Sambhal City के बारे में!
Tourist Places in Sambhal in Hindi: शम्भला, संस्कृत में “शांति का स्थान” या “मौन का स्थान” का प्रतीक है। इसे प्राचीन ग्रंथों में एक पौराणिक स्वर्ग के रूप में वर्णित किया गया है। यह स्थान कालचक्र तंत्र और झांग झुंग संस्कृति के पुराने ग्रंथों में उल्लेखित है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के उदय से पहले पश्चिमी तिब्बत में विकसित हुई थी। किंवदंती के अनुसार, शम्भला केवल उन्हीं लोगों का निवास स्थान है, जो पवित्र हृदय और आत्मज्ञान की स्थिति तक पहुँच चुके हैं। यह पौराणिक साम्राज्य प्रेम, ज्ञान और शांति का प्रतीक है, जहाँ दुख, अभाव और बुढ़ापे का अस्तित्व नहीं है।
संभल, उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह नई दिल्ली से लगभग 158 किमी और लखनऊ से 355 किमी की दूरी पर स्थित है। यह शहर मुरादाबाद डिवीजन के रोहिलखंड क्षेत्र का हिस्सा है और मुरादाबाद से करीब 32 किमी दूर है। संभल का धार्मिक महत्व हिंदू शास्त्रों में वर्णित है। इसे भगवान विष्णु के दसवें अवतार, कल्कि, की भविष्यवाणी की गई जन्मस्थली के रूप में माना जाता है। महाभारत, स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और कल्कि पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। संभल का यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसे धार्मिक और पर्यटन दृष्टि से एक अद्वितीय स्थान बनाता है।
Sambhal City का इतिहास!
संभल, जिसे कभी-कभी “शम्भाला” कहा जाता है, का उल्लेख हिंदू पुराणों में किया गया है। यह स्थान विष्णु के अगले अवतार, कल्कि, के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है और यहाँ “श्री कल्कि विष्णु मंदिर” भी स्थित है। महाभारत में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है। तिब्बती बौद्ध धर्म की कथाओं में इसे हिमालय के पार स्थित एक पवित्र भूमि के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ भविष्य में मैत्रेय बुद्ध प्रकट होंगे।
प्रसिद्ध यात्री इब्न बतूता के अनुसार, चीन के युआन राजवंश के सम्राट तोगोन तैमूर ने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को संभल में एक बौद्ध मंदिर के पुनर्निर्माण की अनुमति के लिए दूत भेजा था। यहाँ पृथ्वीराज चौहान और गाजी सैयद सालार मसूद के बीच दो ऐतिहासिक लड़ाइयाँ भी लड़ी गई थीं।
13वीं और 14वीं शताब्दियों में, यह क्षेत्र स्थानीय शासकों के अधीन था और बाद में दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। संभल ने कुतुबुद्दीन ऐबक और फिरोज शाह तुगलक के शासन का अनुभव किया। 15वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी के अधीन यह चार वर्षों तक लोदी वंश की राजधानी रहा। Tourist Places in Sambhal in Hindi
बाबर के शासन के दौरान संभल मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। बाबर ने यहाँ एक मस्जिद बनवाई, जो आज भी अस्तित्व में है। बाद में, हुमायूँ और अकबर के शासनकाल में शहर ने प्रगति की। हालांकि, अकबर के पोते शाहजहाँ ने संभल की राजधानी को मुरादाबाद स्थानांतरित कर दिया, जिससे इसकी प्रमुखता धीरे-धीरे कम हो गई।
संभल में 11 प्रमुख पर्यटन स्थल: एक यात्रा जो आपके दिल को छू जाएगी! जानें क्या है खास इस ऐतिहासिक शहर में! sambhal ke tourist places | Tourist Places in Sambhal in Hindi | Top 11 Famous Places of Sambhal City
संभल, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है, जो अपनी खूबसूरत धरोहरों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यदि आप भारतीय संस्कृति और इतिहास में रुचि रखते हैं, तो संभल आपके लिए एक आदर्श यात्रा स्थल हो सकता है। यहां स्थित मंदिर, मस्जिदें, किले और अन्य ऐतिहासिक स्थल न केवल भारत के इतिहास को समेटे हुए हैं, बल्कि वे आज भी अपनी महिमा और धार्मिक महत्व को जीवित रखे हुए हैं। इस लेख में, हम आपको संभल के 11 प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में विस्तार से बताएंगे, जो आपकी यात्रा को और भी रोमांचक और अविस्मरणीय बना देंगे। Tourist Places in Sambhal in Hindi
1. संभल किला
ऐतिहासिक शहरों में किले अक्सर शासकों द्वारा दुश्मनों से सुरक्षा और हथियारों के भंडारण के लिए बनाए जाते थे। संभल भी इससे अलग नहीं है। यह शहर कभी शक्तिशाली शासकों की राजधानी रहा है, जिन्होंने यहां कई ऐतिहासिक संरचनाएं बनवाईं।
संभल में एक प्रसिद्ध किला लगभग 400 साल पहले तत्कालीन नवाब द्वारा बनवाया गया था। इस किले में मुगल और ईरानी वास्तुकला का अनोखा मेल देखने को मिलता है। वर्षों के मौसम और समय की चुनौतियों के बावजूद, यह किला आज भी अपने मजबूत ईंटों और जटिल डिजाइनों के साथ खड़ा है। स्थानीय लोगों की देखभाल ने इसे संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में, इस किले में एक मस्जिद और एक गेस्ट हाउस भी मौजूद हैं। मुख्य रेलवे स्टेशन के पास स्थित इस किले के भव्य प्रवेश द्वार आपको आकर्षित करते हैं। इन संरचनाओं का डिज़ाइन रोमन वास्तुकला की झलक देता है और यहां से गुजरने पर एक शाही अनुभव होता है।
संभल एक छोटा शहर है, लेकिन इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यह मस्जिदों, मंदिरों और ऐतिहासिक स्मारकों से भरपूर है। इनमें से कई संरचनाएं सदियों पुरानी हैं और अब भी अपने मूल स्वरूप में खड़ी हैं। संभल में ऐतिहासिक स्थलों में बाबरी मस्जिद का नाम सबसे पहले आता है, जो शहर के मुगलकालीन प्रभाव को दर्शाती है। इसके अलावा, यहां “प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मंदिर” जैसे धार्मिक स्थल भी हैं, जो इस शहर की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक महत्व को उजागर करते हैं। संभल का गौरवशाली इतिहास और इसके पर्यटन स्थल इस छोटे से शहर को एक अनोखी पहचान देते हैं।
2. घंटा घर संभल
संभल में स्थित एक ऐतिहासिक घंटाघर अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह लाल और सफेद रंग की इमारत चारों दिशाओं में लगी घड़ियों के साथ अपनी पहचान बनाती है। वर्षों पुरानी इस संरचना का आकर्षण आज भी बरकरार है, जो इसे संभल की विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। इमारत की बाहरी संरचना में कुछ झुकाव दिखने के बावजूद, यह अपनी स्थापत्य खूबसूरती से लोगों को प्रभावित करती है।
घंटाघर के पास एक प्रसिद्ध मंदिर परिसर है, जहां कई देवी-देवताओं के मंदिर स्थित हैं, जिनमें हनुमान जी, राम और सीता के मंदिर प्रमुख हैं। इस परिसर के बीच में एक सुंदर जलाशय भी है, जो इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर आने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
घंटाघर के आसपास एक जीवंत बाजार भी स्थित है, जहां विभिन्न प्रकार की वस्तुएं मिलती हैं। यह क्षेत्र न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि स्थानीय जीवन की झलक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र भी है।
3. चक्की का पाट
संभल, जो कभी पृथ्वीराज चौहान की राजधानी रही थी, उनके दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद उनके राज्य के एक महत्वपूर्ण आउटपोस्ट के रूप में विकसित हुआ। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व आल्हा और उदल की वीरगाथाओं से भी जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि उदल ने एक गांव की दीवार पर एक लड़की का प्रतीकात्मक चिन्ह टांगकर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। आल्हा-उदल की गाथाएं आज भी लोकगीतों और कहानियों के माध्यम से सुनाई जाती हैं, हालांकि नई पीढ़ी इनसे परिचित नहीं है।
पृथ्वीराज चौहान की प्रसिद्ध संयोगिता हरण कथा संभल से गहराई से जुड़ी हुई है। शहर का “चक्की का पाट” ऐतिहासिक स्मारक है, जो डाकखाना रोड पर स्थित है। यह स्थान पृथ्वीराज चौहान के समय की अनेक स्मृतियों का प्रतीक है। इतिहासकारों के अनुसार, संभल में कई प्राचीन स्मारक मौजूद हैं, लेकिन उनकी उपेक्षा के कारण वे धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं। इनमें “चक्की का पाट” भी शामिल है, जो एक हजार साल पुरानी धरोहर है।
संभल महात्म्य पुस्तक में उल्लेख मिलता है कि संयोगिता को खोजने के लिए जयचंद के वीर योद्धा आल्हा, उदल, और मलखान सिंह ने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज की थी। कहा जाता है कि आल्हा ने नट की वेशभूषा में एक खिड़की से कला का प्रदर्शन करते हुए संयोगिता का पता लगाया था। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और जयचंद की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ। संभल की यह ऐतिहासिक भूमि अनेक वीर गाथाओं और परंपराओं की साक्षी है, लेकिन इन धरोहरों को संरक्षित करना समय की मांग है ताकि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहें।
4. तोता मैना की कब्र
5. जामा मस्जिद
मध्यकाल में संभल का महत्व इसलिए बढ़ा क्योंकि यह आगरा और दिल्ली के निकट स्थित था। उस समय संभल की जागीर स्थानीय सरदारों के नियंत्रण में थी। बाबर के भारत आने के दौरान, उसने यह जागीर अपने पुत्र हुमायूं को सौंपी। हालांकि, हुमायूं बीमार पड़ गया और उसे आगरा वापस ले जाया गया। बाद में बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं ने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों को बांटा, और संभल की जागीर अस्करी को सौंप दी। शेरशाह सूरी के शासनकाल में यह क्षेत्र मुबारिज़ खान के अधीन कर दिया गया।
संभल का ऐतिहासिक महत्व उसकी जामा मस्जिद से भी जुड़ा है, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद 1528 में सम्राट बाबर के आदेश पर मीर बेग द्वारा निर्मित की गई थी। यह स्थल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है, जहां कहा जाता है कि बाबर ने स्वयं इस मस्जिद की नींव रखी थी। जामा मस्जिद अपनी मुगल वास्तुकला शैली और इतिहास के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है। मस्जिद की भव्य संरचना और शांति का वातावरण इसे संभल का प्रमुख आकर्षण बनाता है। यह न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व रखता है।
6. तुर्को वाली मस्जिद
संभल शहर में मुस्लिम शासकों और तुर्की प्रभाव के कारण यहां मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 70% है, और इस्लाम प्रमुख धर्म है। इस ऐतिहासिक शहर में कई मस्जिदें मौजूद हैं, जो इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाती हैं। इनमें से तुर्को वली मस्जिद सबसे प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है। यह मस्जिद अपनी शानदार वास्तुकला के लिए जानी जाती है, जो लोदी और मुगल काल के स्थापत्य शैली की झलक प्रस्तुत करती है।
7. कल्कि विष्णु मंदिर
श्री कल्कि महापुराण, श्रीमद भागवत महापुराण, भविष्य पुराण और स्कंद महापुराण जैसे धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु के दसवें अवतार, श्री कल्कि के कलियुग में प्रकट होने का वर्णन मिलता है। ग्रंथों के अनुसार, यह अवतार “संभल” नामक स्थान पर होगा। लेकिन यह संभल उत्तर प्रदेश का है या उड़ीसा का संभलपुर, इस पर विद्वानों में मतभेद है।
हाल ही में, इस भ्रम को दूर करने के लिए कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य राम कृष्णम ने आंध्र प्रदेश के संभलपुर का दौरा किया। उन्होंने वहां मां संभलेश्वरी देवी मंदिर के दर्शन किए और पुजारियों से चर्चा की। हालांकि, महापुराणों में वर्णित निशानियां—68 तीर्थ, 19 कूप, मध्य में शिवलिंग, कदंब का वृक्ष और दक्षिण में गंगा—संभलपुर में मौजूद नहीं हैं। ये सभी चिह्न उत्तर प्रदेश के संभल में ही पाए जाते हैं।
धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान कल्कि का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में होगा, जिसका उल्लेख सिख धर्मग्रंथ दशम ग्रंथ में भी मिलता है। ऐतिहासिक रूप से, महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने उत्तर प्रदेश के संभल को कल्कि अवतार का स्थल माना था। उन्होंने यहां के कल्कि विष्णु मंदिर को पुनर्स्थापित किया। दशकों पहले ही धर्माचार्यों और साधु-संतों ने इसे कल्कि पीठ घोषित कर दिया था।
आचार्य राम कृष्णम ने संभलपुर से लौटने के बाद स्पष्ट किया कि पुराणों में उल्लिखित सभी संकेत उत्तर प्रदेश के संभल में मौजूद हैं। यहां हर साल श्री कल्कि महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें विभिन्न धर्मगुरु, सामाजिक और राजनीतिक हस्तियां शामिल होती हैं। यह स्थान अब आधिकारिक रूप से भगवान कल्कि की अवतार भूमि के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है।
8. मनोकामना मंदिर
संभल का मनोकामना मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहाँ बाबा राम मणि की समाधि स्थित है। उन्हें एक महान संत के रूप में पूजा जाता है, जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते थे। बाबा राम मणि ने अपनी जीवन में कई लोगों की बीमारियों को ठीक किया और कहा जाता है कि वह अत्यंत दयालु थे। उनके बारे में कई लोककथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें यह भी बताया जाता है कि वे एक ही समय में दो स्थानों पर मौजूद हो सकते थे। लोग उन्हें भगवान का संदेशवाहक मानते थे, और जब भी उनके भक्तों को मदद की आवश्यकता होती थी, बाबा राम मणि प्रकट होते थे।
मंदिर परिसर में एक सुंदर तालाब है, जो हनुमान मंदिर, राम सीता मंदिर और देवीजी मंदिर जैसे अन्य छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। यह स्थल भक्तों के लिए एक साथ कई पवित्र स्थलों के दर्शन करने का अवसर प्रदान करता है। हर साल, बाबा राम मणि के जीवन और उनके योगदान का सम्मान करने के लिए मंदिर में एक भव्य भंडारा आयोजित किया जाता है। यह भंडारा हर साल 8 जनवरी को होता है, और इसमें भाग लेने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। इस दिन को ध्यान में रखते हुए, आप अपनी यात्रा की योजना बना सकते हैं और इस धार्मिक आयोजन में शामिल हो सकते हैं।
9. कैला देवी मंदिर
कैला देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है और यह देश में दो स्थानों पर स्थित है, एक राजस्थान में और दूसरा संभल के भंगा क्षेत्र में। मान्यता है कि नवरात्रि के समय यहां सिंह देवता के दर्शन होते हैं, जो मां कैला देवी के वाहन माने जाते हैं। मंदिर के परिसर में एक 700 साल पुराना विशाल बरगद का पेड़ भी है, जिसका धार्मिक महत्व है। सोमवार के दिन यदुवंश की कुलदेवी के रूप में मां कैला देवी के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।
संभल का यह कैलादेवी मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और यहां की पौराणिक मान्यताएं बहुत दिलचस्प हैं। कहा जाता है कि जो भक्त नवरात्रि में सच्ची श्रद्धा से मां के दर्शन करने आते हैं, उन्हें सिंह देवता के दर्शन प्राप्त होते हैं। यह सिंह देवता मां के वाहन के रूप में पूजा जाते हैं।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, सोमवार के दिन मां कैलादेवी के दर्शन से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर परिसर में स्थित बरगद का पेड़ भी पौराणिक है और इसके बारे में कहा जाता है कि यह लगभग 700 साल पुराना है। स्कंद पुराण के 65वें अध्याय में मां कैलादेवी का उल्लेख किया गया है, जिसमें बताया गया कि द्वापर युग में मां ने नंद और यशोदा के घर जन्म लिया और बाद में कंस से मुक्ति पाई। कलयुग में मां कैलादेवी को ‘कैला’ देवी या ‘कैलेश्वरी’ के नाम से जाना जाता है।
10. संभल में सूरजकुंड मंदिर
श्रीकृष्णनेश्वर नाथ महादेव सूरजकुंड मंदिर सूर्य देव को समर्पित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मंदिर के पुजारी हर्ष शर्मा के अनुसार, जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में लगातार 40 दिन आते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। एक भक्त ने अपनी मुराद पूरी होने के बाद शिवलिंग के चारों ओर चांदी का कवच बनवाया, जिसमें करीब 30 किलो चांदी लगी है। पुजारी और भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में आने से सभी की इच्छाएं पूरी होती हैं।
मंदिर में एक कुंड स्थित है, जिसमें भगवान सूर्यनारायण का भी मंदिर है। यह कुंड खास है, क्योंकि यहां स्नान करने से त्वचा संबंधी सभी समस्याएं जैसे कोढ़, खुजली और दाद आदि ठीक हो जाते हैं। इस कुंड का एक गहरा कुआं भी है, जिसकी गहराई आज तक नहीं मापी जा सकी। कुंड में एक सुरंग भी है, जो ऐतिहासिक रहस्यों से भरी हुई है।
मंदिर में एक गोशाला भी है और परिसर में दो समाधियां भी हैं—बजरंग भारती जी और हरिद्वार पुरी महाराज जी की। इसके अलावा, मंदिर में दो विशाल वृक्ष हैं, जो कई सौ साल पुराने प्रतीत होते हैं। यहां एक बड़ा तालाब भी है, जिसे कच्चा तीरथ कहा जाता है, जिसमें 250 मछलियां और 200 कछुए रहते हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में केवल दो सूरजकुंड मंदिर हैं, एक संभल में और दूसरा मेरठ में।
श्रीकृष्णनेश्वर नाथ महादेव सूरजकुंड मंदिर का न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है। यहां डॉक्टरों से लेकर इंजीनियरों तक विभिन्न पेशेवर भक्त रोज सेवा और सफाई में योगदान करते हैं।
11. संभल में पातालेश्वर मंदिर
बहजोई नगर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम सादातबाड़ी (धीमरवाली) का प्राचीन श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर सौ वर्षों से अधिक समय से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है और यहां मनवांछित इच्छाओं के पूरी होने की मान्यता प्रचलित है। इस मंदिर के बारे में अनेक चमत्कारी कथाएं सुनाई जाती हैं, जो भक्तों के विश्वास को और मजबूत करती हैं। मंदिर की स्थापना 7 सितम्बर 1902 को हुई थी।
यहां के बारे में मान्यता है कि मंदिर में झाड़ू चढ़ाने से चर्म रोगों में राहत मिलती है। साल में दो बार इस मंदिर में मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की संरचना नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तरह बनाई गई है, जिसमें पांच सौ एक शिवलिंग स्थापित हैं। यहां पूजा करने के लिए जनपद के साथ-साथ उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और नेपाल से भी लोग आते हैं।
मंदिर के निर्माण से पूर्व बहजोई के जमींदार साहू भिखारीदास ने भगवान शिव से एक स्वप्न देखा था, जिसमें उन्होंने स्वंय को उस स्थान पर मौजूद पाया। जब उस स्थान की खोज की गई, तो वह सादातवाड़ी में स्थित पाया गया। यहां खोदाई के दौरान एक शिवलिंग उभरकर सामने आया, लेकिन इस प्रक्रिया में साहू भिखारीदास की आंखों की रोशनी चली गई। बाद में, भगवान से क्षमा याचना करने के बाद, उन्होंने मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया, और उनकी आँखें ठीक हो गईं। तब से यह मंदिर एक प्रमुख आस्था स्थल बन गया है।
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