Indian Ancient Customs: 9 भारतीय रीति-रिवाजों के पीछे का विज्ञान!

क्या आप जानते हैं? इन प्राचीन भारतीय रीति-रिवाजों के पीछे छिपा है विज्ञान!

Indian Ancient Customs: भारतीय सबसे पुराने रीति-रिवाजों के पीछे का विज्ञान! क्या आप जानते हैं कि हमारी सदियों पुरानी परंपराएं सिर्फ अंधविश्वास नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे गहरा वैज्ञानिक तर्क छिपा है? भारत, प्राचीन काल से ही अपनी समृद्ध संस्कृति और रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता रहा है। हमारी ये परंपराएं न सिर्फ हमें हमारी पहचान देती हैं बल्कि हमारे जीवन को भी बेहतर बनाने में मदद करती हैं। आजकल के आधुनिक युग में भी हमारी ये परंपराएं प्रासंगिक बनी हुई हैं। कई लोग इन परंपराओं को पुराने जमाने का मानते हैं और इन पर सवाल उठाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से कई परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं?

आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही भारतीय परंपराओं के बारे में जिनके पीछे का विज्ञान आपको हैरान कर देगा। हमारी इस श्रृंखला में हम आपको भारतीय सबसे पुराने रीति-रिवाजों के पीछे के वैज्ञानिक तर्क बताएंगे। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि हमारे पूर्वज कितने बुद्धिमान थे और उन्होंने हमारे लिए कितना कुछ सोच कर रखा था। तो तैयार हो जाइए एक रोमांचक सफर के लिए, जहां हम भारतीय संस्कृति की गहराई में उतरेंगे और इन प्राचीन रीति-रिवाजों (Indian Ancient Customs) के रहस्यों से पर्दा उठाएंगे।

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1. औरतों का चूड़ी पहनना (Women wear Bangles)

भारतीय संस्कृति में चूड़ी पहनना सिर्फ एक आभूषण पहनने से कहीं अधिक है। यह एक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है और महिलाओं के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रही है। चूड़ी पहनने के पीछे कई सामाजिक, धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं। समाजिक रूप से, चूड़ी एक विवाहित महिला की पहचान का प्रतीक है। यह उसके सुहाग की निशानी मानी जाती है। साथ ही, चूड़ी महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाने और उनकी कलाई को आकर्षक बनाने का एक तरीका भी है। धार्मिक रूप से, चूड़ी को देवी लक्ष्मी से जोड़ा जाता है और माना जाता है कि यह सौभाग्य और समृद्धि लाती है।

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, चूड़ी पहनने के कई फायदे हैं। चूड़ी पहनने से कलाई में रक्त का संचार बढ़ता है, जो तनाव कम करने और मन को शांत करने में मदद करता है। इसके अलावा, चूड़ी पहनने से हड्डियों को मजबूत बनाने और जोड़ों के दर्द को कम करने में भी मदद मिलती है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि चूड़ी पहनने से शरीर में एक प्रकार की ऊर्जा तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इसके पीछे शोधकर्ताओं का मानना है कि कलाई शरीर का वह हिस्सा है, जिससे व्यक्ति की नाड़ी को चेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर के बाहरी स्किन से गुजरने वाली बिजली को चूड़ियों की वजह से जब रास्ता नहीं मिलता है तो यह वापस शरीर में चली जाती है, जिससे शरीर को फायदा होता है।- Indian Ancient Customs

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2. विवाहित महिलाओं का सिन्दूर लगाना (Applying Vermillion to Married Women)

भारतीय संस्कृति में सिंदूर लगाना एक प्राचीन और पवित्र परंपरा है। विवाहित महिलाएं माथे पर सिंदूर लगाकर अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह सिर्फ एक रस्म नहीं बल्कि इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक तर्क भी छिपा है।

आयुर्वेद के अनुसार, माथे के मध्य भाग में एक विशेष बिंदु होता है, जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। यह शरीर का एक महत्वपूर्ण ऊर्जा केंद्र होता है। माथे पर सिंदूर लगाने से यह चक्र सक्रिय होता है और शरीर में रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से चलता रहता है। सिंदूर में पारा होता है, जो कि एक तत्व है और यह मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा, सिंदूर में लौह तत्व भी होता है, जो कि शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता है।

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सिंदूर में इस्तेमाल होने वाले कुछ तत्वों में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो कि त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। माथे पर सिंदूर लगाने से चेहरे पर रक्त का संचार बढ़ता है, जिससे त्वचा में निखार आता है। इसके अलावा, सिन्दूर हल्दी-चूने और पारा धातु के मिश्रण से बना होता है इसलिए इसे लगाने से शरीर में ब्लड प्रेशर बना रहता है। सिन्दूर में पारा मिला होने के कारण यह शरीर को दबाव और तनाव से मुक्त रखने में मदद रखता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से, सिंदूर को मंगल ग्रह से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि सिंदूर लगाने से मंगल ग्रह का प्रभाव शांत होता है। इसके अलावा, सिंदूर को शक्ति की देवी माता पार्वती से भी जोड़ा जाता है। विवाहित महिलाएं माथे पर सिंदूर लगाकर माता पार्वती को प्रसन्न करती हैं और अपने सुहाग की रक्षा के लिए उनसे आशीर्वाद मांगती हैं।

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3. झुककर चरण स्पर्श करना (Bow down and Touch feet)

भारतीय संस्कृति में चरण स्पर्श का विशेष महत्व है। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक गहरा अर्थ समेटे हुए है। आइए जानते हैं कि विज्ञान के नजरिए से चरण स्पर्श क्यों किया जाता है। जब हम किसी बुजुर्ग या गुरु के चरण स्पर्श करते हैं, तो हमारा सिर उनके पैरों के स्तर पर आ जाता है। विज्ञान कहता है कि पैरों में हजारों नसें होती हैं, जो पूरे शरीर से जुड़ी होती हैं। चरण स्पर्श करते समय जो हल्का दबाव पड़ता है, वह इन नसों को उत्तेजित करता है। इससे शरीर में एक तरह का सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

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आयुर्वेद भी चरण स्पर्श को स्वास्थ्यवर्धक मानता है। माना जाता है कि बुजुर्गों के शरीर में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, जो युवाओं को शक्ति और आशीर्वाद देती है। चरण स्पर्श करते समय, यह ऊर्जा युवाओं के शरीर में प्रवेश करती है। मानसिक रूप से भी चरण स्पर्श का गहरा प्रभाव पड़ता है। यह नम्रता, सम्मान और आज्ञाकारिता सिखाता है। जब हम किसी के चरण स्पर्श करते हैं, तो हम स्वीकार करते हैं कि वह हमसे अधिक अनुभवी और ज्ञानी है। इससे हमारा अहंकार कम होता है और हम विनम्र बनते हैं।

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4. पुरुषों का चोटी रखना (Men Braid)

भारत की प्राचीन संस्कृति में पुरुषों का चोटी रखना एक प्रचलित प्रथा थी। यह केवल एक सौंदर्य प्रसाधन नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण थे। आयुर्वेद के अनुसार, सिर के मध्य भाग में एक विशेष बिंदु होता है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह बिंदु शरीर की ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। चोटी रखने से इस बिंदु पर दबाव पड़ता है, जिससे शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सुचारू रूप से होता है। इससे व्यक्ति मानसिक रूप से शांत और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है।

पुराने समय में लोग लंबी यात्राएं करते थे। चोटी रखने से बालों को एक जगह पर बांधने में आसानी होती थी और वे गंदगी से भी बचे रहते थे। इसके अलावा, चोटी को पकड़कर व्यक्ति को खींचा जा सकता था, जिससे खतरे की स्थिति में बचाव करना आसान हो जाता था। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चोटी रखने से व्यक्ति देवताओं से जुड़ाव महसूस करता है। कई देवताओं को चोटी बांधे हुए चित्रित किया जाता है, जैसे कि शिव।

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आजकल, हालांकि, पुरुषों का चोटी रखना कम आम हो गया है। आधुनिक जीवनशैली और बदलते फैशन के चलते लोग अब अलग-अलग तरह के बालों के स्टाइल पसंद करते हैं। फिर भी, इस प्राचीन रीति-रिवाज के पीछे का विज्ञान और आध्यात्मिक महत्व आज भी प्रासंगिक है।

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5. कान छिदवाना (Ear Piercing)

कान छिदवाना भारत में सदियों से चली आ रही एक पारंपरिक रस्म है। इसे सिर्फ एक सौंदर्य वृद्धि या फैशन का प्रतीक मान लेना गलत होगा। इस रस्म के पीछे गहरे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं। आयुर्वेद के अनुसार, कान के उपरी भाग में अनेक अकुपंक्चर पॉइंट होते हैं जो शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े होते हैं। कान छिदवाने से ये अकुपंक्चर पॉइंट सक्रिय होते हैं और शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है।

महिलाओं के कान के निचले हिस्से में छेद करवाने से प्रजनन क्षमता बढ़ने और मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं में आराम मिलने का मानना है। इसके अलावा, कान छिदवाने से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि कान छिदवाने से मस्तिष्क में एंडोर्फिन नामक हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो दर्द को कम करने और खुशी का अहसास कराने में मदद करता है।

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कान छिदवाने की रस्म को धार्मिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। कई धर्मों में कान छिदवाने को शुभ माना जाता है और इसे देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता है। इस प्रकार, कान छिदवाना न केवल एक सौंदर्य वृद्धि बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी होता है।

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6. उत्तर की दिशा में सर रखकर ना सोना (Do not sleep with head towards north)

आपने अक्सर बड़ों से सुना होगा कि उत्तर दिशा में सिर करके नहीं सोना चाहिए। यह एक ऐसी मान्यता है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मान्यता के पीछे विज्ञान भी है?

हमारी पृथ्वी एक विशाल चुंबक की तरह है, जिसके दो ध्रुव होते हैं – उत्तर और दक्षिण। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारा शरीर भी एक छोटा चुंबक होता है, जिसकी ध्रुवता उत्तर से दक्षिण की ओर होती है। जब हम उत्तर दिशा में सिर करके सोते हैं, तो हमारे शरीर का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के विपरीत दिशा में हो जाता है। इससे हमारे शरीर में चुंबकीय असंतुलन पैदा हो सकता है, जिसके कारण अनिद्रा, सिरदर्द, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

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इसके अलावा, वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का हमारे शरीर के ऊर्जा प्रवाह पर भी प्रभाव पड़ता है। जब हम उत्तर दिशा में सिर करके सोते हैं, तो हमारा ऊर्जा प्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे हम थका हुआ और कमजोर महसूस करते हैं।

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7. महिलाओं द्वारा बिछिया पहनना (Women Wearing Toe Rings)

भारतीय संस्कृति में महिलाओं द्वारा बिछिया पहनना एक सदियों पुराना रिवाज है। यह न केवल एक आभूषण है बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखता है। बिछिया को आमतौर पर चांदी या सोने की बनाई जाती है और इसे अनामिका उंगली में पहना जाता है। विज्ञान के अनुसार, अनामिका उंगली में एक नस सीधे दिल से जुड़ी होती है। बिछिया पहनने से रक्त परिसंचरण बेहतर होता है और यह हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसके अलावा, चांदी में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो उंगली को संक्रमण से बचाते हैं।

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आयुर्वेद के अनुसार, बिछिया पहनने से महिलाओं में हार्मोनल संतुलन बना रहता है और प्रजनन क्षमता बढ़ती है। यह मान्यता भी है कि बिछिया पहनने से महिलाओं को मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है। सांस्कृतिक रूप से, बिछिया विवाहित महिलाओं की पहचान का प्रतीक है। यह सुख और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। कई समुदायों में, बिछिया को एक शुभ आभूषण माना जाता है और इसे शादी के समय पहना जाता है।

  • बिछिया रक्त परिसंचरण और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।
  • चांदी में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं।
  • बिछिया हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
  • बिछिया मानसिक शांति और तनाव कम करने में मदद करती है।
  • बिछिया विवाहित महिलाओं की पहचान का प्रतीक है।

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8. दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करना (Salute with Folded Hands) 

हम भारतीय जब किसी से मिलते हैं तो अभिवादन के स्वरुप उसे हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। यह किसी भी अपरिचित और मेहमान से परिचय की शुरुआत करने का पहला चरण होता है साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। जब दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है तो अंगुलियों के टिप्स आपस में जुड़ जाते हैं। यह टिप्स कानों, आंखों और दिमाग के प्रेशर पॉइंट होते हैं। जब दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है तो प्रेशर पॉइंट सक्रिय हो जाते हैं, जिससे आप किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक याद रख पाते हैं।

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भारतीय संस्कृति में नमस्कार करने का तरीका दुनिया भर में प्रसिद्ध है। दोनों हाथों को जोड़कर किया जाने वाला यह नमस्कार सिर्फ एक सौजन्यपूर्ण अभिवादन ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक तर्क भी छिपा है। जब हम दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते हैं तो हमारे शरीर में कई सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। हमारे हाथों की उंगलियों में कई एक्यूप्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े होते हैं। नमस्कार करने से ये पॉइंट्स एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं और शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सुचारू रूप से होता है। इससे मन शांत होता है और तनाव कम होता है।

इसके अलावा, नमस्कार करते समय हमारी आंखें बंद हो जाती हैं या सामने वाले व्यक्ति की आंखों में देखते हैं। इससे हमारी ध्यान केंद्रित होता है और हम सामने वाले व्यक्ति के साथ गहरा संबंध महसूस करते हैं। यह एक तरह का मानसिक जुड़ाव होता है जो हमारे रिश्तों को मजबूत बनाता है।- Indian Ancient Customs

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9. माथे पर तिलक (Tilak on Grandson)

माथे पर तिलक लगाने का भी अपना महत्व है। आज भी जब कहीं पूजा होती है तो माथे पर तिलक से शुरुआत होती है। यह शरीर को एकाग्र बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा तिलक शरीर की ऊर्जा को नष्ट होने से बचाता है। भारतीय संस्कृति में माथे पर तिलक लगाना एक प्राचीन परंपरा है, जिसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। तिलक आमतौर पर चंदन, कुमकुम या सिंदूर से लगाया जाता है, और यह हिंदू धर्म में भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, माथे पर तिलक लगाने से तीसरे आंख के क्षेत्र को उत्तेजित करने में मदद मिलती है, जो आध्यात्मिक जागृति और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है। तिलक लगाने से मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों के बीच संतुलन भी बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा, कुछ तिलक सामग्री में औषधीय गुण भी होते हैं, जो त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। माथे पर तिलक लगाना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जो धर्म, आध्यात्म और विज्ञान के संगम का प्रतिनिधित्व करता है।

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निष्कर्ष: Indian Oldest Customs

भारतीय रीति-रिवाजों (Indian Ancient Customs) के पीछे का विज्ञान एक अद्भुत अन्वेषण है। इन सदियों पुराने प्रथाओं में अनेक वैज्ञानिक तथ्यों का निहित होना आश्चर्यजनक है। चाहे वह जल से आशीर्वाद देने का रिवाज हो, या दीपावली की रोशनी से जुड़े लाभ हों, या फिर त्यौहारों पर विशेष भोजन का सेवन करने के कारण, इन सभी में वैज्ञानिक आधार मौजूद है। भारतीय रीति-रिवाजों का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारे पूर्वज कितने बुद्धिमान थे और उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए वैज्ञानिक समाधान खोजे।

इन रीति-रिवाजों के पीछे का विज्ञान हमें यह भी समझने में मदद करता है कि हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध है। यह हमें अपने पूर्वजों से जुड़ने और उनकी ज्ञान की सराहना करने का अवसर प्रदान करता है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम इन रीति-रिवाजों का अनुसरण करते समय उनके पीछे के वैज्ञानिक तथ्यों को भी समझें। इससे हम इन प्रथाओं का अधिक जागरूक और सार्थक रूप से पालन कर सकते हैं।

भारतीय रीति-रिवाजों के पीछे का विज्ञान एक अनंत विषय है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमें नए-नए वैज्ञानिक तथ्यों का पता चलता जा रहा है। यह हमारी संस्कृति की गहराई और विविधता को उजागर करता है। इसलिए, हमें इन रीति-रिवाजों (Indian Ancient Customs) का अध्ययन जारी रखना चाहिए और उनके पीछे के विज्ञान को समझने का प्रयास करना चाहिए। इससे हम अपनी संस्कृति की बेहतर सराहना कर सकेंगे और इसे भावी पीढ़ियों तक संरक्षित कर सकेंगे।

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