रश्न 2. राम जन्मभूमि पर पहले क्या था?
उत्तर: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, राम जन्मभूमि पर भगवान राम का जन्म हुआ था। बाद में, मुगल शासक बाबर ने इस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
प्रश्न 3. राम जन्मभूमि विवाद कब शुरू हुआ?
उत्तर: राम जन्मभूमि विवाद 1936 में शुरू हुआ। उस समय, हिंदू महासभा ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद के नीचे भगवान राम का जन्मस्थान है।
प्रश्न 4. राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?
उत्तर: 9 नवंबर, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि विवादित भूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण किया जाएगा।
प्रश्न 5. राम मंदिर का निर्माण कब शुरू हुआ?
उत्तर: राम मंदिर का निर्माण 5 अगस्त, 2020 को शुरू हुआ।
प्रश्न 6. राम मंदिर का निर्माण कब पूरा होगा?
उत्तर: राम मंदिर का निर्माण 2023 में पूरा होने की उम्मीद है।
Also, read: प्रधानमंत्री जन औषधि योजना | Pradhan Mantri Jan Aushadhi Yojana | PMJAY