सरस्वती देवी (Saraswati Devi) को अयोध्या में भी स्थानीय साधु-संत जानते हैं | वे उन्हें ‘मौनी माता’ कहकर पुकारते हैं | मौन व्रत के दौरान वो सांकेतिक भाषा के माध्यम से परिवार के सदस्यों के साथ संवाद करती हैं। वह लिखकर भी लोगों से बात करती हैं | मौन व्रत के दौरान उन्होंने नियम बना रखा था | वो दोपहर में हर दिन एक घंटे बोलती थीं | लेकिन जिस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर की नींव रखी उस दिन से उन्होंने पूरे दिन का मौन धारण कर लिया |
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राम मंदिर की राह में: सरस्वती देवी की 32 साल की मौन साधना | On the way to Ram temple: 32 years of silent meditation of Saraswati Devi
झारखंड की 85 वर्षीय महिला सरस्वती देवी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ही अपना 32 साल पुराना मौन व्रत तोड़ेंगी | उनके परिवार का दावा है कि जिस दिन 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था, उसी दिन सरस्वती देवी ने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन नहीं होगा तब तक वो मौन व्रत धारण करेंगी |
सरस्वती देवी धनबाद में अपने छोटे बेटे हरेराम अग्रवाल के साथ रहती हैं | हरेराम के मुताबिक जब से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तारीख की घोषणा की गई है तब से वह बहुत खुश हैं | हरेराम अग्रवाल ने बताया है कि उनकी मां को महंत नृत्य गोपाल दास के शिष्यों ने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। परिवार के सदस्यों ने कहा कि चार बेटियों सहित आठ बच्चों की मां सरस्वती देवी ने 1986 में अपने पति देवकीनंदन अग्रवाल की मृत्यु के बाद अपना जीवन भगवान राम को समर्पित कर दिया और अपना अधिकांश समय तीर्थयात्राओं में बिताया | सरस्वती देवी के दूसरे बेटे नंदलाल और उनकी पत्नी इन्नु अग्रवाल के मुताबिक बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मेरी सास ने अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर के निर्माण तक ‘मौन व्रत’ का संकल्प लिया। वह दिन में 23 घंटे मौन रहती हैं। दोपहर में केवल एक घंटे का विराम लेती हैं। बाकी समय वह कलम और कागज के माध्यम से हमसे संवाद करती हैं |
कभी स्कूल नहीं गईं, पति ने दिया था अक्षर ज्ञान
65 साल पहले सरस्वती अग्रवाल का विवाह देवकीनंदन अग्रवाल (अब स्वर्गीय) से हुआ था | वह राजस्थान से आई थीं | सरस्वती देवी कभी स्कूल नहीं गईं | उनके पति ने उन्हें अक्षर ज्ञान दिया था | उसके बाद किताबें देखकर पढ़ना लिखना-सीखा | राम चरित मानस व अन्य धार्मिक ग्रंथ रोज पढ़ती हैं | दिन में एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं | 35 साल पहले इनके पति का निधन हो गया था | इनके 8 बच्चे थे | चार बेटा, चार बेटी (जिनमें तीन स्वर्गीय हो गए) | जब परिवार को इनके मौन धारण करने की जानकारी मिली, तो परिवार वालों ने इनका स्वागत व सहयोग किया |
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मौन व्रत का पालन
सरस्वती देवी ने अपने मौन व्रत का पालन अत्यंत कठोरता से किया। उन्होंने किसी से भी बात नहीं की, और उन्होंने किसी को भी नहीं देखा। वे केवल भगवान राम का ध्यान करती रहीं।
सरस्वती देवी ने अपने मौन व्रत के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया। उन्हें परिवार और दोस्तों से भी दूर रहना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपने संकल्प को कभी नहीं तोड़ा।
तीर्थ स्थालों पर ही बीता है अधिकतर जीवन
पिछले सालों में उनके परिवार में कई बड़े समारोह हुए लेकिन सरस्वती देवी अपने परिजनों से सिर्फ और सिर्फ इशारों में ही बात करती रहीं। बेटे हरिराम अग्रवाल का कहना है कि मां रामजन्म भूमि के अध्यक्ष नित्य गोपाल दास के पास अक्सर जाया करती थीं। चित्रकूट में वो कल्पवास में भी रह चुकी हैं। बेटे ने बताया कि अक्सर तीर्थ स्थालों में ही इनका जीवन बीता है। अब राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा की खबर सुनकर वह काफी खुश हैं।
महंत नृत्यगोपाल दास के आश्रम जाएंगी
बता दें दिसंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में ही सरस्वती अग्रवाल को श्रीराम मंदिर, अयोध्या से प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण आया है | निमंत्रण मिलने से इनका पूरा परिवार खुश है | 8 जनवरी को सरस्वती देवी के भाई उन्हें अयोध्या लेकर जाएंगे | परिवार के किसी अन्य सदस्य को समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं है | राम जन्मभूमि न्यास और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास के शिष्य मनीष दास व शशि दास अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन पर सरस्वती अग्रवाल की अगवानी करेंगे | रेलवे स्टेशन से वह सीधे स्वामीजी के आश्रम पत्थर मंदिर छोटी छावनी जाएंगी | वहां उनके लिए कमरा बना हुआ है, जहां वह 4 महीने रहेंगी |
सरस्वती देवी की मौन साधना के कुछ लाभ
- राम मंदिर के निर्माण में योगदान: सरस्वती देवी की मौन साधना से उन्हें राम मंदिर के निर्माण में योगदान करने का अवसर मिला। उन्होंने अपने मौन व्रत से राम मंदिर के निर्माण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया।
- आध्यात्मिक प्रगति: सरस्वती देवी की मौन साधना से उनमे आध्यात्मिक प्रगति भी हुई। वो खुद को भगवन राम के करीब महसूस करती थी |
- सामाजिक बदलाव: सरस्वती देवी की मौन साधना से समाज में सामाजिक बदलाव आया। उन्होंने हिंदू संस्कृति और धर्म के संरक्षण के लिए एक मिशाल पेश की।
मौन व्रत की सफलता
2024 में, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का दिन आ गया। सरस्वती देवी को अयोध्या ले जाया गया। उन्होंने राम मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया, और उन्होंने राम नाम का जाप किया। उन्होंने अपना मौन व्रत तोड़ा, और उन्होंने कहा, “मेरा जीवन सफल हो गया। रामलला ने मुझे प्राण-प्रतिष्ठा में बुलाया है। मेरी तपस्या, साधना सफल हुई।”