Sambhal Jama Masjid History: 16वीं शताब्दी की मस्जिद का पूरा इतिहास!

500 साल पुरानी संभल मस्जिद की कहानी! परस्पर विरोधी इतिहास, पौराणिक कथाएं और क्या है विवाद की जड़? Sambhal Jama Masjid History | Sambhal में Jama Masjid या Harihar Temple?

Sambhal Jama Masjid History: संभल की जामा मस्जिद, जो भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है, 16वीं शताब्दी में मुगल शासक बाबर के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी। इस मस्जिद का निर्माण मुगल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें इस्लामी वास्तुकला की उत्कृष्ट झलक देखने को मिलती है। सफेद संगमरमर, लाल बलुआ पत्थर और जटिल नक्काशीदार मेहराबों से सजी यह मस्जिद स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। ऐसा माना जाता है कि बाबर के शासनकाल में हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई थी और उसी समय कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण हुआ, जिनमें से संभल की जामा मस्जिद एक प्रमुख धरोहर मानी जाती है। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह मस्जिद काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह सिर्फ एक इबादतगाह नहीं बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी रही है।

This is the image of history-based truth behind the Sambhal Jama Masjid controversy.

इस मस्जिद के चारों ओर घनी आबादी और व्यस्त बाजार हैं, जो इसकी ऐतिहासिक और सामाजिक महत्ता को और भी बढ़ा देते हैं। समय-समय पर यह मस्जिद विवादों का केंद्र भी रही है, खासतौर पर 1976 और 1978 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान। इन घटनाओं के बावजूद, जामा मस्जिद आज भी लोगों के लिए शांति और इबादत का स्थल बनी हुई है। Place of Worship Act, 1991 के तहत इस मस्जिद की धार्मिक स्थिति को सुरक्षित रखा गया है, जिसके तहत 15 अगस्त 1947 के बाद से किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में बदलाव करना अवैध माना जाता है। आज भी स्थानीय निवासी इस मस्जिद से जुड़ी कहानियों और किवदंतियों का जिक्र करते हैं, जो इस पवित्र स्थल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं। 16वीं शताब्दी में निर्मित यह मस्जिद न केवल संभल की पहचान है, बल्कि देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा भी है। Sambhal Jama Masjid History

Also, read: लक्षद्वीप का सफर | Trip to Lakshadweep

Sambhal का इतिहास

संभल का इतिहास समृद्ध और विविध रहा है, जो कई प्रमुख शासकों के शासन के तहत विकसित हुआ। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में यह क्षेत्र पंचाल शासकों के अधीन था और बाद में यह राजा अशोक के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। 12वीं शताब्दी में दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान ने यहाँ दो प्रमुख युद्ध लड़े थे। यह युद्ध गाजी सैयद सालार मसूद के खिलाफ थे, जो महमूद गज़नी के भतीजे थे। पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने विजय प्राप्त की, लेकिन दूसरे युद्ध में वह हार गए। हालांकि, इस बात को सिद्ध करने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, और इसे एक कहानी के रूप में ही माना जाता है।

दिल्ली के पहले मुस्लिम सुलतान, कुतुबुद्दीन ऐबक ने संभल पर विजय प्राप्त की और उसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। यह घटना 14वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुई। फिरोज शाह तुगलक ने भी संभल पर आक्रमण किया, क्योंकि वहाँ के एक हिंदू शासक ने उसकी सेना के कई सैनिकों की हत्या कर दी थी। इसके बाद, उसने वहां मुस्लिम शासन स्थापित किया। 15वीं शताब्दी में लोदी साम्राज्य के शासक सिकंदर लोदी ने संभल को अपनी राजधानी बना दिया, और यह चार वर्षों तक उसकी प्रशासनिक केंद्र रहा।

इसके बाद मुगलों ने संभल पर अपना अधिकार किया। बाबर, मुगलों का पहला शासक, ने यहाँ पहली बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। यह मस्जिद आज भी एक ऐतिहासिक धरोहर मानी जाती है। बाबर के बाद, हुमायूँ को संभल का गवर्नर नियुक्त किया गया और फिर अकबर के शासन में इस शहर का बहुत विकास हुआ। हालांकि, शाहजहाँ के समय में इसकी प्रसिद्धि में कमी आई और शहर की महत्ता घटने लगी। Sambhal Jama Masjid History

संभल की मस्जिद और हरिहर मंदिर के बीच विवाद का मुख्य कारण यह है कि कुछ लोग मानते हैं कि बाबर द्वारा बनाई गई मस्जिद, एक हिंदू मंदिर पर बनाई गई थी। यह विवाद अब भी स्थानीय इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।

संभल शहर के केंद्र में ऊंचे टीले पर मोहल्ला कोट पूर्वी के भीतर शाही जामा मस्जिद बनी हुई है, जो आसपास की सबसे बड़ी इमारत है। ये इमारत 1920 में भारतीय पुरातत्व सर्वे (Archaeological Survey of India (ASI)के तहत संरक्षित घोषित की गई, जिसके बाद ये एक राष्ट्रीय महत्व की इमारत भी मानी जाती है। संभल की जामा मस्जिद के मेन गेट के सामने ज्यादा हिंदू आबादी रहती है, जबकि मस्जिद की पिछली दीवार के चारों ओर मुस्लिम समुदाय के लोग बसे हैं।

Also, read: राम जन्मभूमि – अयोध्या का इतिहास | History of Ram Janmabhoomi– Ayodhya

Sambhal Jama Masjid के इतिहास पर एक नज़र

संभल की जामा मस्जिद, बाबर के 1526 से 1530 के बीच पांच साल के शासनकाल के दौरान बनाई गई तीन प्रमुख मस्जिदों में से एक है। अन्य दो मस्जिदों में से एक पानीपत और दूसरी अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद थी। वर्तमान में संभल एक मुस्लिम बहुल शहर है, लेकिन हिंदू शास्त्रों में इसका उल्लेख विशेष रूप से मिलता है। कहा जाता है कि कलयुग के अंत में भगवान विष्णु के अवतार, कल्कि, यहां प्रकट होंगे और एक नए युग की शुरुआत करेंगे। संभल के वर्तमान विवादों का संबंध उस स्थान से है, जहां जामा मस्जिद बनाई गई है, और यह दावा किया जाता है कि यह मस्जिद एक मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। 1527-28 में बाबर के सेनापति ने श्री हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त किया था। Sambhal Jama Masjid History

This is the image of History of Sambhal Jama Masjid

  • पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में, संभल उनकी राजधानी का हिस्सा था, लेकिन बाद में यह दिल्ली की राजधानी बनाने के बाद एक उपनगर बन गया। उस समय के प्रमुख योद्धा आल्हा और उदल, संभल के रक्षकों के रूप में प्रसिद्ध थे। इनकी शौर्यगाथाएं आज भी ग्रामीण इलाकों में गाई जाती हैं।
  • मध्यकाल में संभल का सामरिक महत्व बढ़ गया, क्योंकि यह आगरा और दिल्ली के निकट स्थित था। बाबर के आक्रमण के समय संभल की जागीर अफगान सरदारों के पास थी। बाबर ने हुमायूं को यह जागीर दी, लेकिन वह बीमार हो गए और आगरा भेजे गए। बाद में शेर शाह सूरी ने हुमायूं को खदेड़ दिया और संभल की जागीर अपने दामाद मुबारिज़ ख़ाँ को दे दी।
  • जामा मस्जिद, जिसे बाबरी मस्जिद भी कहा जाता है, संभल का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। यह मस्जिद 1528 में बाबर के आदेश पर मीर बेग द्वारा बनाई गई थी, और बाबर ने खुद इसका पहला पत्थर रखा था। यह मस्जिद वास्तुकला की मुग़ल शैली का अद्भुत उदाहरण है और आज भी अच्छी तरह से संरक्षित है।
  • संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हाल ही में हुई हिंसा ने विवाद को और बढ़ा दिया है, जिसमें कई लोग घायल हुए और कुछ की मौत भी हो गई। इस विवाद के दौरान विभिन्न पक्षों के दावे सामने आए हैं। हिंदू पक्ष का कहना है कि बाबर ने मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद का निर्माण किया, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे बाबर द्वारा मस्जिद के पुनर्निर्माण का मामला मानता है।
  • कुछ स्थानीय निवासियों का मानना है कि मस्जिद के गुंबद से जुड़ी धातु की चेन और पुराने समय की कुछ वस्तुएं इस बात का प्रमाण हो सकती हैं कि पहले यहां मंदिर हुआ करता था। एक पुरानी पेंटिंग में भी मस्जिद के गुंबद को दर्शाया गया है, जिसके आधार पर कुछ लोग इसे मंदिर की पूर्व संरचना मानते हैं।
  • इतिहासकारों का कहना है कि बाबर का वास्तुकला में रुचि थी, लेकिन वह मस्जिदों के बजाय उद्यानों के निर्माण में अधिक रुचि रखते थे। बाबर ने केवल एक मस्जिद पानीपत में बनवाने का आदेश दिया था, जिसे इब्राहीम लोदी पर अपनी जीत की स्मृति के रूप में बनाया गया।
  • संभल की जामा मस्जिद का इतिहास विवादों से भरा हुआ है, और यह सांप्रदायिक दृष्टिकोण से आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है। स्थानीय इतिहासकारों का कहना है कि इस मस्जिद का निर्माण उस समय के राजनीतिक और धार्मिक परिवेश का हिस्सा था, जो अब भी समाज में विभिन्न दृष्टिकोणों के रूप में प्रकट होता है।

हिंदू धर्म के अनुसार स्वर्ण युग, सतयुग, का आरंभ संभल में कल्कि के जन्म के साथ माना जाता है। लेकिन, वहां एक संघर्ष हुआ जिसमें कम से कम पांच मुस्लिम व्यक्ति मारे गए और पूरा संभल भयभीत हो गया। अब, पूरा शहर स्मृति-निर्माण की कवायद में लगा हुआ है – जिला प्रशासन से लेकर दोनों पक्षों के धार्मिक पादरी और स्वयं निवासी भी इसमें शामिल हैं। 

संभल के निवासियों का कहना है कि शहर हमेशा शांतिपूर्ण रहा है, सिवाय 1976, 1978 और 1992 के तीन सालों के – बाबरी मस्जिद के विध्वंस के ठीक बाद। लेकिन स्थानीय प्रशासन का कहना कुछ और ही है। जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक और स्थानीय खुफिया इकाई सभी संभल के हिंसक इतिहास को फिर से बनाने और साबित करने के लिए अतीत की खुदाई में लगे हुए हैं। स्थानीय अधिकारी उन लोगों – खासकर हिंदुओं – की तलाश में हैं जो 1970 के दशक में हुई हिंसा से प्रभावित और विस्थापित हुए हैं। 

Also, read: अयोध्या- राम मंदिर कैसे पहुँचे | How to reach Ayodhya- Ram Mandir?

Sambhal Jama Masjid विवाद और इसके परिणामस्वरूप हुए दंगे

1976 का दंगा अभी भी लोगों की यादों में ताजा है, क्योंकि यह एक स्पष्ट घटना के कारण हुआ था? मौलाना की हत्या। 65 वर्षीय मुस्लिम निवासी मोइन उद्दीन को उस समय के कर्फ्यू और भय का अनुभव आज भी याद है। उनके अनुसार, curfew इतना सख्त था कि लोग अपने घरों से बाहर निकलने में डरते थे। Sambhal Jama Masjid History

showing the image of Sambhal Jama Masjid controversy and resulting riots

  • 1976 के दंगे का कारण: मौलाना की हत्या, जो अफवाहों और गलतफहमियों के कारण सांप्रदायिक संघर्ष में बदल गई।
  • कर्फ्यू का प्रभाव: स्थानीय निवासी मोइन उद्दीन के अनुसार, कर्फ्यू के दौरान लोग खिड़कियां और दरवाजे खोलने से भी डरते थे। प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, 1936 और 1947 के बीच कुल 15 दंगों की घटनाएं दर्ज की गईं। प्रशासनिक रिकॉर्ड में छोटे से छोटे आपसी झगड़े को भी दर्ज किया जाता है, चाहे उसमें किसी की मृत्यु न हुई हो और न ही कर्फ्यू लगाया गया हो। प्रशासन का उद्देश्य यह होता है कि किसी भी विवाद को दर्ज किया जाए ताकि भविष्य में इसे लेकर किसी तरह की गलतफहमी न हो।
  • हत्या की सच्चाई: प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार, मौलाना की हत्या किसी अन्य मुस्लिम व्यक्ति द्वारा की गई थी, जबकि अफवाहों ने हिंदू-मुस्लिम संघर्ष को बढ़ावा दिया।
  • मंदिरों पर हमला: दो प्रमुख मंदिरों – सूरजकुंड और मानसमंदिर – को ध्वस्त कर दिया गया था।
  • पूरे साल हिंसा का दौर: 1976 में अप्रैल से शुरू होकर साल भर रुक-रुक कर हिंसा होती रही।

1978 की बड़ी झड़पें

  • संघर्ष की शुरुआत: स्थानीय कॉलेज के छात्रों के बीच लड़ाई, जो सांप्रदायिक रूप ले ली।
  • होली के समय विवाद: मुस्लिम दुकानदारों ने होली की चिता के पास दुकानें लगाईं, जिससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ा।
  • संसद में चर्चा: भारतीय लोक दल की शांति देवी और कांग्रेस के मोहम्मद शफी अब्बासी कुरैशी ने इस मुद्दे को उठाया।
  • हताहतों की संख्या: प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार, 1978 में 184 लोग मारे गए थे, जबकि अन्य स्रोतों के अनुसार यह संख्या 100 से 300 के बीच बताई गई।
  • विपरीत आंकड़े: वार्ष्णेय-विल्किन्सन डेटासेट के अनुसार, 1978 के दंगे में 16 मौतें हुईं।

सरकारी कार्रवाई और रिपोर्ट

  • सरकार की सक्रियता: 1970 के दशक के अंत तक केंद्र सरकार सांप्रदायिक हिंसा के मुद्दों को गंभीरता से लेने लगी थी।
  • गृह मंत्रालय की रिपोर्ट: 1978-79 की गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में सांप्रदायिक घटनाओं की संख्या निम्नलिखित रही:
    • 1976 में 169 घटनाएं
    • 1977 में 188 घटनाएं
    • 1978 में 230 घटनाएं (संभल और अलीगढ़ की घटनाएं सबसे गंभीर थीं)
  • 1992 की घटना का संदर्भ अयोध्या के विवादित ढांचे के विध्वंस से जुड़ा है, जिसने पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया था। इस घटना का असर संभल पर भी पड़ा और यहां के सामाजिक संबंधों में खटास आ गई। स्थानीय लोग आज भी उस समय की पीड़ा को याद करते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय का विश्लेषण: ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार, 1950 से 1994 के बीच केवल 12 ऐसे दंगे हुए जिनमें 100 से अधिक मौतें हुईं, लेकिन संभल इनमें शामिल नहीं था।
  • कर्फ्यू की अवधि: 1976 के दंगे में कर्फ्यू कम से कम एक महीने तक चला, जो सामान्य रूप से 7 दिनों तक लगने वाले कर्फ्यू से कहीं अधिक था।
  • संभल बनाम मुरादाबाद: संभल उस समय ‘दंगा-ग्रस्त’ शहर के रूप में नहीं जाना जाता था, लेकिन मुरादाबाद, जो संभल का हिस्सा था, सांप्रदायिक हिंसा के लिए कुख्यात था।
  • सांप्रदायिक दंगे की परिभाषा: ‘सांप्रदायिक दंगे’ उस हिंसा को संदर्भित करते हैं, जिसमें दोनों पक्षों की मौतें होती हैं।
  • वर्तमान स्थिति: वार्ष्णेय के अनुसार, 2014 के बाद से दंगों की तुलना में लिंचिंग की घटनाएं ज्यादा हुई हैं।

Also, read: राम मंदिर अयोध्या के अद्भुद तथ्य | Amazing facts of Ram Mandir Ayodhya

इतिहासकारों का दृष्टिकोण

  • ज्ञानेंद्र पांडे की पुस्तक: ‘The Construction of Communalism in Colonial North India’ में सांप्रदायिक हिंसा के राजनीतिक इस्तेमाल का विवरण दिया गया है।
  • औपनिवेशिक राजनीति: औपनिवेशिक सरकार ने धर्म की राजनीति को ‘सांप्रदायिकता’ का नाम दिया और इसे विभाजनकारी राजनीति के रूप में इस्तेमाल किया।

Also, read: Maha Kumbh mela 2025: योगी ने किया Logo, Website और App लॉन्च!

पत्रकारिता कर रहे संभल के निवासी साद उस्मानी की जुबानी- Sambhal Jama Masjid History

संभल के निवासी और 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे साद उस्मानी के अनुसार, “1976 की घटना ने ही 1978 की बड़ी हिंसा का आधार तैयार किया।” उस समय की स्थिति बेहद तनावपूर्ण थी और समाज में अविश्वास की भावना गहराती जा रही थी। 1976 के बाद कई वर्षों तक समुदायों के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिशें होती रहीं, लेकिन 1992 की घटना के बाद यह संतुलन पूरी तरह टूट गया।

उनका कहना है, “विश्वास और सामाजिक सद्भाव को फिर से बनाने में कई साल लग गए। लेकिन 1992 की घटना के बाद समुदाय हमेशा के लिए बिखर गया। जब भी धर्म आधारित राजनीति होती है, संभल को इसमें घसीटा जाता है।” इस बयान से स्पष्ट है कि धार्मिक राजनीति के कारण संभल में सांप्रदायिक तनाव अक्सर बढ़ जाता है, जिससे समाज में अस्थिरता उत्पन्न होती है।

Also, read: Special Trains for Kumbh Mela 2025: कुंभ मेला पर चलेंगी 992 स्पेशल ट्रेनें!

संभल का सांस्कृतिक महत्व और याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरि की राय

संभल, जो उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र है, हिंदू-मुस्लिम साझी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस शहर की पहचान मुख्य रूप से इसकी धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है। संभल का विशेष महत्व इस विश्वास से जुड़ा है कि यह वह पवित्र स्थान है, जहां भविष्य में भगवान विष्णु के 10वें अवतार “कल्कि” का जन्म होगा। संभल के प्रसिद्ध केला देवी मंदिर के पुजारी और अदालती याचिका में याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरि का मानना है कि इस स्थान का महत्व अयोध्या के महत्व से कम नहीं है। उनका कहना है,

“जैसे अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है, वैसे ही संभल को भगवान विष्णु के अंतिम अवतार ‘कल्कि’ के जन्मस्थान के रूप में देखा जाता है।”

महंत ऋषिराज गिरि का तर्क है कि कल्कि का जन्म उस स्थान पर नहीं हो सकता, जहां मस्जिद मौजूद हो। इस विचारधारा के आधार पर, उनका मानना है कि मंदिर का पुनर्निर्माण और मस्जिद का हटाया जाना आवश्यक है, ताकि संभल का पौराणिक गौरव पुनः स्थापित किया जा सके।

संभल का धार्मिक और पौराणिक महत्व इस विश्वास से जुड़ा हुआ है कि यह भगवान कल्कि का जन्मस्थान है। पुजारी महंत ऋषिराज गिरि का मानना है कि इस स्थान के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए मंदिर का पुनर्निर्माण और मस्जिद का हटाया जाना आवश्यक है। उनका दृष्टिकोण धार्मिक मान्यताओं और पुराणों पर आधारित है।

हालांकि, इस प्रकार के मुद्दों पर विवाद खड़ा होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह केवल आस्था का विषय नहीं है, बल्कि इससे जुड़े सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी हैं। ऐसे मामलों में धर्म और इतिहास के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द भी एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है। प्रशासन और संबंधित पक्षों की जिम्मेदारी है कि शांति और समरसता बनाए रखी जाए, ताकि सांप्रदायिक सद्भाव को ठेस न पहुंचे।

Also, read: Mahakumbh Shahi Snan 2025: जानें शाही स्नान की महत्वपूर्ण तिथियां!

हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलें- Sambhal Jama Masjid History

संभल की जामा मस्जिद का विवाद ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। इस मसले पर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच मतभेद कई वर्षों से जारी हैं। दोनों पक्षों की अपनी-अपनी मान्यताएं और दलीलें हैं, जो इसे एक जटिल मुद्दा बनाती हैं।

हिंदू पक्ष की दलीलें

हिंदू पक्ष का मानना है कि जिस स्थान पर आज जामा मस्जिद स्थित है, वहां पहले एक प्राचीन मंदिर था। उनका तर्क है कि मस्जिद के निर्माण के दौरान मंदिर को तोड़ा गया था और उसी स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया। इस दावे को पुष्ट करने के लिए हिंदू पक्ष के लोग कुछ विशेष प्रतीकों और चिह्नों का हवाला देते हैं।

  1. मस्जिद की संरचना और स्थापत्य शैली
    • हिंदू पक्ष का तर्क है कि मस्जिद की वास्तुकला और उसके गुंबद की बनावट में प्राचीन मंदिरों के कुछ विशिष्ट तत्व दिखाई देते हैं।
    • मस्जिद के गुंबद और उसके आसपास की दीवारों पर कुछ ऐसे चिह्न पाए गए हैं, जिन्हें मंदिर से जुड़े प्रतीक माना जाता है।
  2. धातु की जंजीरें और घंटी के निशान
    • कुछ लोगों का दावा है कि मस्जिद के गुंबद से जुड़ी धातु की जंजीरें और घंटी के निशान मंदिर की उपस्थिति के प्रमाण हैं।
    • हिंदू समुदाय के कई वरिष्ठ नागरिकों का मानना है कि यह स्थान पहले एक हरिहर मंदिर का था, जो बाद में मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया।
  3. पुराने स्थानीय निवासियों के दावे
    • कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना था कि मस्जिद के आसपास कभी एक हरिहर मंदिर हुआ करता था।
    • इस दावे को लेकर कई बार क्षेत्रीय हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं।

Also, read: 156 Indian Medicines BANNED: भारत सरकार ने 150+ दवाओँ पर लगाया प्रतिबन्ध!

मुस्लिम पक्ष की दलीलें

मुस्लिम पक्ष इस विवाद के दावों को पूरी तरह से खारिज करता है। उनका कहना है कि जामा मस्जिद हमेशा से ही एक मस्जिद रही है और इसका निर्माण बाबर के शासनकाल के दौरान हुआ था। इसके अलावा, उनका यह भी दावा है कि मस्जिद के किसी भी हिस्से में मंदिर से जुड़ी कोई संरचना मौजूद नहीं थी।

  1. मस्जिद का निर्माण इतिहास
    • मुस्लिम पक्ष के अनुसार, जामा मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर के समय में हुआ था।
    • उनका कहना है कि बाबर ने पहले से मौजूद एक पुरानी मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया था, न कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया था।
  2. स्थापत्य शैली का तर्क
    • मुस्लिम पक्ष के अनुसार, मस्जिद की स्थापत्य शैली पूरी तरह से इस्लामिक वास्तुकला के अनुरूप है।
    • मस्जिद की दीवारों और गुंबदों में किसी भी प्रकार के हिंदू धर्म से जुड़े चिह्न नहीं पाए गए हैं।
  3. प्राचीन दस्तावेज और रिकॉर्ड
    • मुस्लिम पक्ष का कहना है कि प्रशासनिक और ऐतिहासिक दस्तावेजों में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि इस स्थान पर किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
    • इसके अलावा, उनके अनुसार, मस्जिद के चारों ओर का इलाका भी हमेशा से इस्लामी प्रभाव में रहा है, और इसे लेकर कभी कोई विवाद नहीं था।

Also, read: World’s First Artificial Womb Facility: अब बिना गर्भाशय, संभव है संतान! 

 Sambhal में Jama Masjid या Harihar Temple?

संभल की जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष दावा करता है कि हरिहर मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद बनाई गई थी। मुस्लिम पक्ष जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष की दावों को खारिज करता है। हालिया लड़ाई कानूनन लड़ी जा रही है, जिसमें अदालत की ओर से आए मस्जिद के सर्वे ऑर्डर पर काम हो रहा है। हिन्दू पक्ष के वकील गोपाल शर्मा ने बताया कि याचिका में उन्होंने बाबरनामा सहित दो किताबों का उल्लेख किया है। वकील गोपाल शर्मा के मुताबिक सिविल जज सीनियर डिविजन की अदालत में दाखिल याचिका में उन्होंने ‘बाबरनामा’ और ‘आइन-ए-अकबरी’ किताब का भी उल्लेख किया है, जिसमें हरिहर मंदिर होने की पुष्टि होती है। उन्होंने दावा किया कि इस मंदिर को 1529 में बाबर द्वारा तोड़ा गया था और अब इस मामले की 29 जनवरी को सुनवाई है। वकील गोपाल शर्मा ने कहा कि ‘एडवोकेट कमीशन’ की रिपोर्ट आने के बाद वह अपनी आगे की कार्यवाही तय करेंगे। Sambhal Jama Masjid History

This is the image of Jama Masjid or Harihar Temple in Sambhal?

संभल के सिविल जज की अदालत में विष्णु शंकर जैन की ओर से जामा मस्जिद को लेकर वाद दायर किया गया। सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन और केला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरि समेत 8 वादी हैं। वादियों ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और संभल जामा मस्जिद समिति को विवाद में पार्टी बनाया है।

याचिका में कहा गया- ‘मस्जिद मूल रूप से एक हरिहर मंदिर था, जिसे 1529 में मस्जिद में बदल दिया गया। मंदिर को मुगल सम्राट बाबर ने 1529 में ध्वस्त कराया था। बाबरनामा और आइन-ए-अकबरी किताब में इस बात का उल्लेख है कि जिस जगह पर जामा मस्जिद बनी है, वहां कभी हरिहर मंदिर हुआ करता था। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संरक्षित क्षेत्र है। उसमें किसी भी तरह का अतिक्रमण नहीं हो सकता’

Also, read: Mysterious palaces: भारत के 10 रहस्यमयी राजमहल!

Place of Worship Act का हवाला दे रहा मुस्लिम पक्ष

संभल की जामा मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में मुस्लिम पक्ष ने Place of Worship Act, 1991 का हवाला देते हुए अपना पक्ष मजबूत किया है। मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह मस्जिद मुगल शासक बाबर के आदेश से बनाई गई थी और तब से लेकर आज तक यहां मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करते आ रहे हैं।

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि Place of Worship Act, 1991 के तहत 15 अगस्त 1947 को जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, उसे उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा। इस कानून के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में परिवर्तन करना या उस पर दावा करना अवैध है। Sambhal Jama Masjid History

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में अयोध्या मामले में फैसला सुनाते समय भी इस कानून की वैधता और महत्ता को दोहराया था। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि Place of Worship Act, 1991 धार्मिक स्थलों की स्थिति को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इस कानून का पालन सभी को करना चाहिए।

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि संभल की जामा मस्जिद पर किसी भी तरह का दावा या इसे लेकर कोई नई न्यायिक कार्यवाही शुरू करना Place of Worship Act का उल्लंघन है। मुस्लिम समुदाय का यह भी तर्क है कि इस कानून का उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखना और धार्मिक स्थलों को विवादों से बचाना है। इस आधार पर, मुस्लिम पक्ष जामा मस्जिद के अधिकार को लेकर अपने दावे पर अडिग है और इसे लेकर किसी भी कानूनी चुनौती को खारिज करता है।

मुस्लिम पक्ष की यह दलील इस विवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि Place of Worship Act, 1991 का उल्लंघन करने का मतलब कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करना होगा। यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय इस कानून को आधार बनाकर जामा मस्जिद पर अपना दावा पेश कर रहा है और विरोधी पक्ष के दावे को गलत ठहरा रहा है। Sambhal Jama Masjid History

Also, read: Seven Chiranjeevis: जानिए कौन हैं कलयुग के 7 चिरंजीवी ?

Share on:

Related Posts

Leave a Comment

Terms of Service | Disclaimer | Privacy Policy