Sambhal Masjid Controversy: क्या हरि हर मंदिर की जमीन पर बनी है संभल मस्जिद? जानें पूरी सच्चाई!

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क्या संभल मस्जिद के नीचे छुपा है मंदिर का इतिहास? जानिए, सर्वेक्षण के बड़े खुलासे! Sambhal Masjid Controversy in hindi | Mandir-Mashjid dispute in Sambhal

Sambhal Masjid Controversy in hindi: उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित 16वीं सदी की ऐतिहासिक मस्जिद एक बड़े विवाद का केंद्र बन गई है। दावा किया जा रहा है कि यह मस्जिद एक प्राचीन “हरि हर मंदिर” की जमीन पर बनाई गई थी, जो वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि विवाद की तर्ज पर एक नया सांप्रदायिक मुद्दा बनता जा रहा है। इस विवाद ने 19 नवंबर को नया मोड़ तब लिया, जब अदालत के आदेश पर स्थल का सर्वेक्षण शुरू किया गया। सर्वेक्षण की खबर फैलते ही इलाके में तनाव बढ़ गया, और 24 नवंबर को यह तनाव हिंसक झड़पों में बदल गया, जिसमें दो किशोरों सहित पांच लोगों की मौत हो गई। इस विवाद ने पूरे क्षेत्र में सांप्रदायिक सौहार्द को खतरे में डाल दिया है और प्रशासन को इंटरनेट सेवाएं बंद करने और कर्फ्यू लगाने जैसे कड़े कदम उठाने पड़े।

विवाद के केंद्र में वह दावा है जिसमें कहा गया है कि इस स्थल के नीचे एक प्राचीन हिंदू मंदिर के अवशेष हो सकते हैं। इस दावे ने स्थानीय समुदाय के बीच गहरे मतभेद पैदा कर दिए हैं। इतिहासकारों और विशेषज्ञों की राय भी बंटी हुई है, क्योंकि पुरातात्विक साक्ष्यों का अभाव इस विवाद को और अधिक जटिल बना रहा है। इस मामले में Places of Worship Act, 1991 की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जो 15 अगस्त 1947 से पहले के धार्मिक स्थलों की स्थिति को यथावत बनाए रखने का आदेश देता है। सवाल यह है कि क्या यह विवाद केवल धार्मिक आस्था का मामला है या इसके पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा छुपा है? सच जो भी हो, लेकिन Sambhal Masjid Controversy in hindi ने इतिहास, आस्था और राजनीति के बीच एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

This is the image of Mandir-Mashjid dispute in Sambhal

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Sambhal Masjid Controversy in hindi मामले का मुख्य मुद्दा क्या है?

संभल मस्जिद के निर्माण को लेकर प्रचलित धारणा है कि इसे 1500 के दशक की शुरुआत में मुगल सम्राट बाबर ने बनवाया था। इस दावे का उपयोग अक्सर उन लोगों द्वारा किया जाता है जो यह मानते हैं कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत इस मस्जिद को संरक्षित किया जाना चाहिए। इस अधिनियम के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को बदलना प्रतिबंधित है।

लेकिन जब ऐतिहासिक साक्ष्यों का विश्लेषण किया गया, तो इस दावे की सच्चाई संदिग्ध पाई गई। बाबर की आत्मकथा “बाबरनामा” और पूर्व-औपनिवेशिक साहित्य में संभल मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसके अलावा, बाबर की स्थापत्य परियोजनाओं की सूची में भी इस मस्जिद का नाम नहीं है। उस दौर में संभल शहर किसी प्रमुख इस्लामी संरचना के लिए प्रसिद्ध नहीं था, जिससे इस दावे पर और अधिक सवाल खड़े होते हैं कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था।

This is the image of the Sambhal Masjid controversy in full details.
Source: Amar Ujala
  • एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि सम्भल में 16वीं शताब्दी की जामा मस्जिद का निर्माण प्राचीन हरि हर मंदिर के स्थल पर किया गया था, जैसा कि उत्तर प्रदेश के अन्य ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों पर चल रहे दावों में किया जा रहा है। 
  • 19 नवंबर,2024 को पहला सर्वेक्षण पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट सहित स्थानीय अधिकारियों की उपस्थिति में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। 
  • 24 नवंबर, 2024 को दूसरे सर्वेक्षण ने हिंसक रूप ले लिया, सर्वेक्षण दल के आगे एक स्थानीय महंत थे और उनके पीछे लोग धार्मिक नारे लगाने लगे, जिससे काफी तनाव पैदा हो गया। 
  • स्थिति पथराव तक बढ़ गई, तथा पुलिस और स्थानीय प्रतिनिधियों द्वारा बल प्रयोग के बारे में विरोधाभासी बयान दिए गए, जिसके परिणामस्वरूप दो किशोरों सहित पांच लोगों की मौत हो गई। 
  • सम्भल मस्जिद मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान निर्मित तीन मस्जिदों में से एक है, इसकी वास्तविक उत्पत्ति के बारे में ऐतिहासिक बहस जारी है – कुछ लोग इसका श्रेय बाबर के सेनापति मीर हिंदू बेग को देते हैं, जबकि अन्य लोग इसका तुगलक युग में निर्माण होने का सुझाव देते हैं। 
  • यह विवाद भारत में धार्मिक स्थल विवादों के व्यापक पैटर्न का हिस्सा है, जहां ऐतिहासिक मस्जिदों को पूर्ववर्ती हिंदू मंदिरों के स्थान पर दावा करते हुए चुनौती दी जा रही है, जिससे ऐतिहासिक स्वामित्व और सांस्कृतिक विरासत के बारे में जटिल प्रश्न उठ रहे हैं। 

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Sambhal Masjid Controversy पर ASI की प्रतिक्रिया

संभल की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कड़ा रुख अपनाया है। एसआई का यह रुख यह दर्शाता है कि प्राचीन स्मारकों के संरक्षण के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं, ताकि उनकी ऐतिहासिक संरचना और विरासत को किसी भी तरह के नुकसान से बचाया जा सके। संभल की शाही जामा मस्जिद के मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या धार्मिक स्थलों पर संरचनात्मक बदलाव बिना अनुमति के किए जा सकते हैं या नहीं। ASI का जोर इस बात पर है कि ऐसे स्मारकों के किसी भी हिस्से में बदलाव केवल कानून के तहत अनुमोदन के बाद ही किया जा सकता है।

  • 19 जनवरी, 2018 को मस्जिद की प्रबंधन समिति के खिलाफ उचित प्राधिकरण प्राप्त किए बिना मस्जिद की सीढ़ियों पर स्टील रेलिंग लगाने के आरोप में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी।
  • ASI ने कहा कि शाही जामा मस्जिद, जिसे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत 1920 में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था , उसके अधिकार क्षेत्र में आती है।
  • ASI ने तर्क दिया कि मस्जिद की प्रबंधन समिति ने अनधिकृत संरचनात्मक संशोधन किए हैं, जो गैरकानूनी हैं और इन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
  • ASI ने कहा कि मस्जिद तक जनता की पहुंच स्वीकार्य है, लेकिन केवल तभी जब वह ASI नियमों का पालन करे।
  • ASI ने मस्जिद पर पूर्ण नियंत्रण और प्रबंधन की मांग की है, तथा स्मारक के रखरखाव और इसकी संरचना में किसी भी परिवर्तन को विनियमित करने की अपनी जिम्मेदारी पर बल दिया है।

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ब्रिटिश शासनकाल के दौरान संभल मस्जिद विवाद

ब्रिटिश शासन के दौरान संभल मस्जिद से जुड़ा विवाद गहराता गया। वर्ष 1873 में, जिले के तत्कालीन Deputy Collector Ganga Prasad ने एक चौंकाने वाली खोज की। उन्होंने देखा कि मस्जिद में अब भी घंटी लटकाने के लिए एक जंजीर मौजूद थी और हिंदुओं के परिक्रमा करने के लिए मस्जिद के पीछे एक रास्ता था। यह संकेत था कि अतीत में यहाँ हिंदू धार्मिक गतिविधियाँ हो सकती थीं। इसी अवधि में, ब्रिटिश अधिकारी कार्लाइल ने दावा किया कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय के कुछ सदस्यों ने स्वीकार किया था कि मौजूदा शिलालेख नकली हैं और 1850 के आसपास इस स्थल पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया गया था

इसके बाद, 1878 में, स्थानीय हिंदू समुदाय ने मुरादाबाद सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मांग की कि उन्हें यह स्थल वापस सौंपा जाए। हालाँकि, कानूनी लड़ाई में हिंदू पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि मुसलमानों ने पिछले 12 वर्षों में इस स्थल पर निरंतर कब्जा नहीं किया था। इसके चलते कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि परिक्रमा मार्ग मस्जिद के अंदर से होकर नहीं जाता था और कोर्ट ने हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाही को “अविश्वसनीय” और “अस्पष्ट” बताया, क्योंकि उन्होंने कभी मस्जिद के अंदर का निरीक्षण नहीं किया था।

बाद में, 1920 में, इस स्थल को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत एक संरक्षित स्मारक का दर्जा दे दिया गया। इसके बाद, इस पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का नियंत्रण स्थापित हो गया। यह कदम ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए उठाया गया था, लेकिन विवाद को समाप्त करने के बजाय, यह मामला धार्मिक और कानूनी दावों के बीच और अधिक उलझता चला गया। इस विवाद के कई पहलू आज भी ऐतिहासिक बहस का हिस्सा बने हुए हैं।

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Sambhal Masjid Controversy in hindi: स्वतंत्र भारत में इतिहास, विवाद और अदालती दांव-पेच

संभल मस्जिद का विवाद स्वतंत्र भारत के सांप्रदायिक संघर्षों की लंबी श्रृंखला का एक और उदाहरण है। इस मस्जिद से जुड़ा पहला बड़ा विवाद 1976 में सामने आया, जब मस्जिद के मौलाना की हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद अफवाह फैल गई कि हत्या किसी हिंदू व्यक्ति ने की है, जिससे इलाके में तनाव बढ़ गया और सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। हालांकि, स्थानीय प्रशासन के रिकॉर्ड के मुताबिक, यह हत्या एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा की गई थी, लेकिन तब तक हालात बेकाबू हो चुके थे। दंगों के कारण इलाके में लंबे समय तक कर्फ्यू लगाना पड़ा।

  • वर्ष 2024 में, इस मस्जिद से जुड़ा विवाद फिर से चर्चा में आया, जब 19 नवंबर को चंदौसी सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर की गई, जो ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में भी शामिल रहे हैं। इस याचिका में दावा किया गया कि यह मस्जिद ‘श्री हरि हर मंदिर’ की जमीन पर बनाई गई है और इस दावे की पुष्टि के लिए स्थल के तत्काल सर्वेक्षण की मांग की गई। अदालत ने याचिका पर तुरंत कार्रवाई करते हुए सर्वेक्षण का आदेश दिया, और उसी दिन शाम तक सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया।
  • 24 नवंबर को एक बार फिर सर्वेक्षण का प्रयास किया गया, लेकिन इस बार स्थिति तनावपूर्ण हो गई। स्थानीय लोगों को आशंका हुई कि मस्जिद के आसपास खुदाई की जा रही है। देखते ही देखते पथराव और आगजनी शुरू हो गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, इन मौतों का कारण पुलिस की जवाबी कार्रवाई में की गई फायरिंग थी।
  • इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने चंदौसी सिविल कोर्ट को निर्देश दिया कि जब तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं कर लेता, तब तक कोई भी नया सर्वेक्षण या कार्यवाही न की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेक्षण रिपोर्ट को भी सार्वजनिक न करने और इलाके में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रशासन पर डाली।
  • स्थानीय हिंदू समुदाय का दावा है कि यह स्थल पहले एक प्राचीन ‘हरि हर मंदिर’ था और कुछ दशक पहले तक वे पास के एक कुएं पर पूजा करते थे। वहीं, स्थानीय मुस्लिम समुदाय इस दावे का विरोध तो नहीं करता, लेकिन उनका कहना है कि प्राचीन काल में मंदिर मस्जिद के आसपास मौजूद हो सकता है, न कि मस्जिद की मौजूदा जगह पर।

यह विवाद इस बात का प्रतीक है कि भारत में ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को लेकर कानूनी और सांप्रदायिक संघर्ष कैसे बार-बार उभरते हैं। कोर्ट का अगला फैसला इस विवाद के भविष्य को तय करेगा, लेकिन अभी के लिए यह मामला इलाके की शांति और सौहार्द के लिए एक चुनौती बना हुआ है।

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न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

इस आदेश ने उत्तर प्रदेश के अन्य ऐतिहासिक धार्मिक स्थल विवादों की याद दिलाई, जैसे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह मस्जिद के मामले, जहां ऐतिहासिक दावों के आधार पर सर्वेक्षण और कानूनी विवाद शुरू हुए थे। यह मामला भी उसी दिशा में बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, जहां इतिहासिक दावों को लेकर सर्वेक्षण और कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है।

  • 19 नवंबर, 2024 को सिविल जज ने याचिका स्वीकार कर ली जिसमें दावा किया गया था कि 16वीं सदी की जामा मस्जिद प्राचीन हरि हर मंदिर के स्थल पर बनाई गई थी। 
  • अदालत ने याचिका दायर होने के दिन ही मस्जिद का फोटोग्राफिक और वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। 
  • अदालत ने निर्देश दिया कि सर्वेक्षण रिपोर्ट 29 नवंबर, 2024 को उसके समक्ष प्रस्तुत की जाए तथा जांच के लिए एक विशिष्ट समयसीमा निर्धारित की जाए। 
  • अदालत ने मस्जिद की इंतेज़ामिया समिति से परामर्श किए बिना सर्वेक्षण की अनुमति दे दी, जो न्यायिक आदेश का एक उल्लेखनीय पहलू था। 
  • 19 नवंबर, 2024 को प्रारंभिक सर्वेक्षण पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट सहित स्थानीय अधिकारियों की उपस्थिति में शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित करने की अनुमति दी गई थी। 
  • ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय का आदेश उत्तर प्रदेश के अन्य ऐतिहासिक धार्मिक स्थल विवादों, जैसे कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह मस्जिद, के समान ही आगे बढ़ रहा है, जहां ऐतिहासिक दावों के आधार पर सर्वेक्षण और कानूनी चुनौतियां शुरू की गई हैं। 

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सर्वेक्षण और मंदिर याचिका: Sambhal Masjid Controversy in hindi

  • संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद तब गहराया जब अदालत के आदेश पर एक सर्वेक्षण किया गया। यह सर्वेक्षण उस याचिका के आधार पर हुआ था, जिसमें दावा किया गया था कि वर्तमान जामा मस्जिद की जगह पहले एक प्राचीन “हरि हर मंदिर” हुआ करता था, जिसे वर्ष 1529 में मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था। इस दावे के बाद हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच मतभेद गहराते चले गए, और अदालत के निर्देश पर साइट की जांच की गई।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • संभल की जामा मस्जिद को मुगल शासक बाबर (1526-1530) के शासनकाल के दौरान निर्मित तीन प्रमुख मस्जिदों में गिना जाता है। अन्य दो मस्जिदों में पानीपत की मस्जिद और बाबरी मस्जिद (जो अब ध्वस्त हो चुकी है) शामिल हैं।
  • इतिहासकार हॉवर्ड क्रेन ने अपनी पुस्तक “The Patronage of Babur and the Origins of Mughal Architecture” में इस मस्जिद की स्थापत्य विशेषताओं का उल्लेख किया है। उनके अनुसार, इस मस्जिद की संरचना में मुगल स्थापत्य कला के शुरुआती स्वरूप की झलक मिलती है।
  • क्रेन ने एक फारसी शिलालेख का भी उल्लेख किया है, जिसमें लिखा है कि बाबर ने अपने सूबेदार ‘जहांगीर कुली खान’ को दिसंबर 1526 में इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।

इस विवाद ने धार्मिक आस्था, इतिहास और कानूनी प्रक्रिया के बीच संतुलन की बहस को जन्म दे दिया है। पुरातात्विक प्रमाण और शिलालेखों के विश्लेषण के साथ, अब कानूनी लड़ाई पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। क्या यह स्थल प्राचीन मंदिर की जमीन पर बना है, या यह सिर्फ एक और सांप्रदायिक विवाद है — यह सवाल अभी अनुत्तरित है।

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25 जून 2024 का निरीक्षण: ASI की रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 25 जून 2024 को संभल मस्जिद का हालिया निरीक्षण किया, जो इससे पहले वर्ष 1998 में जिला प्रशासन के सहयोग से किया गया था। ASI के अधीक्षण पुरातत्वविद् वीएस रावत द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, स्मारक की स्थिति पर लगातार नजर रखी गई है। जब भी स्मारक में किसी प्रकार के अवैध हस्तक्षेप या अनधिकृत गतिविधि देखी गई, तो संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।

ASI अधिकारियों के अनुसार, प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत स्मारक की वर्तमान स्थिति की सही जानकारी जुटाना चुनौतीपूर्ण हो गया है। इसका कारण यह है कि स्मारक में समय-समय पर कई प्रकार के परिवर्धन और संशोधन किए गए हैं, जिनका पूरा रिकॉर्ड रखना मुश्किल हो गया है। हलफनामे में यह भी बताया गया है कि जून 2024 के निरीक्षण के दौरान कुछ ऐसे हस्तक्षेप दर्ज किए गए थे, जिनके प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

ASI ने इस हलफनामे के माध्यम से स्मारक के संरक्षण में सामने आ रही कमियों और ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों को उजागर किया है। इसमें अनधिकृत परिवर्तनों और हस्तक्षेपों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि स्मारक के मूल स्वरूप को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। ASI ने इन अनियमितताओं को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक कदम उठाने की मांग की है ताकि ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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उपासना स्थल अधिनियम, 1991 का कानूनी प्रावधान क्या है? 

  • धारा 3 (धर्मांतरण पर प्रतिषेध): यह कानून किसी भी पूजा स्थल को, चाहे वह पूर्णतः हो या आंशिक रूप से, एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे में, या यहां तक ​​कि एक ही धार्मिक संप्रदाय के विभिन्न खंडों के बीच, परिवर्तित होने से सख्ती से रोकता है, जिससे पूजा स्थलों का धार्मिक चरित्र, जैसा कि वे 15 अगस्त 1947 को थे, प्रभावी रूप से स्थिर हो जाता है ।
  • धारा 4(1) (धार्मिक चरित्र बनाए रखना): यह अनिवार्य करता है कि किसी पूजा स्थल की धार्मिक पहचान 15 अगस्त, 1947 की स्थिति से अपरिवर्तित बनी रहेगी, तथा उसमें किसी भी प्रकार के परिवर्तन या धर्मांतरण को रोका जाएगा, जिससे उसके मूल धार्मिक चरित्र में परिवर्तन हो।
  • धारा 4(2) (लंबित मामलों का उपशमन): यह विधेयक 15 अगस्त 1947 से पहले किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के परिवर्तन से संबंधित सभी चल रही कानूनी कार्यवाहियों को समाप्त करता है, तथा ऐसे स्थानों की धार्मिक स्थिति को चुनौती देने वाले नए मामलों को शुरू करने पर रोक लगाता है।
  • धारा 5 (अपवाद): अधिनियम में विशिष्ट छूट प्रदान की गई है, जिनमें शामिल हैं:
  1. प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले पुरातत्व स्थल
  2. आपसी सहमति से पहले ही निपटाए जा चुके या सुलझाए जा चुके मामले
  3. अधिनियम के कार्यान्वयन से पहले हुए धर्मांतरण
  4. अयोध्या में विशिष्ट राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल
  • धारा 6 (दंड) : उल्लंघन के लिए सख्त दंडात्मक उपाय स्थापित करता है, जिसमें शामिल हैं: अधिकतम तीन वर्ष का कारावास
  • मौद्रिक जुर्माना: किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने के प्रयास के कानूनी परिणाम

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उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की न्यायिक व्याख्या और उसका प्रभाव

  • उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के बावजूद, न्यायालय मस्जिदों की धार्मिक स्थिति को चुनौती देने वाले मालिकाना हक के मुकदमों को अनुमति दे रहे हैं, विशेष रूप से वाराणसी और मथुरा में, जबकि इस अधिनियम को संवैधानिक चुनौती देने वाला मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। 
  • मई 2022 में, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक महत्वपूर्ण कानूनी व्याख्या प्रदान की, जिसमें कहा गया कि किसी धार्मिक स्थान की प्रकृति को बदलने पर रोक है, लेकिन 15 अगस्त, 1947 तक किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का “पता लगाना” अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो सकता है। 
  • यह व्याख्या प्रभावी रूप से न्यायालयों के लिए एक कानूनी रास्ता तैयार करती है, जिससे वे किसी पूजा स्थल के ऐतिहासिक धार्मिक चरित्र की जांच कर सकते हैं, बिना उसकी वर्तमान स्थिति में कोई प्रत्यक्ष परिवर्तन किए। 
  • सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली चार अलग-अलग याचिकाएं हैं, जिसमें तत्कालीन Chief Justice UU Lalit की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार को सितंबर 2022 में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है – एक निर्देश जो दो साल बाद भी अनसुलझा है। 
  • मथुरा और ज्ञानवापी दोनों मामलों में, मस्जिद समितियों ने इस व्याख्या को चुनौती दी है, तथा तर्क दिया है कि इस तरह की जांच मूल रूप से धार्मिक यथास्थिति बनाए रखने के अधिनियम के इरादे को कमजोर करती है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक निर्णायक रूप से यह निर्णय नहीं दिया है कि 1991 का अधिनियम ऐसी याचिकाएं दायर करने पर भी रोक लगाता है या सिर्फ पूजा की प्रकृति में अंतिम परिवर्तन को रोकता है, जिससे महत्वपूर्ण कानूनी अस्पष्टता बनी हुई है। 
  • संभल मामले में, जिला न्यायालय ने असामान्य रूप से शीघ्रता से कार्यवाही की, तथा सिविल मुकदमे की स्वीकार्यता निर्धारित करने से पहले ही सर्वेक्षण आदेश जारी कर दिया, तथा उच्च न्यायालय में संभावित चुनौती उठाए जाने से पहले ही आदेश को क्रियान्वित कर दिया। 

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हिंदू पक्ष का क्या कहना है?

संभल की जिला अदालत ने शाही जामा मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दिया था। अदालत ने सर्वे का यह आदेश उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया था जिनमें हिंदू पक्ष की ओर से यह दावा किया गया था कि संभल की जामा मस्जिद हिंदू मंदिर की जगह पर बनाई गई है। याद दिलाना होगा कि इस तरह के दावे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और मध्य प्रदेश के धार में कमाल-मौला मस्जिद को लेकर भी किए गए हैं। इन सभी दावों में कहा गया है कि इन जगहों पर पहले मंदिर था लेकिन मुगल शासन के दौरान मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बना दी गई।

  1. संभल के मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यहां पर हिंदू मंदिर था। 1526 में मुगल सम्राट बाबर ने हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद यहां शाही जामा मस्जिद बनाई थी।
  2. संभल की जामा मस्जिद को 22 दिसंबर, 1920 को Ancient Monuments Preservation Act, 1904 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी घोषित किया गया है।

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की सुनवाई के दौरान भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने Places of Worship Act, 1991 को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि इस कानून का मकसद किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव को रोकना है, लेकिन किसी स्थल की धार्मिक स्थिति की जांच करना इस कानून की धारा 3 और 4 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। इसे सरल शब्दों में समझें तो अदालत का तर्क यह था कि जिस पूजा स्थल की स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसे बदला नहीं जा सकता, लेकिन उस समय उस स्थल का धार्मिक स्वरूप क्या था, इसकी जानकारी जुटाना कानून के दायरे में आता है।

मथुरा और ज्ञानवापी मस्जिद मामलों में Places of Worship Act, 1991 का हवाला देते हुए मस्जिद पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में इस तर्क को चुनौती दी है। इन मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है और इन्हीं कानूनी मुद्दों को संभल मस्जिद विवाद से भी जोड़ा जा रहा है। संभल में भी स्थानीय अदालत के आदेश को ऊपरी अदालतों में चुनौती दिए जाने की संभावना है। हालांकि, इस मामले ने कानूनी प्रक्रिया से पहले ही हिंसक झड़पों के कारण सुर्खियां बटोर ली हैं। दो पक्षों के बीच हिंसक टकराव में कई लोगों की जान चली गई, जिससे सांप्रदायिक तनाव और गहरा हो गया है। अब सभी की नजरें इस पर हैं कि इस विवाद में अदालत और प्रशासन का अगला कदम क्या होगा।

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